हमें इस बात से कोई ऐतराज नहीं है कि भारत सरकार एक साथ तीन बार तलाक कहकर, तलाक लेने वालों के खिलाफ कानून बनाने जा रही है। धर्म ही क्या, कोई भी इस बात का पक्षधर नहीं हैं कि किसी भी सूरत में परिवार टूटने की स्थिति में आए। परिवार टूटने से बचाने के लिए जो भी कदम उठाए जा सकते हैं, वे उठाने ही चाहिए। जानकारी मिल रही है कि सरकार कानून के जरिए, तीन तलाक हासिल करने की कोशिश करने वालों के लिए सजा का प्रावधान करने की सोच रही है। हो सकता है कि सरकार के नजरिए में ऐसा करना ठीक भी हो लेकिन ऐसा करने से पहले सरकार को चाहिए कि वह मुस्लिम धर्मगुरुओं को बुलाकर उनसे बातचीत करे।
बहुत संभव है कि बातचीत के जरिए बेहतर हल निकल सके या संबंधित कानून बनाने में मदद मिल सके। जहां तक इस मामले में सजा का प्रावधान रखने का प्रश्न है तो इसके पीछे सोच यही रहती है कि सजा के डर से व्यक्ति तीन बार तलाक बोलकर तलाक हासिल करने की प्रक्रिया से तो कम से कम बचना ही चाहेगा। लेकिन, इस संदर्भ में मेरा मानना है कि सजा का प्रावधान किसी भी सूरत में समस्या का हल नहीं हो सकता बल्कि यह समस्या को और जटिल ही बना देगा।
हो सकता है कि कहा जाए कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों तीन तलाक के संदर्भ में फैसला दे दिया है और उसकी मंशा भी यही है कि इस संदर्भ में संसद कानून बनाए। कानून का उल्लंघन करने वाले को जब तक सजा का प्रावधान नहीं होगा, तब तक कानून की अनुपालना हो पाना संभव नहीं हो सकेगा। एक बार को यह तर्क ठीक भी लग सकता है लेकिन दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं जिनमें सजा का प्रावधान होने के बावजूद अपराध नहीं रुक पा रहे हैं। ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तीन तलाक के मामले में बनने वाले कानून में सजा का प्रावधान होने से ये तलाक रुक जाएंगे। निर्भया मामले का ही उदाहरण ले लें। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद कानून को और सख्त बनाया गया लेकिन इसके बावजूद जघन्य अपराध रुके नहीं हैं।
बड़ा सवाल यह कि आखिर हम चाहते क्या हैं? क्या हम परिवार की टूटन को रोकने के इच्छुक हैं? इस टूटन के लिए अपनाई जाने वाली तीन तलाक की प्रक्रिया को रोकने के लिए यदि हम इस पर सजा का प्रावधान कर देंगे, तो हो सकता है कि औपचारिक तौर पर तीन तलाक की प्रक्रिया एकबारगी रुक जाए। लेकिन मन की गांठ तो बन ही जाएगी। फिर व्यक्ति अन्य तरीका अपनाकर तलाक की मांग करेगा। किसी भी स्थिति में तलाक तो हो ही जाएगा। नहीं हुआ तो भी सजा के कारण खराब हुए संबंधों से परिवार में पड़ी गांठ का खुल पाना शायद ही संभव हो। ऐसे में परिवार को जोड़े रखने का उद्देश्य खत्म हो जाएगा।