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जानें हमारा कानून: क्या आप जानते है… मृत्यु भोज में जाना भी है अपराध

locationजबलपुरPublished: May 28, 2017 06:29:00 pm

Submitted by:

rajendra denok

मृत्यु भोज को रोकने के लिए राज. मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 पारित किया हुआ हैं। उक्त एक्ट की धारा 3 में कहा गया हैं कि कोई भी व्यक्ति राज्य में मृृत्युभोज का आयोजन नहीं करेगा न ही उसमें शामिल होगा। दण्ड यदि कोई व्यक्ति मृत्युभोज का आयोजन करता है या दुष्प्रेरित करता हैं या उसमें […]

मृत्यु भोज को रोकने के लिए राज. मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 पारित किया हुआ हैं। उक्त एक्ट की धारा 3 में कहा गया हैं कि कोई भी व्यक्ति राज्य में मृृत्युभोज का आयोजन नहीं करेगा न ही उसमें शामिल होगा।
दण्ड

यदि कोई व्यक्ति मृत्युभोज का आयोजन करता है या दुष्प्रेरित करता हैं या उसमें सहायता करता हैं तो उसे एक वर्ष के साधारण कारावास या एक हजार रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। यह भी प्रावधान है कि मृत्यु भोज करने के लिए उधार धन की मांग करने पर उधार नहीं देगा। यदि इस कारण धन उधारी देने का कोई करार किया गया हैं तो ऐसा करार कानूनन लागू नहीं किया जा सकता।
स्टे करना

न्यायालय मृत्युभोज के आयोजन पर स्टे जारी कर सकता है। न्यायालय के स्टे की अवहेलना करने पर एक वर्ष तक का दण्ड दिया जा सकता हैं। मृत्युभोज की सूचना देने का कर्तव्य सरपंच, पंच, पटवारी एवं नम्बरदार पर है। यदि वे नजदीक के मजिस्ट्रेट को सूचना नहीं देते हैं तो उन्हें तीन माह तक की जेल हो सकती हैं।
सती प्रथा

सती से किसी भी विधवा को उसके मृत पति के शरीर के साथ या पति से सम्बद्ध किसी भी वस्तु, पदार्थ या चीज के साथ जीवित जलाना अभिप्रेत है। भले ही ऐसा जलना या जलाया जाना उस विधवा की इच्छा से या अन्यथा हो।
सती प्रथा को रोकने के लिए राजस्थान सरकार ने वर्ष 1987 में राजस्थान सती (निवारण) अधिनियम, 1987 बनाया है। जिसके तहत सती होने का प्रयत्न करना, सती का दुष्प्रेषण एवं सती के गौरवान्वयन के लिए किए गए कार्यों को कठोर सजा से दण्डनीय बनाया गया है। सती के मामले में सामान्य कानून से विचरित सबूत का भार मुलजिम पर ही रहता हैं। इस कानून में सती का अपराध होने या उसके गौरवान्वयन का अपराध होने से रोकने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन यथा जिला मजिस्ट्रेट को दी गई है। 
यदि सती को गौरवान्वित करते हुए कोई मंदिर भी बनाया जाता है तो उसे तुड़ाने या हटाने का आदेश भी जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है। यदि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सती संबंधी अपराध को रोकने के लिए या ऐसे किसी मंदिर इत्यादि को हटाने का आदेश दिया गया हैं और कोई व्यक्ति ऐसा आदेश नहीं मानता हैं तो ऐसा व्यक्ति सात वर्ष तक के कारावास एवं 30 हजार रुपए तक के अर्थदण्ड का प्रावधान है।
पशु बलि प्रथा

देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशु एवं पक्षियों की बलि को रोकने के लिए राज. पशु और पक्षी बलि (प्रतिषेध) अधिनियम, 1975 पारित किया गया हैं, जिसके अनुसार मन्दिर अथवा धार्मिक पूजा स्थलों में पशु और पक्षियों की बलि देना निषेधित हैं। पशु पक्षियों की बलि देने पर छ: माह तक के कारावास या जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।

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