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लूट की ‘मौन छूट’

locationजयपुरPublished: Sep 19, 2019 12:39:01 pm

Submitted by:

Amit Vajpayee

राज्य में चंद लोग मिलकर झांसे देते रहे। गली-गली एजेंटों की टीम खड़ी हो गई। घर-घर तक ठगी का जाल बुन डाला। सहकारिता विभाग, पुलिस और खुफिया एजेंसियां सब सोते रहे। उनके बनाए नियम कागजों में ही लिखे रह गए। अलमारियों में बंद फाइलों की ‘खुशबू’ में मदहोश होकर अफसर कुर्सियों पर बैठे रहे। भान ही नहीं रहा कि कहां कौन सा नियम टूट रहा है।

Scam

Scam

अमित वाजपेयी

राज्य में चंद लोग मिलकर झांसे देते रहे। गली-गली एजेंटों की टीम खड़ी हो गई। घर-घर तक ठगी का जाल बुन डाला। सहकारिता विभाग, पुलिस और खुफिया एजेंसियां सब सोते रहे। उनके बनाए नियम कागजों में ही लिखे रह गए। अलमारियों में बंद फाइलों की ‘खुशबू’ में मदहोश होकर अफसर कुर्सियों पर बैठे रहे। भान ही नहीं रहा कि कहां कौन सा नियम टूट रहा है। कौन तोड़ रहा है। उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जानी चाहिए। उनकी यही अकर्मण्ता लाखों लोगों के हजारों करोड़ रुपए ले डूबी।

ठगों के हाथों नहीं, जनता तो उन्हीं नेता, अफसर और कर्मचारियों की मौन शह और मिलीभगत के कारण लुटी, जो जनता की ही कमाई पर पलते हैं। यही मौन ठगों के हौसले, रकम का आंकड़ा और पीड़िता की संख्या बढ़ाता गया। क्या मिलीभगत के बिना संभव है कि कोई लोगों की कमाई बेधड़क लूट ले? क्या ऐसा मुमकिन होता कि यह ठग सोसायटी को ‘बैंक’ कहकर लोगों को झांसे दे जाते? हर नित नए दिन लोगों से जमा-पूंजी ऐंठ पाते? अभी एसओजी की पकड़ में आए संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के प्रबंध निदेशक विक्रम के बड़े नेताओं से नजदीकी ताल्लुकात की बात भी सामने आ रही है। अब पड़ताल में कितना सच सामने आएगा यह भविष्य की बात है।

सच यह है कि यह सभी चिटफंड कम्पनियां नेता और अफसरों की सरपरस्ती में ही पनपीं। इसलिए जिम्मेदारों ने ना कभी निरीक्षण किया, न ऑडिट। न रोका, न टोका। उनकी आंखों के सामने धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े, जालसाजी, झांसेबाजी का जाल पसरता रहा और वे कुछ नहीं कर पाए। असल में कुछ करना ही नहीं चाहा। उन्होंने तो जाल भेदने के बजाय बस ‘बहती गंगा’ में हाथ धोए।

जिम्मेदारों के माथे पर यह ऐसा कलंक है, जो मिटाए नहीं मिटेगा। यह महज अपराध नहीं, यह दुस्साहस है। यह सुनियोजित अपराध आम लोगों के साथ लम्बे समय से किया जा रहा है। किसी ने बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़े थे, किसी ने मकान बनाने के लिए। किसी का अरमान था कि कुछ रकम जमा हो जाए तो बेटे का इलाज हो पाएगा। लेकिन अब आंखों में सिर्फ आंसू हैं। किसी का मकान बिकने को है, किसी को उपचार के लिए भी ब्याज पर पैसे लाने पड़ रहे हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार अब तक नियम खंगालने और बैठक करने तक सीमित हैं। कुछ गिरफ्तारियां जरूर हुईं लेकिन जरूरत अभी उन लोगों को तत्काल राहत पहुंचाने की है, जिन्होंने पेट काटकर पैसे जमा कराए हैं। इन अपराधियों को सबक सिखाना तो आवश्यक है ही साथ ही यह भी जरूरी कि पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाई जाए।

सरकार को चाहिए कि पुलिस की कार्रवाई और न्यायिक प्रक्रिया से इतर खुद सक्रिय हो। सोसायटियों की सम्पत्तियां खंगाले। सभी ठगों और उनके ठिकानों को ढूंढ़े। पीड़ितों को उनका पैसा जल्द से जल्द कैसे मिले, इसकी राह खोले।
सरकार सोचे, उस बुजुर्ग और उसके परिवार पर क्या बीत रही होगी, जिसने सेवानिवृत्ति पर मिली जीवनभर की जमा-पूंजी सोसायटी के हवाले कर दी। जिम्मेदारी पर बैठे अफसर कोई तो एक ऐसा कारण बताएं कि आम आदमी क्यों उन ठगों पर विश्वास नहीं करता? पूरी सरकारी तंत्र की नाक के नीचे ठगों ने आलीशान कार्यालय खोले, सरकार की सहमति (रजिस्ट्रेशन के साथ) से खुले, उनमें बाकायदा लम्बा-चौड़ा स्टाफ बैठा है।

जिम्मेदार तो तब भी नहीं जागे, जब सोसायटियों-कंपनियों की संख्या दर्जनों से सैकड़ों तक और पीड़ितों की संख्या सैकड़ों से लाखों तक जा पहुंची। ठगी गई रकम का आंकड़ा २५ हजार करोड़ तक पहुंच गया, तब भी नींद नहीं टूटी।
खुद आगे बढ़कर संज्ञान लेना और कार्रवाई करना तो दूर, जिम्मेदारों ने तो हद ही कर दी। पीड़ित खुद चलकर पुलिस थानों, जन प्रतिनिधियों और अफसरों तक पहुंचे। हश्र यह हुआ कि वहां से भी उन्हें दुत्कार ही मिली। शिकायतें दस आतीं, एफआइआर मुश्किल से एक दर्ज होती है। ऐसे में अब खुद पुलिस महानिदेशक भूपेन्द्र सिंह और एसओजी को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। सरकार को चिटफंड की आड़ में चल रहीं इन ठग कम्पनियों पर अब शिकंजा कसना ही होगा।

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