भारत-पाक युद्ध 1965 के दौरान बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर सूचना आई कि सेना के लिए रसद सामग्री की एक ट्रेन गडरारोड ले जानी है। इस काम के लिए एक साहसी चालक की जरूरत थी। तभी ड्राइवर (1416) प्रतापचंद आगे आए और बोले कि वे यह काम करेंगे। ट्रेन को रात में ही ले जाना था। ट्रेन में खाद्य सामग्री भरकर रात में ही रवाना हो गए। बीच में पटरी भी क्षतिग्रस्त थी। पूरी ट्रेन को उस पटरी से ले जाना संभव नहीं था। उन्होंने सूझबूझ दिखाते हुए रेल के खाली डिब्बे स्टेशन पर छोड़ दिए और खाद्य सामग्री से भरे कोच लेकर रवाना हो गए। दोनों तरफ गोलीबारी हो रही थी। गोलीबारी के दौरान एक छर्रा प्रतापचंद को लगा। लहूलुहान हो गए, लेकिन ट्रेन की रफ्तार को कम नहीं किया। घायल प्रतापा ने सैनिकों को रसद सामग्री पहुंचा कर ही सांस ली।
नहीं मिलता निमंत्रण न सम्मान
राष्ट्रीय पर्व पर वीरांगनाओं का सम्मान होता है लेकिन प्रतापचंद की पत्नी चांदा देवी के पास जिला प्रशासन या राज्य सरकार से कभी भी सम्मान के लिए निमंत्रण नहीं आता है।
राष्ट्रीय पर्व पर वीरांगनाओं का सम्मान होता है लेकिन प्रतापचंद की पत्नी चांदा देवी के पास जिला प्रशासन या राज्य सरकार से कभी भी सम्मान के लिए निमंत्रण नहीं आता है।
पिता की बहादुरी पर गर्व
हमारे पिता पर हमें ही नहीं पूरे देश को गर्व है। उन्होंने युद्ध के दौरान जवानों के लिए रसद सामग्री पहुंचाकर अदम्य साहस दिखाया। जिसके कारण उन्हें प्रशंसा पत्र और अशोक चक्र मिला था। जब भी अशोक चक्र देखता हूं तो उनकी बहादुरी से मेरा सीना भी चौड़ा हो जाता है।-मेवाराम (प्रतापचंद के पुत्र)