रामगढ़ बांध की दुर्दशा पर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेने वाले राजस्थान उच्च न्यायालय ने इसे अतिक्रमणों से मुक्त कराने और रसूखदारों के कब्जे में चली गई जमीन का आवंटन निरस्त करने का स्पष्ट निर्देश दिया था। यहां तक कि 9-10 अफसरों को कई बार एक साथ बुलाकर जेल भेजने की चेतावनी भी दी थी। अदालत ने इसके लिए राजस्व मंडल में रेफरेंस पेश करने और विशेष बैंच बनाने के निर्देश भी दिए थे। इस निर्देश की पूरी तरह पालना हो जाती तो अफसरों की पोल खुल जाती। बहुत से अफसरों के जेल जाने की नौबत आ जाती। इसलिए उन्होंने मामले को गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया। राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह किया और मामले को पेचों में फंसा कर लम्बा खींचने की चाल चलनी शुरू कर दी।
इस साल रामगढ़ मामले को लेकर अदालत में जो क्रियान्वयन रिपोर्टें समय-समय पर पेश की गईं, उन्हें देख कर अफसरों की कारगुजारियां साफ समझ में आ जाती हैं। मूल मुद्दे अतिक्रमण और अवैध खनन को तो लगभग गायब ही कर दिया गया। यहां तक कह दिया गया कि अतिक्रमण लगभग साफ कर दिए गए हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि केवल जयपुर विकास प्राधिकरण वाले क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की गई है। यह कुल भराव क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई ही है। रामगढ़ की बर्बादी के मुख्य कारण नदियों में जमा बालू, भराव क्षेत्र में कम बारिश, हरियाली का घटना आदि को बता दिया गया। कह दिया गया कि बालू को हटाने में 2000 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
आज जब नदियों की रेत की तस्करी हो रही है, किसान उपज बढ़ाने के लिए बलुई मिट्टी को तरस रहे हैं- ऐसे में बालू हटाना क्या कोई मुश्किल काम है। लोगों को छूट दे दो, अपने आप रेत और बालू निकाल कर ले जाएंगे। बाणगंगा में थौलाई, बिरासना, लालवास और सैंथल नदी के पेटे पर बजरी और रेत के अवैध खनन का काम आज भी धड़ल्ले से जारी है। वैसे भी द्रव्यवती नदी के सौंदर्यीकरण पर 1800 करोड़ रुपए खर्च किए जा सकते हैं, तो रामगढ़ बांध के लिए पैसा खर्च करने में जोर क्यों आना चाहिए। लेकिन अदालत का डंडा पडऩे पर बीस दिन पहले तो मिट्टी के उपयोग संबंधी राय केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान से मांगी गई है। एनीकट हटाने से नदियों के आस-पास के गांवों का जलस्तर गिर जाएगा यह रिपोर्ट तो दे दी, पर बांध सूखने से कितना जलस्तर गिरा है- इसकी सुध कौन लेगा।
अफसरशाही का एक और कमाल- यह कह दिया कि ३७ हजार करोड़ रुपए की लागत से पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना बन रही है। इसमें ऐसा प्रावधान है कि ईसरदा बांध से रामगढ़, कानोता व कालखो बांधों को भरा जाएगा। यानी रामगढ़ का भविष्य अब भविष्य में पूरी होनी वाली परियोजना पर निर्भर है! फिर केवल जयपुर विकास प्राधिकरण ही सक्रिय क्यों? ग्रामीण विकास, वन, राजस्व, जल संसाधन, खान आदि विभागों को क्या सांप सूंघ गया है। जब नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल जे.डी.ए. को सक्रिय कर प्राधिकरण क्षेत्र के 90 प्रतिशत अतिक्रमण साफ करवा सकते हैं, तो क्या शेष विभागों के मंत्रियों में दम नहीं है। क्या मुख्यमंत्री इनको एक जगह बैठा कर काम आगे नहीं बढ़ा सकते?
वन विभाग हरियाली के आंकड़े पेश करने में लगा है। क्या जनता नहीं जानती कि वन विभाग के आंकड़े कितने असली होते हैं और कितने कागजी! राजस्व विभाग ने तहसीलदारों की कमेटी बनाने की बात की है। पता नहीं कब मरेगी सासू और कब आएंगे आंसू! अदालत ने तो अतिक्रमणों का पता लगाने के लिए क्षेत्र का ‘ट्रेस मैप’ बनाने के भी निर्देश दिए थे। अफसरों ने इस पर भी चुप्पी साध ली। ये उनके ‘शुभचिंतकों’ के लिए आत्मघाती कदम जो होता।
रामगढ़ बांध मामले में मंत्री कुछ कह रहे हैं, जबकि कदम कुछ और उठाए जा रहे हैं। अदालत में तथ्य कुछ और पेश किए जा रहे हैं। पांच विभागों की कमेटी बनाने की बात भी की गई, लेकिन बातें हैं, बातों का क्या! जवाब जिस तरह दिए जा रहे हैं- उनका अन्तरनिहित संदेश यह है कि रामगढ़ बांध में पुन: पानी आना संभव ही नहीं है, क्यों माथाफोड़ी करें। अतिक्रमणकारियों को मजे करने दो।
पूरा जयपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर आशा से देख रहा है कि वे बरामदों के मामले जैसा दमखम फिर दिखाएंगे। यह केवल जयपुर का मामला नहीं है। रामगढ़ जिंदा होता है तो राज्य ही नहीं, देश के सामने नजीर बनेगा। शायद और जलाशयों और झीलों का भी भला हो जाए। वर्ना कब्जे होते रहेंगे। भ्रष्ट लोगों की जेबें भरती रहेंगी। आने वाली पीढिय़ां हमें कोसती रहेंगी और हम नपुंसक तंत्र की कारगुजारियों के तमाशबीन बने रहेंगे।