अमरीका अगर सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिए वाकई ईमानदार है तो उसे गम्भीर प्रयास करने चाहिए। परिषद के शेष चारों स्थायी सदस्यों को भी सुधार के लिए तैयार करना चाहिए। दुनिया बदल रही है तो संयुक्त राष्ट्र भी क्यों न बदले? सात दशक पहले बने संयुक्त राष्ट्र की कार्यशैली में कई खामियां हैं। संयुक्त राष्ट्र के १९४५ में गठन के समय पांच ताकतवर देशों को स्थायी सदस्यता दी गई। लेकिन इन ७२ सालों में दुनिया बहुत बदली है। दूसरे अनेक देश ताकतवर बनकर उभरे हैं। भारत भी उनमें से एक है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि इसका विस्तार किया जाए। पांच की जगह स्थायी सदस्यता वाले ग्यारह देश हो जाएं तो उसमें हर्ज क्या है? भारत के साथ जर्मनी, जापान, ब्राजील और आस्टे्रलिया अलग पहचान बना चुके हैं।
दुनिया में भाईचारा और शान्ति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र अपनी भूमिका में कुछ लडख़ड़ाता-सा दिख रहा है? इसलिए नहीं कि उसके पास अधिकार नहीं है। बल्कि इसलिए कि अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की जगह वह अमरीका और रूस के दबाव में आ जाता है। बदलते दौर में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका और महत्वपूर्ण होनी चाहिए। अमरीका-उत्तर कोरिया के बीच चरम पर पहुंच चुका तनाव समूची दुनिया के लिए गम्भीर खतरा है। तनाव कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र कुछ खास करता नजर नहीं आ रहा, सिवाए बयानबाजी के। विश्व की सबसे बड़ी संस्था को ऐसे मौके पर अधिक सक्रियता के साथ सामने आना चाहिए। साथ ही अमरीका को अपने हितों के साथ-साथ दुनिया के बारे में भी ईमानदारी से विचार करना चाहिए।