अघ्र्य देने के लिए व्रतियों ने पहले अरपन बनाया। अरपन कुमकुम आटे में कुमकुम व सिंदूर मिलाकर बनाया जाता है। इसे हाथ में लगाने के बाद सूप हाथ में लिया जाता है। इसके बाद सूप से अघ्र्य दिया जाता है।
महोत्सव में कई लोगों ने कोशी का पूजन किया। हाथी व कड़ाही की कोशी का पूजन करने व भरने के पीछे मान्यता है कि ऐसा करने वाले परिवार की मनोकामना पूर्ण हुई है। महोत्सव में आने वाली महिलाओं ने नाक से सिर तक लम्बा तिलक लगाकर सिंदूर भरकर अखण्ड सुहाग की प्रार्थना की।
पूजन व घाट पर व्यवस्था करने में समिति के पदाधिकारियों व सदस्यों ने सहयोग किया। इस मौके संरक्षक अभयकुमार शर्मा, अध्यक्ष अनिलसिंह, उपाध्यक्ष जितेन्द्र पाण्डेय, सचिव एके घोष, कोषाध्यक्ष संजयसिंह, पंकज कुमार, प्रभंजन मिश्रा, प्रमोदसिंह, विकास कुमार, राहुल कुमार, प्रिंस कुमार, डॉ. प्रभत रंजन, आरपी सिन्हा, अनूप पाण्डेय व संजय पाण्डेय अन्य सदस्यों ने व्यवस्था संभाली।
सूर्य को अघ्र्य देने के बाद सुंदरकांड का आयोजन किया गया। इसमें बिहारी समाजबंधुओं के साथ शहरवासियों ने सुंदरकांड की चौपाइयां गाकर भगवान राम, सीता व हनुमान का गुणगान किया। इस दौरान महिलाओं व समाजबंधुओं ने बिहारी भाषा में गीत गाए।