scriptबंदरगाह नहीं, हमें जरूरत है ऊंटों की | We need camels writeup by Menka Gandhi | Patrika News

बंदरगाह नहीं, हमें जरूरत है ऊंटों की

Published: Sep 12, 2017 02:41:00 pm

आप क्या इस बात को जानते हैं कि भारत में ऊंटों की 9 तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं?

Camels

camels

– मेनका संजय गांधी, केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री,
पर्यावरणविद् और जीव-जंतुओं के अधिकारों के लिए संघर्षरत

आप क्या इस बात को जानते हैं कि भारत में ऊंटों की 9 तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं? अन्य ऊंट प्रजातियों की ही तरह खराई प्रजाति के ऊंट अब लुप्तप्राय होने लगे हैं। देश में अब केवल 3665 खराई ऊंट रह गए हैं और इन्हें पालने वाले सिर्फ 7९ ही। अब ऊंट पालकों ने घुमन्तू जीवन छोड़ दिया है। कसाइयों के गिरोह की इन ऊंटों पर नजर पड़ गई है। अपने को खेती-बाड़ी से जुड़ा दिखाते हुए ये लोग पुष्कर जैसे पशु मेलों में आते हैं, फर्जी पहचान पत्र दिखा भ्रष्टतंत्र को घूस देकर ऊंट खरीद लाते हैं। फिर इन्हें बिहार के किशनगंज व पश्चिम बंगाल के मालदा होते हुए बांग्लादेश ले जाया जाता है। हर साल करीब पचास हजार ऊंटों की इसी प्रकार तस्करी होती है। मैं अब तक इनमें से केवल 2000 ऊंटों को ही बचा पाई हूं।
खैर, हम बात कर रहे थे खराई प्रजाति के ऊंटों की। फकीरनी जाट और रेबारी समुदाय के लोग इन ऊंटों का पालन करते हैं। अब ये लोग अहमदाबाद, भरूच और भावनगर की ओर कूच करने लगे हैं। रेगिस्तान के जहाज के रूप में विख्यात ऊंट के चौड़े गद्दीदार पैर रेत पर आसानी से आगे बढ़ते हैं। कच्छ के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये नस्ल रेगिस्तान या समुद्र में भी दिखाई देती है। दक्षिणी गुजरात के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले ये ऊंट एक विशेष प्रकार के सदाबहार पौधे को खाते हैं और मानसून में मैनग्रूव द्वीप (इन्हें बेट भी कहते हैँ) तक पहुंचने के लिए पानी में 3 किलोमीटर से भी अधिक की यात्राएं करते हैं। इन ऊंटों के मुलायम और लंबे बालों से ऊंटपालक पायदान, छोटा गलीचा और शॉल बनाते हैं, जो वाकई काफी सुंदर होते हैं, इन ऊंटों को त्वचा संबंधी बीमारियां कम होती हैं, जबकि सामान्यत: अन्य प्रजातियों के ऊंटों में उदर संबंधी एवं प्रोटोजोन परजीवी जनित अन्य संक्रामक बीमारियां पाई जाती हैं।
सरकार चरवाहों को ना तो कोई चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करवाती और ना ही टीकाकरण आदि की सुविधा देती। खराई प्रजाति के ऊंट पालकों को अब पारम्परिक ज्ञान के अतिरिक्त भी ऊंटपालन के लिए मदद की जरूरत है। चूंकि अब ऊंट गाड़ी हांकने या खेत में जुताई के काम नहीं आते। इसलिए हमें बेहतर जीवन के लिए ऊंटनी के दूध पर फोकस करना चाहिए। खराई पालकों ने इसकी पहल की है। लेकिन गुजरात सरकार अपने तटीय इलाकों का औद्योगिकीकरण कर रही है। इनसे चारागाह की राह भी अवरुद्ध होती है। अगर हमें खराई प्रजाति के ऊंटों को बचाना है तो हमें सदाबहार पौधे भी बचाने होंगे। विकास के नाम पर थोड़ी सी दूरी पर बंदरगाह बनाने की जरूरत नहीं है। हमें जरूरत है ऊंटों की।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो