scriptआपकी बात…क्या चुनावों में मुद्दे मतदाताओं के अनुसार तय होते हैं? | Patrika News
ओपिनियन

आपकी बात…क्या चुनावों में मुद्दे मतदाताओं के अनुसार तय होते हैं?

पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिलीं, पेश है चुनींदा प्रतिक्रियाएं…

जयपुरApr 24, 2024 / 01:53 pm

विकास माथुर

issues in loksabha election
लोक लुभावन होते हैं मुद्दे
चुनाव में मुद्दे तो वही उठाए जाते हैं जो आम जन की समस्याओं के होते हैं। लेकिन ये लुभावने होते हैं। इन पर चुनावी मुद्दों पर अमल नहीं किया जाता। सत्ता मिलने के बाद सब कुछ भूल जाते हैं और अपना घर भरने में लगे रहते हैं। वह जनता अपने आप को ठगा सा महसूस करती है
लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़
……………………………………………………
मतदाताओं व नेताओं दोनों के अनुसार
चुनावी मुद्दों का चयन राजनीतिक पार्टियों के स्टैंड, सार्वजनिक धारणाओं का प्रभाव और विभिन्न दबाव समूहों के अनुसार होता है। मतदाताओं की राय बहुमत में एक कारक होती है, लेकिन यह अकेले मुद्दों का निर्धारण नहीं करती। चुनावी मुद्दों का चयन विभिन्न स्तरों पर चर्चा, विचारधारा और राजनीतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जाता है।
संजय माकोड़े, बैतूल,मप्र
…………………………………………………..
वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार
चुनावों में मुद्दे देश की वर्तमान परिस्थितियों और राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार तय होते हैं। घोषणा पत्र में समग्र रूप से मतदाताओं की भावनाओं और उनकी मांग का ख्याल रखा जाता है। इसी के अनुरूप चुनावों में मुद्दे तय किये जाते हैं।
सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ एमसीबी छत्तीसगढ़
………………………………………………..
वोटर्स की मांगों के अनुसार राजनेता तय करते हैं मुद्दे
चुनाव में हर मतदाता का अपना महत्त्व है। व्यक्ति की अलग मांग व मुद्दे होते हैं। इन्हीं को भांप कर राजनेता, चुनावी भाषणों में इनका जिक्र कर वोटर्स को लुभाने की कोशिश करते हैं।
प्रियव्रत चारण, जोधपुर
…………………………………..
मुद्दों को तय करने के लिए हो जनमत संग्रह
सभी राजनीतिक दलों को जनमत संग्रह करवाना चाहिए। इसी के आधार पर मुद्दे तय हों। इनमें राष्ट्रीय व स्थानीय दोनों तरह के मुद्दे शामिल होने चाहिए। कौनसा दल इन मुद्दों को किस तरह पूरा कराएगा। इस बारे में जनता को बताना चाहिए। जनता अपनी इच्छानुसार तय करेगी कि किसको वोट दिया जाए। इससे देश में सच्चा लोकतंत्र आएगा।
— ललित महालकरी, इंदौर
…………………………………..
जीत में केवल मुद्दे ही अहम नहीं
चुनाव में राजनेता व राजनीतिक दल ही उन मुद्दों को तय करते हैं, जिससे वे मतदाताओं को लुभाकर वोट हासिल कर सकें। चुनावी मुद्दों के अलावा जातिगत समीकरण, स्थानीय घटनाएं, नेतृत्व क्षमता, विपक्ष की भूमिका, विकास कार्य आदि कई अन्य कारक होते हैं। जिन पर वोट डाले जाते हैं।
—खूबीलाल पूर्बिया, ओड़ा, उदयपुर
…………………………………………..
मुद्दे जनता तय करे न कि राजनेता
चुनावों में मुद्दे मतदाताओं के कल्याण के होने चाहिए। लेकिन कई राजनेता धर्म व जाति को मुद्दा बनाकर समाज में आपसी वैमनस्य व द्वेष का वातावरण बना देते हैं।
पक्ष और विपक्ष आपस में ही एक—दूसरे की आलोचना करते हैं। वे वोटर्स की ओर ध्यान कम और विपक्ष को नीचा दिखाने में अधिक व्यस्त रहते हैं। मतदाता गुमराह हो जाता है। नेता स्थानीय मुद्दों को भुलाकर राष्ट्रीय मुद्दों को उछालकर धर्म व जातियों में विभाजनकारी माहौल बनाकर जीतने का प्रयास करते हैं।
-बलवीर प्रजापति, हरढाणी जोधपुर
…………………………………………………
राजनीतिक स्वार्थ के अनुसार तय होते हैं मुद्दे
चुनावों में मुद्दे मतदाताओं के अनुसार तय नहीं होते हैं। देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, जालसाजी, भ्रष्टाचार इन मुख्य मुद्दों को छोड दिया जाता है। राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के अनुसार मुद्दे खुद बनाती हैं और उनका बढ़ा— चढ़ा कर प्रचार करती है।
—गोपाल अरोड़ा, जोधपुर
……………………………………………………..

Home / Prime / Opinion / आपकी बात…क्या चुनावों में मुद्दे मतदाताओं के अनुसार तय होते हैं?

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो