scriptपाली में नजर आई टिड्डियां, अभी खतरा नहीं पर कृषि विभाग सतर्क | Grasshopper seen in Pali, Agriculture Department alert | Patrika News

पाली में नजर आई टिड्डियां, अभी खतरा नहीं पर कृषि विभाग सतर्क

locationपालीPublished: Jun 15, 2019 07:53:45 pm

Submitted by:

Satydev Upadhyay

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इन दिनों छुटपुट दिखाई दे रही टिड्डियां फसलों व वनस्पति के लिए घातक नहीं है।

पाली में नजर आई टिड्डियां

पाली में नजर आई टिड्डियां

पाली में नजर आई टिड्डियां, अभी खतरा नहीं पर कृषि विभाग सतर्क

पाली. शहर व आसपास के क्षेत्रों में इन दिनों कुछ पेड़-पौधों पर टिड्डियां दिखाई देने लगी है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इन दिनों छुटपुट दिखाई दे रही टिड्डियां फसलों व वनस्पति के लिए घातक नहीं है, लेकिन यदि ये लाखों की संख्या में उड़ती हुई दिखाई दे तो फसलों व वनस्पति के लिए घातक होने के साथ ही देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है। उल्लेखनीय है कि करीब बीस-पच्चीस दिन पूर्व बाड़मेर व जैसलमेर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में टिड्डी दल दिखाई दिए थे, जो फसलों व वनस्पति के लिए घातक थे। हालांकि, उक्त क्षेत्रों में दिखाई दिए टिड्डी दलों पर तत्काल नियंत्रण के प्रयास भी शुरू कर दिए गए थे और काफी हद तक उन पर नियंत्रण किया जा चुका है। बावजूद इसके प्रशासनिक तंत्र टिड्डियों के संभावित खतरे को लेकर पूरी तरह सतर्क है।
खाद्य सुरक्षा को लेकर खतरा
देश के विभिन्न सीमावर्ती क्षेत्रों में यदि टिड्डी फैल जाती है तो यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती है फसलों और वनस्पति को चि_ी देखते ही चट कर जाती है। सूत्र बताते हैं कि टिड्डियों के लिए नवंबर तक मौसम अनुकूल होता है।

ये घातक नहीं

इस तरह की गिनी चुनी टिड्डी आमतौर पर हर क्षेत्र में दिखाई देती हैं। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में ‘रामजी का घोड़ा’ भी कहते हैं। ये घातक नहीं है, लेकिन लाखों की संख्या में उड़ती हुई टिड्डियां फसलों व वनस्पति के लिए घातक होती है। पाली जिले में एेसी कोई स्थिति या सूचना नहीं है। बावजूद इसके कृषि विभाग इसको लेकर पूरी तरह सतर्क है।
डॉ. मनोज अग्रवाल,
सहायक निदेशक कृषि विभाग पाली

यह भी जाने….
प्रवासी टिड्डियों की प्रमुख जातियां
1. उत्तरी अमरीका की रॉकी पर्वत की टिड्डी
2. स्किस टोसरका ग्रिग्ररिया नामक मरुभूमीय टिड्डी
3. दक्षिण अफ्रीका की भूरी एवं लाल लोकस्टान पारडालिना तथा नौमेडैक्रिस सेंप्टेमफैसिऐटा
4. साउथ अमरीकाना
5. इटालीय तथा मोरोक्को टिड्डी। इनमें से अधिकांश अफ्रीका, ईस्ट इंडीज, उष्ण कटिबंधीय आस्ट्रेलिया, यूरेशियाई टाइगा जंगल के दक्षिण के घास के मैदान तथा न्यूजीलैंड में पाई जाती हैं।
मादा टिड्डी मिट्टी में कोष्ठ बनाकर, प्रत्येक कोष्ठ में 20 से लेकर 100 अंडे तक रखती है। गरम जलवायु में 10 से लेकर 20 दिन तक में अंडे फूट जाते हैं, लेकिन उत्तरी अक्षांश के स्थानों में अंडे जाड़े भर प्रसुप्त रहते हैं। शिशु टिड्डी के पंख नहीं होते तथा अन्य बातों में यह वयस्क टिड्डी के समान होती है। शिशु टिड्डी का भोजन वनस्पति है और ये पांच छह सप्ताह में वयस्क हो जाती है। इस अवधि में चार से छह बार तक इसकी त्वचा बदलती है। वयस्क टिड्डियों में 10 से लेकर 30 दिनों तक में प्रौढ़ता आ जाती है और तब वे अंडे देती हैं। कुछ जातियों में यह काम कई महीनों में होता है। टिड्डी का विकास आद्र्रता और ताप पर अत्याधिक निर्भर करता है।
निवास
इनके निवासस्थान उन स्थानों पर बनते हैं जहो जलवायु असंतुलित होता है और निवास के स्थान सीमित होते हैं। इन स्थानों पर रहने से अनुकूल ऋतु इनकी सीमित संख्या को संलग्न क्षेत्रों में फैलाने में सहायक होती है। प्रवासी टिड्डी के उद्भेद स्थल चार प्रकार के होते हैं।
1. कैस्पियन सागर, ऐरेल सागर तथा बालकश झील में गिरनेवाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा,
2. मरूभूमि से संलग्न घास के मैदान, जहाँ वर्षण में बहुत अधिक विषमता रहती है, जिसके कारण टिड्डियों के निवासस्थान में परिवर्तन होते रहते हैं।
3. मध्य रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, जो टिड्डी के लिए नम और अत्यधिक ठंडे रहते हैं। इस क्षेत्र में तभी बहुत संख्या में टिड्डियां एकत्र होती हैं जब अधिक गर्मी पड़ती है।
4. फिलिपीन के अनुपयुक्त, आद्र्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को समय समय पर जलाने से बने घास के मैदान।
वयस्क यूथचारी टिड्डियां गरम दिनों में झुंडों में उड़ा करती हैं। उडऩे के कारण पेशियां सक्रिय होती हैं, जिससे उनके शरीर का ताप बढ़ जाता है। वर्षा तथा जाड़े के दिनों में इनकी उड़ानें बंद रहती हैं। मरुभूमि टिड्डियों के झुंड, ग्रीष्म मानसून के समय, अफ्रीका से भारत आते हैं और पतझड़ के समय ईरान और अरब देशों की ओर चले जाते हैं। इसके बाद ये सोवियत एशिया, सिरिया, मिस्र और इजरायल में फैल जाते हैं। इनमें से कुछ भारत और अफ्रीका लौट आते हैं, जहां दूसरी मानसूनी वर्ष के समय प्रजनन होता है। लोकस्टा माइग्रेटोरिया नामक यह टिड्डी एशिया तथा अफ्रीका के देशों में फसल तथा वनस्पति का नाश कर देती है।
टिड्डी नियंत्रण
टिड्डियों का उपद्रव आरंभ हो जाने के पश्चात् इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। इसपर नियंत्रण पाने के लिए हवाई जहाज से विषैली ओषधियों का छिडक़ाव, विषैला चारा, जैसे बेनज़ीन हेक्साक्लोराइड के विलयन में भीगी हुई गेहूं की भूसी का फैलाव इत्यादि, उपयोगी होता है। अंडों को नष्ट करना और पहियों पर चौखटों में पढ़ाए पर्दों के उपयोग से, टिड्डियों को पानी और मिट्टी के तेल से भरी नाद में गिराकर नष्ट करना अन्य उपाय हैं, पर ये उपाय व्ययसाध्य हैं। अत:अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ही इनका आयोजन हो सकता हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो