scriptसबक कब? | Rising road accident and irresponsible system | Patrika News

सबक कब?

locationजयपुरPublished: Jul 20, 2019 09:01:12 am

Submitted by:

Rajiv Ranjan

साधुवाद, उन नौजवानों को जिन्होंने एम्बुलेंस आने तक घायल की जीवनडोर नहीं टूटने दी।

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सबक! कोई नहीं लेना चाहता। जनता, न पुलिस प्रशासन और ना ही सरकार। चार दिन पूर्व राजधानी जयपुर की सबसे खास सडक़ और व्यस्ततम चौराहे पर सरेशाम बेकाबू कार ने लाल बत्ती पर खड़े दो सगे भाइयों समेत आधा दर्जन लोगों को उड़ा दिया। दोनों भाइयों की मौके पर ही मौत हो गई। सोशल मीडिया पर हादसे के बाद सडक़ पर निर्जीव पड़ी देह के ‘लाइव’ वीडियो धड़ाधड़ चले। हर कोई सन्न!

फिर शुरू हुआ कोसने और नसीहतों का दौर, कोई पुलिस पर बरसा, तो कोई नौसीखिए चालक को लाइसेंस देने वाले परिवहन विभाग पर। लेकिन क्या किसी ने इतनी बड़ी घटना से कोई सबक लिया? नहीं। तभी तो उसी चौराहे पर शुक्रवार को अलसुबह फिर चार दिन पुराना दृश्य कौंध गया। लग्जरी कार, नशे में धुत्त चालक, युवती और हवा में कलाबाजियां खाकर सडक़ पर गिरती दुपहिया चालक की देह। हादसे के कुछ क्षणों बाद ही फिर सोशल मीडिया पर क्लीपिंग, चौराहे से गुजरता बेफिक्र यातायात।

साधुवाद, उन नौजवानों को जिन्होंने एम्बुलेंस आने तक घायल की जीवनडोर नहीं टूटने दी। यही हैं असली हीरो। सभी ऐसा करें तो हादसों में कई घायलों की जानें बचाई जा सकती हैं। लेकिन अफसोस ! सरकार और अफसरशाही इतनी निष्ठुर हो गई है कि हादसे-दर-हादसे पर भी उनकी नींद नहीं टूटती? क्या प्रशासन के पास इस बात का जवाब है कि पहली घटना के बाद उसने क्या कदम उठाए? क्या चौराहे पर तैनात किसी सिपाही या पीसीआर स्टाफ पर कार्रवाई हुई? किसी ट्रैफिक पाइंट पर सतर्कता बढ़ाई? ऐसे लचर और निर्लज्ज सिस्टम पर धिक्कार है।

गुरुवार को ही दोपहर 2.45 बजे महामहिम का काफिला टोंक रोड से गुजरते देखा। ट्रैफिक पुलिस ऐसी मुस्तैद कि इंसान तो इंसान, जानवर भी सडक़ पार नहीं कर सकता। फिर क्यों आम आदमी को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है? प्रदेश में हादसों की वजह सडक़ों पर बढ़ती वाहनों की संख्या और पार्किंग की घटती जगह भी है। जनता में ट्रैफिक सेंस की कमी और लचर कानून भी जिम्मेदार है। पुलिस विभाग कम नफरी की दुहाई देता है, लेकिन वह जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। क्यों नहीं यातायात नियमों की पालना कराई जाती? ले-देकर क्यों छोड़ दिए जाते हैं अपराधी।

भ्रष्टाचार की मिसाल अशोक मार्ग के हादसे में देख चुके हैं। चालक का ब्लड सैंपल ही बदल दिया गया। क्योंकि अपराधी रसूखदार था। हमारे सिस्टम की खामी ही यही है। कानून में इतनी गलियां हैं कि सरेआम लोगों को रौंदने वाले दस-बीस घंटे में जमानत पर छूट जाते हैं। हादसे के दौरान नशे में गाफिल चालक मेडीकल में पाक-साफ निकल जाते हैं। फिर क्या जरूरत है ऐसे कानून की, जिसका सख्ती से पालन ही नहीं हो पाए। प्रदेश की सबसे बड़ी अदालत (हाईकोर्ट) के बाहर यातायात और पार्किंग की बदहाली देखी जा सकती है। क्यों नहीं अदालत खाली पड़े अमरूदों के बाग में ‘पार्किंग’ के आदेश देती। सरकार चाहे तो हादसों पर नियंत्रण हो सकता है। बस इच्छाशक्ति और अनुशासन की जरूरत है।

नशे में वाहन चलाने, लाइट जंप करने और बिना हेलमेट, बगैर लाइसेंस वालों के खिलाफ अभियान तो चलाए जाते हैं। लेकिन परिणाम? जवाहर लाल नेहरू मार्ग को आदर्श सडक़ तो बना दिया, आदर्श परिस्थितियां नहीं बना पाए। कैमरों में चालान कम, हादसों की रिकॉर्डिंग ज्यादा दिखेगी। हादसे रोकने हैं तो ऊपर से नीचे तक जिम्मेदारियां तय करनी होंगी। कानून की विसंगतियां दूर कर अपराधियों को दंडित करना होगा। लापरवाही या नशे में वाहन चलाकर हादसा करने और किसी निर्दोष की मौत पर जिम्मेदार चालक के खिलाफ हत्या का मामला चले। पीडि़त को त्वरित न्याय मिले। नियमों का उल्लंघन करने वालों के लाइसेंस जब्त हों, साथ ही भारी जुर्माना लगाया जाए।

केन्द्र के नए यातायात कानून के प्रावधानों का कड़ाई से पालन हो। आमजन में यातायात के प्रति जागरूकता भी जरूरी है। लग्जरी गाडिय़ों की बिक्री से पहले चालक का टेस्ट हो, पार्किंग के बिना वाहन रजिस्ट्रेशन न हो। भय बिन प्रीत न होय। सरकार और पुलिस की सख्ती और आमजन में जागरूकता ही सडक़ हादसों से बचा सकती है। इससे प्रदेश में लगातार बढ़ रहे हादसों पर अंकुश भले न लगे, कमी जरूर होगी।

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