यह समय की ही बात है लेकिन जिस तरह चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में बड़ा पैसा लगाया है और उसकी सुरक्षा के नाम पर वहां अपने सैनिक बिठाए हैं, देर-सबेर वह उस पर काबिज होता लगता है। हमें दबाना उसके लिए आसान नहीं है। ‘हिन्दी-चीनी, भाई-भाई’ का नारा देकर 1962 में उसने हमें जो धोखा दिया, उससे हमने सबक सीखा है, फिर भी जो विस्तारवाद चीन के खून में है, उससे हमें बहुत सावधान रहने की जरूरत है। मंगलवार को चीन ने अपना जो रक्षा बजट, चीनी संसद में रखा है, उसमें पिछले वर्ष की तुलना में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि की है। पिछले चार सालों को देखें तो चीन हर साल अपने रक्षा बजट में 7 से 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी करता रहा है। चीन का रक्षा बजट हमारे रक्षा बजट का तीन गुना है। वह दिखाने को अपनी थल सेना ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ की संख्या घटा रहा है, पर आज भी वह बीस लाख से ज्यादा है। चीन के समर्थक कहते हैं कि अपना रक्षा बजट पहले वह डबल डिजिट में बढ़ाता था, अब उसने सिंगल डिजिट में कर दिया। यह सच भी हो, तब भी वह मुख्य रूप से है तो भारत के ही खिलाफ। चीन पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका सब की मदद उसी नीयत से करता भी है। वह जिस तरह अपनी नौसेना और वायुसेना को मजबूत कर रहा है, उस पर भी निगाह रखने की जरूरत है।
एक जमाना था जब हमारे पास सोवियत संघ, युगोस्लाविया जैसे मजबूत दोस्त थे। हमारा अपना निर्गुट आंदोलन था। वक्त के साथ वो सब कमजोर पड़े हैं। उधर दुश्मन या ‘मुंह में राम-बगल में छुरी’ वाले देशों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में हमें हर पल सावधान रहने की जरूरत है। चाहे कहीं और कमी कर लें, लेकिन रक्षा बजट पर्याप्त होना चाहिए। हमारी सेना के तीनों अंग आधुनिकतम हथियारों से लैस होने चाहिए। बोफोर्स से लेकर रफाल तक हथियारों की खरीद में, भ्रष्टाचार का जो माहौल हम देश में बनाते हैं, वह रुकना चाहिए। तभी हम कुटिल पड़ोसियों से अपनी रक्षा भरोसे से कर पाएंगे।