scriptपत्रिका ओपिनियन: जनता के प्रति जवाबदेही पर भारी पड़ती सत्ता की लालसा | The lust for power overshadows accountability towards the public | Patrika News
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पत्रिका ओपिनियन: जनता के प्रति जवाबदेही पर भारी पड़ती सत्ता की लालसा

दक्षिण पूर्व एशिया के कई राजनेताओं को पिछले कुछ समय में राहत मिली है। मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री नजीब रजाक की 12 साल की कैद की सजा घटा कर आधी की जा रही है। अब वे अगले आम चुनावों से पहले 2026 में रिहा हो जाएंगे। नजीब पर सरकारी निवेश फंड से अरबों डॉलर की चोरी का आरोप था। यह सदी की सबसे बड़ी चोरी की घटनाओं में गिनी जाती है।

जयपुरMar 12, 2024 / 12:41 pm

Gyan Chand Patni

पत्रिका ओपिनियन: जनता के प्रति जवाबदेही पर भारी पड़ती सत्ता की लालसा

पत्रिका ओपिनियन: जनता के प्रति जवाबदेही पर भारी पड़ती सत्ता की लालसा

नजीब की सजा कम करने पर मलेशियाई नागरिकों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया आई कि ‘यह फैसला न्याय के मुंह पर तमाचा’ है। इसी तरह थाईलैंड के अपदस्थ प्रधानमंत्री थकसिन शिनावत्रा को एक जेल अस्पताल से रिहा कर दिया गया। उन पर भ्रष्टाचार व सत्ता के दुरुपयोग के आरोप थे। 17 सालों से स्वनिर्वासित थकसिन उनकी पार्टी की सरकार बनने के बाद अगस्त में ही थाईलैंड लौटे थे। तब थाईलैंड की जनता ने भी थकसिन को मिल रहे इस विशेष महत्व पर सवाल उठाए थे। इसी प्रकार इंडोनेशिया में हुए चुनावों में सेना के पूर्व जनरल व रक्षा मंत्री प्रबोवो सुबियांतो 50 प्रतिशत से ज्यादा मतों के साथ आसानी से राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए। उनके समर्थक भले ही इससे खुश दिखाई दिए लेकिन आलोचकों का कहना था कि यह अधिनायकवाद के लौटने का खतरा है।
प्रबोवो की जीत पूर्व सैन्य विशेष बलों के कमांडर के पुनर्वास का प्रतीक है, जिसे 1990 में मानवाधिकार हनन के आरोपों पर सेना से बर्खास्त कर दिया गया था। उस पर कार्यकर्ताओं को गायब करने का भी आरोप है। इनमें से कुछ अब भी लापता हैं। प्रबोवो को तख्ता पलट का प्रयास करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया व दो दशक तक उनके अमरीका में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी। उक्त सारे संदर्भ तीनों लोकतांत्रिक देशों की राजनीति के स्थाई लेकिन संकटपूर्ण पहलू को दर्शाते हैं-सजा मुक्ति की व्यापक संस्कृति। इसके तहत राजनेताओं की पिछली गलतियों को शीघ्र भुला दिया जाता है। राजनेता आश्चर्यजनक रूप से अपने ताकतवर प्रतिद्वंद्वियों को अपने निकट रखना चाहते हैं। चूंकि कानून की दुहाई देकर पत्रकारों को खामोश कर दिया जाता है, आंदोलनकारियों को जेल भेज दिया जाता है; ऐसे में राजनेताओं को कड़ी सजा दिलाना मुश्किल है। क्षेत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को साथ रखना आम चलन हो गया है।
फिलीपीन्स में 1980 में तख्ता पलट की साजिश रचने वालों को तुरंत ही माफी मिल गई। इनमें से कुछ राजनेता बनकर उभरे और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की मदद से सत्ता में विभिन्न पदों पर पहुंचे। दक्षिण एशियाई नेता कहते हैं कि वे अमरीका की विभाजित राजनीति के मुकाबले राष्ट्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को साथ लेकर चलना एक प्रकार से अपने बारे में सर्वसम्मति बनाना है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि क्षेत्र का लोकतंत्र प्रभावित होता है, कानून का मखौल उड़ाया जाता है। जब आम जन राजनेताओं की ऐसी मिलीभगत देखता है तो उसका राजनीति से मोह भंग हो जाता है।
प्रबोवो का पुनरुत्थान तब हुआ जब उन्हें दो बार हरा कर राष्ट्रपति बने जोको विडोडो ने उन्हें अपने केबिनेट में शामिल किया। दो कार्यकाल पूरे होने के बाद ‘जोकोवि’ के नाम से लोकप्रिय विडोडो ने प्रबोवो को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। बदले में प्रबोवो ने विडोडो के कम योग्य पुत्र गिब्रान राकाबमिंग राका को अपना साथी नामित किया। मलेशिया में नजीब की सजा में कटौती का फायदा प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम को हुआ और उन्हें नजीब के समर्थक मलय समुदाय का समर्थन मिला।
थाईलैंड में सत्ताधारी जनरलों ने तय किया कि वे थकसिन की लोकप्रिय फेउ थाई पार्टी का समर्थन करेंगे बजाय सुधारवादी पार्टी के जिसने पिछला चुनाव जीता था। चाहे कुछ भी हो,यह दण्ड मुक्ति का चलन कानून का अपमान है। लोकतंत्र में कानून का राज जरूरी है। सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। राज करने के लिए नेता दूसरे नेताओं के अपराधों की अनदेखी करेंगे, तो जनता का लोकतंत्र के प्रति विश्वास कम ही होगा।
कीथ बी. रिचबर्ग , निदेशक, यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग जर्नलिज्म एंड मीडिया स्टडीज सेंटर

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