भारत में नोटा को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार प्राप्त नहीं है। इसके उपयोग से केवल मतदाताओं की संख्या बढ़ती है लेकिन परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता। जिसका मतलब यह हुआ कि अगर मान लीजिए नोटा को 95 वोट मिले और किसी प्रत्याशी को 5 वोट भी मिले तो 5 वोट वाला प्रत्याशी विजयी माना जायेगा।
— पलक तिवारी , भोपाल मप्र
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नोटा उस क्षेत्र के प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा का द्योतक होता है। यदि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को जितने अधिक वोट मिलते हैं यानी प्रत्याशियों को नकारा गया है। इससे राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा में कमी आती है। नोटा से वोटों का ध्रुवीकरण होता है। जीतने प्रत्याशी हार भी जाता है यदि नोटा को अधिक वोट पडे हों तो।
— शंकर गिरि, रावतसर, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
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नोटा से वोटर अपने असंतोष को व्यक्त करते हैं। विकल्पों की कमी के कारण नोटा का प्रभाव नतीजों पर नहीं होता। यह लोकतंत्र में जनता को सशक्त करता है और उन्हें लोकतंत्र की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाता है।
—ऋषिकेश विश्वकर्मा, भोपाल
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नोटा का चुनाव मे सकारात्मक असर रहता है। चुनाव आयोग तय करे की एक निश्चित नोटा के वोटों की सीमा हो या उम्मीदवारो से अधिक यदि नोटा को वोट मिले तो वहां उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करना चाहिए । जिससे चुनाव मे पार्टियां सही उम्मीदवार उतारे।
दिल्पेश पाटीदार, डूंगरपुर
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नोटा से मतदाता अपनी नापसंद जाहिर करता है। लेकिन इससे क्या फर्क पडता है। बचे हुए मतों से नतीजा तो निकल ही जाता है। नोटा बेमानी हो जाता है।
— सरोज जैन, रामकृष्णगंज, खंडवा
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नोटा से वोटर चुनावी प्रत्याशियों से असहमति प्रकट करता है। नोटा से चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पडता। अधिक नोटा होने से प्रत्याशियों से नाराजगी व्यक्त होती है। वह अपने असंतोष को व्यक्त करता है। मतदाता को वोट डालने जरूर जाना चाहिए।
— दिलीप शर्मा, भोपाल, मध्यप्रदेश
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नोटा चुनाव में एक नकारात्मक प्रतिक्रिया देने की विधि है । यह जनता का प्रतिनिधियों के प्रति अपनी अरुचि को भी दर्शाता है। नोटा का कोई चुनावी मूल्य नहीं होता है, भले ही नोटा के लिए अधिकतम वोट हों, लेकिन अधिकतम वोट शेयर वाला उम्मीदवार अब भी विजेता होगा।
—सुखराम कश्यम, बस्तर