बतौर प्लेयर रहा है शानदार करियर
वैसे अगर बतौर खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद की बात करें तो उनका करियर बेहद शानदार रहा है। हालांकि उनका पूरा करियर चोटों से प्रभावित रहा, लेकिन इस चोटिल करियर के दौरान भी उन्होंने साल 2001 में प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीता। ऐसा करने वाले वह भारत के दूसरे खिलाड़ी बने। इससे पलले 1980 में सिर्फ प्रकाश पादुकोण ही इस खिताब को जीत सके थे। बता दें कि ऑल इंग्लैंड ओपन चैम्पियनशिप को एक तरह से अनधिकृत विश्व कप ही माना जाता है। इसके बाद 2001 में उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2005 में उन्हें पद्म श्री भी मिला। लेकिन चोटों की वजह से उन्हें जल्द ही कोर्ट से किनारा करना पड़ा।
क्रिकेट के थे अच्छे खिलाड़ी
आज बैडमिंटन की दुनिया में पुलेला गोपीचंद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। आज ही उनका जन्मदिन है। 16 नवंबर को वह पूरे 45 साल के हो गए। बता दें कि उनका जन्म 16 नवम्बर 1973 को आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के नगन्दला गांव में हुआ है। लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि उनका रुझान बैडमिंटन से ज्यादा क्रिकेट में था। लेकिन 10 साल की उम्र तक वह बैडमिंटन इतना अच्छा खेलने लगे कि आसपास के इलाके में बतौर शटलर उनके चर्चे होने लगे। 1986 में जब वह मात्र 13 साल के थे तभी उन्हें चोट लग गई। इसी हाल में खेलते हुए उन्होंने इंटर स्कूल प्रतियोगिता में सिंगल्स और डबल्स दोनों खिताब अपने नाम किए। इसके बाद चोटें उनके पूरे करियर के दौरान चोली दामन की तरह साथ रही। इस बीच वह चोट से उबर कर वापस कोर्ट में लौटे और आंध्र प्रदेश राज्य की जूनियर बैडमिन्टन प्रतियोगिता के फाइनल तक पहुंचे।
बतौर कोच भी किया कमाल
गोपीचंद उन दुर्भाग्यशाली खिलाड़ी में से एक हैं, जिनमें तमाम क्षमता होने के बावजूद न विश्व कप जीत सके और न ही विश्व कप। लेकिन इसके बावजूद अगर कहा जाए तो उन्हीं की बदौलत भारत को 2-2 ओलंपिक पदक मिले। उनकी कोचिंग में ही सायना और सिंधु ने ओलंपिक में ब्रॉन्ज और सिल्वर मेडल जिताए। 2003 में कोर्ट को अलविदा कहने के बाद उन्होंने हैदराबाद में अपनी पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी शुरू की। इसी कोचिंग अकादमी से सायना नेहवाल, पी.वी. सिंधु और किदांबी श्रीकांत आदि शानदार खिलाड़ी निकले, जो आज विश्व बैडमिंटन जगत पर डंका फहरा रहे हैं। गोपीचंद की कोचिंग में ही सायना ने साल 2012 लंदन ओलिंपिक में इतिहास रचते हुए भारत को बैडमिंटन का पहला पदक दिलाया। इसके बाद 2016 में सिंधु ने रजत पदक अपने नाम किया। इतना ही नहीं गोपीचंद की अकादमी से निकलने वाले लगभग कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय सर्किट में भारत का नाम ऊंचा कर रहे हैं।