समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत जिले के दीवाना रेलवे स्टेशन पर दो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस से विस्फोट किया गया था। इस घटना में 68 लोग मारे गए थे और 12 अन्य घायल हुए थे। विशेष अदालत ने पिछले 20 मार्च को फैसला सुनाया था। फैसले में विशेष जज ने कहा कि अभियुक्त लोकेश शर्मा के खिलाफ तो रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं आया था। असीमानन्द, राजिंदर चौधरी और कमल चौहान के खिलाफ सबूत अस्वीकार्य थे। अभियुक्तों को अपराध से जोडने के लिए कोई मौखिक,दस्तावेज और वैज्ञानिक सबूत नहीं था। अपराध के इरादे को साबित करने वाला सबूत भी नहीं था। इस बात का कोई सबूत नहीं था कि बम बनाने के लिए सामग्री कहां से और कैसे लाई गई। किसने यह सामग्री जुटाई और बम किसने बनाए एवं रखे गए। कहां से और कैसे तकनीकी जानकारी जुटाई गई।
एनआईए का पूरा आरोपपत्र असीमानन्द के कबूलनामे पर आधारित था। असीमानन्द का बयान 15 जनवरी 2011 को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया था। इसके बाद 12 मई 2011 को असीमानन्द ने कहा कि अनुसंधान अधिकारी ने शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीडन कर मजिस्ट्रेट के सामने अपने द्वारा बताया गया बयान दर्ज कराने को मजबूर किया। असीमानन्द के बयान के अनुसार सुनील जोशी ने 21 फरवरी 2007 को उसे बताया था कि उसके साथी संदीप डांगे एवं एक अन्य ने विस्फोट किए थे। यह भी पता चला कि उसके साथी भरत भाई के घर डांगे व अमित ने विस्फोट पर चर्चा की थी। अनुमान है कि वे इस विस्फोट में लिप्त हो सकते है। रामचन्द्र कलसांगरे,डांगे और अमित का तो पता ही नहीं चला। बताया गया कि इनका अजमेर और मालेगांव विस्फोट में हाथ रहा है। इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि इस अभियुक्त ने समझौता एक्सप्रेस में विस्फोट की योजना को स्वीकार किया या अन्य अभियुक्तों के साथ गठजोड किया। इसका अर्थ यह है कि इस अपराध में वह दोषमुक्त है। कबूलनामा मात्र सुनी हुई बात है। इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है। इसे सिखा-पढा कर तैयार कराया गया।