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सौर ऊर्जा भारत की जरूरत

Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm

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Super Admin

ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधन घटते जा रहे हैं। विकसित देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी आगे जा चुके हैं, जबकि ..

ऊर्जा के प्राकृतिक संसाधन घटते जा रहे हैं। विकसित देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी आगे जा चुके हैं, जबकि भारत आज भी वहीं खड़ा है। बढ़ती आबादी को देखते हुए सौर क्रांति आज देश की जरूरत है। भारत की आधी से भी अधिक आबादी आज भी अंधेरे में है। सरकार अगर सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन दे, तो काफी कम लागत में ही लाखों घर जगमग हो सकते हैं।

ए.एस. कपूर, रिटायर्ड चीफ इंजीनियर, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम

भारत पिछले कई वर्षो से बिजली की कमी से जूझ रहा है। हमारे पास कुल 2.50 लाख मेगावॉट की पारंपरिक क्षमता है, लेकिन राष्ट्रीय प्लांट लोड फैक्टर 60 फीसदी या उससे भी नीचे है। इसका मतलब, 2.5 लाख मेगावॉट की संस्थापित क्षमता के बावजूद केवल 1.5 लाख मेगावॉट ही बिजली पैदा हो रही है। बाकी बिजली उत्पादन संयंत्र नहीं चल रहे हैं, क्योंकि उन्हें या तो कोयला नहीं मिल पा रहा है या टैरिफ सम्बंधी विवादों में उलझे हैं अथवा भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं। सूर्य के साथ ऎसा कोई मुद्दा नहीं है।

विकसित देश हमसे आगे
सूर्य की रोशनी सभी के लिए बिना किसी रूकावट के उपलब्ध है। विकसित और कई विकासशील देशों को पांच साल पहले ही अहसास हो गया था कि कोयला और तेल आधारित ऊर्जा स्रोतों में कमी आ रही है और यह समय स्वाभाविक रूप से पुन: पैदा होने वाली प्राकृतिक अक्षय ऊर्जा पर काम करने का है। चीन और यूरोप में एक ऊर्जा क्रांति के रूप में सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है, जहां सूरज की रोशनी कम ही पहुंचती है। वे सूरज से ऊर्जा पाने के लिए मौजूदा सभी संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

सिंगापुर, कोरिया और कई एशियाई देशों में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा का संचय किया जा रहा है। भगवान के उपहार के रूप में सौर ऊर्जा ने पूरे विश्व में एक क्रांति का रूप ले लिया है, लेकिन, हम भारतीय अभी भी सौर ऊर्जा के भविष्य में इस्तेमाल के लिए नीतिया और योजनाएं बना रहे हैं। भारत भूमध्य रेखा और कर्क रेखा के बीच स्थिति है और हमारे लिए सूरज पूरे साल के लिए उपलब्ध रहता है। मानसून भी विशेष भूमिका निभाता है, जिसकी वजह से भारत को सूरज की रोशनी साल के 330 दिन स्पष्ट रूप से मिलती है।

नीतियां नहीं, इच्छाशक्ति की जरूरत
यदि हम तकनीकी विशेषज्ञों की माने, तो सूरज से मिलने वाली ऊर्जा प्रति वर्ग मीटर 1000 वॉट होती है, जिसका अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह भारत की पूरी ऊर्जा जरूरत को केवल सूरज से ही पूरा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह अच्छी तरह से मालूम है कि सौर ऊर्जा (गर्मी और प्रकाश) का इस्तेमाल दो तरीके से हो सकता है। पहला, प्रत्यक्ष रूप से उष्मा और दूसरा, परोक्ष रूप से बिजली में कर सकते हैं। जहां दुनिया में गंभीरता से इसका उपयोग किया जा रहा है, वहीं भारत अब भी समीतियां, योजनाएं, नीतिया, एजेंसियां आदि बना रहा है। राष्ट्रीय सौर मिशन, राज्य स्तरीय नीतियां और कई दूसरे नाम बार-बार सुनने में मिल रहे हैं।

छोटे ऊर्जा प्लांट लगाए जाएं
छोटे घरेलू सौर ऊर्जा प्लांट आज की जरूरत हैं। कोई भी छोटा निवेशक या उपयोगकर्ता अपनी जरूरत की बिजली पाने के लिए अपना खुद का सौर ऊर्जा प्लांट लगा सकता है। इसके लिए सरकार को अपने नियम ढीले करने होंगे। इसका वर्तमान लागत एक लाख रूपए प्रति किलोवॉट है, जिसे तीन या चार साल के अंदर रिकवर किया जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि सरकारें अपनी आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा प्लांट लगाने वाले छोटे निवेशको की पूरी मदद करें।

इस क्षेत्र में तमिलनाडु दूसरे राज्यों से आगे है, जिसने छोटे निवेशकों की सुविधा के लिए “नेट मिटरिंगी स्कीम” लागू की है। जल्द ही पूरे तमिलनाडु में बड़ी संख्या में छोटी-छोटी सौर परियोजनाओं दिखेंगी। भारत में बड़ी संख्या में जमीन बंजर है, जिस पर सौर ऊर्जा उत्पादन के अलावा कोई दूसरा काम नहीं किया जा सकता। इन जमीनों के मालिक गरीब किसान या केंद्र/राज्य सरकारें हैं। केवल किसानों की बंजर जमीन पर इतनी सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है, जिससे 25 साल तक पूरे देश की ऊर्जा जरूरत पूरी हो सकती है।

भारत में प्रदूषण उत्पन्न करने वाले हरेक उद्योग के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह रिन्यूवल एनर्जी सर्टिफिकेट हासिल करे, ताकि जितना वह प्रदूषण उत्पन्न कर रहे हैं, उसकी क्षतिपूर्ति की जा सके। अप्रत्यक्ष रूप से ये उद्योग एक तरह से प्रदूषण कर हैं और प्रत्यक्ष रूप से कोयला चालित बिजली संयंत्रों से कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है। इस नियम से प्रदूषण कम किया जा सकेगा। पूरे विश्व में यह वैधानिक रूप से जरूरी है। इसके लिए सरकारी आदेश भी जारी किया गया, पर क्रियान्वित नहीं हुआ।

यदि यह वाकई में क्रियान्वित होता, तो सौर ऊर्जा उत्पादकों को सरकार पर बोझ डाले बिना धन भी मिलता। और तब सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारी संख्या में आम निवेशक भी आ जाते। संकेत सीधा सा है। सत्ता ही नहीं चाहती कि सौर ऊर्जा क्रांति के लिए प्रयास किए जाएं। छोटे निवेशक भी दूर ही रहते हैं। उन पर भारी-भरकम बोझ लाद दिया गया है। इस वजह से भारत में सौर ऊर्जा का विकास नहीं हो पाया है। देश की बढ़ती आबादी को देखते हुए सौर क्रांति की महती जरूरत है।

निवेशकों को मिले प्रोत्साहन
भारत केवल 1600 मेगावॉट बिजली ही सौर ऊर्जा से उत्पादन कर पा रहा है। इससे भी बड़ा आश्चर्य तो इस बात का है कि 1600 मेगावॉट में से 900 मेगावॉट तो छोटे निवेशक अपने ही संसाधनों से उत्पादित कर रहे हैं। सरकार भी केवल बड़े निवेशकों से ही सौर ऊर्जा के उत्पादन और प्रोत्साहन की बात कर रही है।

सरकार न तो छोटे निवेशकों की कोई सहायता कर रही है और न ही प्रयोगात्मक रूप से आम नागरिकों को इस क्षेत्र में निवेश के लिए उचित सलाह दे रही है। बड़े उत्पादक हमेशा ही अपने लाभ की सोचते हैं। वे उत्पाद को महंगा तो बनाते ही हैं, उत्पादन के नए संयंत्रों का निर्माण भी धीमी गति से करते हैं। यही कारण है कि सौर ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति नहीं आ पा रही है। सौर ऊर्जा सम्बंधित हमारी जो नीतियां हैं, वह आम निवेशक को प्रोत्साहित नहीं कर पा रही हैं।

सौर ऊर्जा के एक संयंत्र को स्थापित करने में सात से आठ करोड़ रूपए की लागत आती है। इससे जो बिजली उत्पादित होगी, उसकी कीमत सात से आठ रूपए प्रति यूनिट तक होगी। यह कीमत कोयले से उत्पादित होने वाली बिजली के बराबर ही होगी। छोटे निवेशकों के चलते ही पिछले एक वर्ष में सौर ऊर्जा के उत्पादन लागत में कमी आई है। सरकारी मदद से दामों में और कमी लाई जा सकती है।
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