एसोसिएशन ने जताया गहरा दुख
संदीप की असमय मौत पर कर्नाटक राज्य हॉकी एसोसिएशन सचिव के कृष्ण मूर्ति ने गहरा दुख जताया। उन्होंने जानकारी दी कि एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान आज दोपहर को उनकी मौत हो गई। वह दिमागी समस्या से जूझ रहे थे। 18 नवंबर को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। माइकल का अंतिम संस्कार शनिवार को सिंगापुर गिरिजाघर के कब्रिस्तान में होगा।
करिश्माई फॉरवर्ड थे माइकल
बता दें कि माइकल के करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि 2003 जूनियर एशिया कप में भारत को खिताब दिलाना है। उन्हें टूर्नामेंट का सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी का अवार्ड मिला था। पाकिस्तान और कोरिया के खिलाफ उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया था। मूर्ति ने कहा कि संदीप में किसी भी जगह और किसी एंगल से गोल करने की क्षमता थी। उनका यह कौशल उन्हें किसी भी कोच का चहेता बना देता था। प्रशंसक भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। वह भी उनके असमय मृत्यु से सदमे में हैं।
मां-पिता, भाई भी हैं प्लेयर
बता दें कि संदीप के पिता जॉन माइकल राज्य स्तर के वॉलीबॉल के अच्छे खिलाड़ी रह चुके हैं, जबकि उनकी मां एलामेलु ट्रैक एंड फील्ड की एथलीट और खो-खो की खिलाड़ी रह चुकी हैं। माइकल के छोटे भाई विनीत भी हॉकी खेल चुके हैं। वह 2002 सब-जूनियर नेशनल्स में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
सीनियर स्तर पर भी जमाई धाक
संदीप को बहुत जल्द सीनियर टीम में एंट्री मिल गई थी। 2003 में ही जूनियर विश्व कप जीतने के बाद ऑस्ट्रेलिया में सीनियर स्तर के टूर्नामेंट में उन्हें शामिल कर लिया गया था, जहां उन्हें धनराज पिल्लै की जगह बतौर स्थानापन्न खिलाड़ी मैदान में उतारा गया था। वह अपने पहले मैच में कुछ ही समय मैदान में रहे, लेकिन इतने ही देर में दो गोल कर विपक्षी को हतप्रभ कर दिया। तत्कालीन टीम के कोच राजिंदर सिंह ने पिल्लै को इसलिए आराम दिया था, ताकि संदीप को अंतरराष्ट्रीय खेल का अनुभव हासिल कराया जा सके।
2001 में जूनियर टीम में आए थे
संदीप को पहली बार 2001 में मलयेशिया के इपोह में अंडर-18 एशिया कप में देश का नेतृत्व करने का मौका मिला था। उस टीम के कप्तान मशहूर ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह थे। लेकिन फिटनेस और बीमारी के कारण वह ज्यादा दिन तक टीम इंडिया में अपनी जगह बरकरार नहीं रख पाए।