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गुजरात में दो ‘चाणक्य’ का घमासान

Published: Aug 02, 2017 12:37:00 am

राज्यसभा चुनावों की छाया में गुजरात में इन दिनों राजनीतिक जंग चरम पर
है। दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला के बगावती तेवरों के चलते कांग्रेस को
अपने विधायकों को दूसरे प्रदेश में ले जाकर बाड़ेबंदी करनी पड़ी है। अभी यह
कहा नहीं जा सकता कि कांग्रेस के खेमे में चिंता ज्यादा है और भाजपा
निश्चिंत है

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देवेन्द्र पटेल राजनीतिक विश्लेषक
राज्यसभा चुनावों की छाया में गुजरात में इन दिनों राजनीतिक जंग चरम पर है। दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला के बगावती तेवरों के चलते कांग्रेस को अपने विधायकों को दूसरे प्रदेश में ले जाकर बाड़ेबंदी करनी पड़ी है। अभी यह कहा नहीं जा सकता कि कांग्रेस के खेमे में चिंता ज्यादा है और भाजपा निश्चिंत है। क्योंकि यह है…

गुजरात से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनावों ने देश का ध्यान खींचा है। इन चुनावों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ये इसी साल होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के ऐन पहले हो रहे हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। लोकसभा चुनावों को लेकर संदेेश देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा के लिए गुजरात का 2017 का विधानसभा चुनाव भारी बहुमत से जीतना जरूरी है। कई महीनों पहले तक गुजरात के चुनावी परिदृश्य को लेकर भाजपा में चिंता की लकीरें थीं।

कारण थे पहला पाटीदार आंदोलन और दूसरा राज्य में दलितों पर होने वाले कथित अत्याचार का मुद्दा। पाटीदार आंदोलन का भूत बरकरार है। दलित भी पूरी तरह से संतुष्ट दिखाई नहीं दे रहे। मोदी पीएम बनने से पहले गुजरात के सीएम के रूप में गुजरात को जिस तरह छोड़ कर गए थे वैसा गुजरात अब नहीं है, ऐसा कइयों को लग रहा है।

हालांकि राज्यसभाचुनाव का ज्यादा महत्व होता नहीं है, परंतु गुजरात विधानसभा के प्रतिपक्ष के नेता शंकरसिंह वाघेला की बगावत व सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव तथा कांग्रेस के शक्तिशाली नेता अहमद पटेल की उम्मीदवारी ने इस चुनाव को हाई वोल्टेज ड्रामे में बदल दिया है। अहमद पटेल गुजरात से लगातार पांचवीं बार मैदान में हैं।

गांधी परिवार के अत्यंत विश्वासपात्र अहमद पटेल का दिल्ली दरबार में एक समय वैसा ही दबदबा था, जैसा आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का है। अमित शाह भी मैदान में उतरे चार उम्मीदवारों में से एक हैं। इनके अलावा भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी भी प्रत्याशी हैं। भाजपा की दो सीटों पर जीत तो तय है। अमित शाह, कांग्रेस के इस ताकतवर नेता को राज्यसभा चुनावों में शिकस्त देना ही चाहेंगे। कह सकते हैं कि ये चुनाव गुजरात के दो चाणक्यों के बीच का ‘महायुद्ध’ है।

क्या नतीजे होंगे, कहना आसान नहीं है। कारण यह है कि चुनाव से पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकरङ्क्षसह वाघेला ने कांग्रेस छोड़कर पार्टी को बैकफुट पर ला दिया है। कांग्रेस के छह विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। वाघेला गुट के दावे के अनुसार कांग्रेस के और विधायक पार्टी छोड़ भाजपा से जुड़ सकते हैं। इनमें शंकरसिंह वाघेला के पुत्र महेन्द्र सिंह वाघेला भी शामिल हैं। महत्वपूर्ण यह है कि यदि गुजरात से राज्यसभा के लिए सिर्फ तीन प्रत्याशियों का ही नामांकन होता तो चुनाव की नौबत आती ही नहीं।

वाघेला गुट के सदस्य व कांग्रेस के सचेतक बलवंत सिंह राजपूत पार्टी छोड़ भाजपा के खेमे में जुड़ गए और राज्यसभा चुनाव के लिए मैदान में डटे हैं। ये वे ही बलवंत सिंह हैं जिनका राजनीतिक गॉडफादर अहमद पटेल को कहा जाता है। चर्चा है कि वाघेला के इशारे पर ही बलवंत ने कांग्रेस से बगावत की है। रही, शंकर सिंह वाघेला की बात। वे गुजरात में ‘वाघेला बापू’ के नाम से जाने जाते हैं। गांव-गांव में उनके समर्थक हैं। कांंग्रेस ने उन्हें वरिष्ठता व कद के आधार पर नेता प्रतिपक्ष बनाया था। इससे पहले वे केन्द्र में मंत्री व आईटीडीसी के चेयरमैन भी रहे।

इसके बावजूद उन्होंने कांग्रेस क्यों छोड़ी? कहा जाता है कि गुजरात विधानसभा के इसी साल के अंत तक होने वाले चुनाव से पहले पार्टी उम्मीदवारों के चयन को लेकर वे खुली छूट चाहते थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी से उनकी पटरी नहीं बैठ रही थी। वहीं कांग्रेस का कहना है कि वाघेला के यहां सीबीआई के छापे पडऩा उनका पार्टी छोडऩे का कारण हो सकता है। हालांकि वाघेला इसे खारिज कर रहे हैं।

यह ध्यान देना जरूरी है कि शंकर सिंह वाघेला मूलत: संंघनिष्ठ व भाजपाई रहे हैं। गुजरात में भाजपा की जड़ें जमाने में उनका अहम योगदान रहा है। दो दशक पूर्व पार्टी नेताओं से मतभेद के चलते वे भाजपा के करीब 45 विधायकों को चार्टर्ड विमान से लेकर मध्यप्रदेश के खजुराहो चले गए थे और वापस आकर केशूभाई पटेल की सरकार पलट दी थी। बाद में अपना नया राजनीतिक दल बना वे कांग्रेस के समर्थन से सीएम बन गए थे।

विडंबना देखिए कि वाघेला एक बार फिर विद्रोह के मार्ग पर हैं। जिस तरह शंकर सिंह वाघेला भाजपा के 45 विधायकों को खजुराहो ले गए थे, उसी तरह कांग्रेस अपने 44 विधायकों को भारी दबाव से बचाने के लिए बेंगलुरु ले गई है। पहले उन्होंने भाजपा छोड़ी और अब वे कांग्रेस छोड़ रहे हैं। वे 77 की उम्र पार कर चुके। कांग्रेस छोडऩे के बाद वे भाजपा से जुड़े नहीं, परंतु वे कहते हैं कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ी है, राजनीति नहीं। जिस भाजपा से मतभेद था उनके ही सान्निध्य में वाघेला बापू के जाने की चर्चा हो रही है। आरोप-प्रत्यारोप जारी हंै।

कांग्रेस का आरोप है कि उनके विधायकों को तोडऩे के लिए 15 करोड़ रुपए तक के ऑफर दिए गए। प्यार व युद्ध की तरह राजनीति में भी सब कुछ जायज है। गुजरात में राज्यसभा के चुनाव में ‘नोटा’का भी उपयोग होना है। इसके अलावा यदि क्रॉस वोङ्क्षटग होगी तो अहमद पटेल का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित हो सकता है। यदि पटेल जीते तो वाघेला व उनके समर्थकों का भविष्य भी अनिश्चित हो सकता है। फिलहाल तो ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस की छावनी में चिंता ज्यादा है और भाजपा पूरी तरह से निश्चिंत है।

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