“मसीह अलिनेजाद ने पश्चिमी स्त्रीवादियों को खरीखोटी सुनाते हुए कहा है कि हमारी मदद करने के प्रयास में आप स्थितियों को और बिगाड़ रही हैं। उन्होंने वाशिंगटन डीसी में कहा कि मेरे देश में आने वाली कई स्त्री वादियों, और ख़ास तौर पर महिला राजनेताओं ने कहा है कि वे देश का क़ानून नहीं तोड़ना चाहती हैं।” उन्होंने इस बात की तरफ ध्यान इंगित कराया कि कई समझदार महिलाएं भी ईरान जैसे देशों में पर्दा करना पसंद करती हैं। उन्होंने आगे कहा कि “ईरान की महिलाएं दास नहीं होना चाहती हैं। वे नहीं चाहतीं कि ईरान के शासन के द्वारा या पुरुषों के द्वारा उन्हें यह बताया जाए कि उन्हें क्या पहनना है।”
वे आगे कहती हैं कि “अमेरिका में जब मैं अनिवार्य हिजाब की बात करती हूँ, तो मेरे सामने यह सवाल आता है कि “यह एक सांस्कृतिक समस्या है।” जबकि ऐसा नहीं है। क्रांति से पहले हमारे पास ईरान में यह विकल्प था कि हम क्या पहनना चाहती हैं। बाध्यता कभी ईरानी संस्कृति का हिस्सा नहीं थी।” इसके साथ ही अलिनेजाद ने कहा कि कुछ पश्चिमी स्त्रीवादी इसलिए भी ईरान की आलोचना नहीं करती हैं, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों के साथ माना जाएगा। इस खबर के अपने-अपने अनुसार मतलब निकाले जा सकते हैं। मगर एक जो सबसे बड़ी बात है वह यह कि स्त्रियों को राजनेताओं के हाथों में खेलने की आवश्यकता क्या है? क्या जो हमारी राजनीतिक विचारधारा का नहीं है, वह एक पहलू पर हमारे किसी मत का समर्थन करता है, तो क्या केवल उसके विरोध में हम अपनी पूरी अस्मिता को ही दांव पर लगा दें? वीडियो में अलिनेजाद खुलकर कह रही हैं कि यह केवल एक कपड़ा भर नहीं है, यह अस्मिता की बात है।” पश्चिमी स्त्रीवादियों को डोनाल्ड ट्रंप के साथ खड़ा नहीं होना है, यह समझ आता है, मगर फिर वे ऐसी महिला हिलेरी क्लिंटन के साथ क्यों खड़ी थीं, जिसके पति पर पद का दुरुपयोग करते हुए एक महिला के शोषण का मामला दर्ज था? और हिलेरी क्लिंटन ने अपने पति से तलाक भी नहीं लिया था और बहुत आराम से उसके नाम और पद का प्रयोग करके अपने राजनीतिक सफर को पूरा कर रही थीं। बहुत ही भ्रामक-सा एक दृश्य इस समय हमारे सामने उपस्थित है। राजनीतिक विरोध में हम इतने अंधे हो रहे हैं, कि स्वयं अपनी ही राह को काँटों से भर रहे हैं, और एक अँधेरे मोड़ पर जाकर खड़े हो रहे हैं।
सोनाली मिश्र
– फेसबुक वाल से साभार