बांगड़ अस्तपाल में मिर्गी रोगियों की जांच के लिए इइजी मशीन उपलब्ध है। जबकि मनोवैज्ञानिक का पद खाली पड़ा है। ऐसे में न तो मनोरोगियों की जांच नहीं हो पा रही और न ही मशीन का उपयोग। मंद बुद्धि बच्चों के लिए भी कई उपकरण उपलब्ध हैए लेकिन साइकोलॉजिस्ट का पद रिक्त होने से उपकरण धूल फांक रहे हैं। बांगड़ अस्पताल में औसतन हर माह सौ रोगी मिर्गी के पहुंच रहे हैं। इसी तरह, कई मंदबुद्धि बच्चों को भी उपचार के लिए लाया जा रहा है।
-एक अनुमान के मुताबिक 6-7 प्रतिशत जनसंख्या मानसिक विकारों से ग्रसित है।
-विश्व बैंक की 1993 की रिपोर्ट के मुताबिक डायरिया, मलेरिया, कृमि संक्रमण और तपेदिक की तुलना में न्यूरोसाइकेट्रिक डिस्ऑर्डर के कारण जीवन को ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है।
-यह विकार बीमारी के वैश्विक बोझ का 12 प्रतिशत है तथा 2020 तक बढकऱ 15 प्रतिशत हो जाएगी।
-चार परिवारों में एक परिवार के सदस्य में मानसिक विकास की संभावना बनती है।
-भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 1982 में यह कार्यक्रम शुरू किया। शुरुआत में कुछ जिलों में काम शुरू हुआ। बाद में इसका दायरा बढ़ता गया। वर्तमान में पूरे देश में यह कार्यक्रम संचालित है।
रिक्त पद भरने से राहत मिलेगी। मनोरोग विशेषज्ञ व तकनीकी कार्मिक उपलब्ध हो जाए तो मनोरोगियों को जोधपुर नहीं जाना पड़ेगा। सरकार ने कई उपकरण तो उपलब्ध करा रखे हैं। -डॉ. दलजीतसिंह राणावत, मनारोग विशेषज्ञ, बांगड़ अस्पताल, पाली
मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जितने भी पद खाली है उन्हें भरने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। जिलों में टेस्ट किट भी भेज रखे हैं। उनका उपयोग स्कूल-कॉलेजों में बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य जांचने में भी लिया जाएगा।
-प्रदीप शर्मा, स्टेट नोडल अधिकारी, मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, जयपुर