सवाल यह खड़ा होता है कि बैंक गरीब को नियमों की लम्बी फेहरिस्त बताते हैं और अमीरों को अपना दामाद बना लेते हैं। किसान को कर्ज माफी के लिए भीख मांगनी पड़ती है और अमीरों के घर जाकर पैसा देते हैं। इतना ही नहीं, निमो घोटाले में तो पंजाब नेशनल बैंक ने कम्प्यूटर ऑपरेटिंग पासवर्ड ही नीरव मोदी एंड टीम को दे दिए। इससे बड़ा गद्दारी का उदाहरण कोई नहीं हो सकता है। गांवों में किसानों को जमीन और यहां तक की अपनी भैंसें भी गिरवी रखनी पड़ती हैं, तब जाकर कुछ हजार का ऋण मिल पाता है। किसान फसल खराब होने पर कर्ज नहीं चुका पाता, तो वसूली के लिए वित्तीय कंपनियां उसका जीना मुश्किल कर देती है।
ताजा उदाहरण ही ले लें, किसान ज्ञानचंद का। ज्ञानचंद ने ट्रेक्टर खरीदने के लिए ऋण लिया। सारा कर्जा उसने चुका दिया। मात्र 90 हजार रुपए बाकी रहे। वित्तीय कंपनी की वसूली टीम उसके खेत पर पहुंचती है और उसका ट्रैक्टर जब्त कर लेती है। ज्ञानचंद की मानो धड़कनें ही बंद हो गर्इं। उसने ट्रैक्टर को बचाने के लिए खूब हाथ पांव जोड़े, लेकिन वसूली टीम पर कोई असर नहीं हुआ। निर्दयी वसूली टीम के गुंडों ने ट्रैक्टर उस पर चढ़ा दिया और किसान ज्ञानचंद सदा के लिए उसी ट्रैक्टर के नीचे सो गया, जिसके सहारे उसने खेत को सदा जोतने के सपने देखे थे। दूसरा ताजा उदाहरण पंजाब का। जहां किसान जसवंत ने डेढ़ एकड़ जमीन पर 10 लाख रुपए का ऋण ले रखा था। बैंक वसूली टीम के लगातार दबाव से तंग आकर उसने अपने पांच साल के बेटे को सीने से लगाकर नहर में कूदकर जान दे दी।
एक तरफ किसान ज्ञानचंद और जसवंत जैसे हजारों किसान छोटे-छोटे कर्जे को चुका नहीं पाने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं और दूसरी ओर पूरे के पूरे बैंंकों को लूटकर देश छोड़कर भागने वालों के मजे हो रहे हैं। इस पर भी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली चुप्पी साधे हैं। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन सफाई दे रही हैं। सफाई ही देनी है, तो प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को देनी चाहिए। इनकी चुप्पी बहुत सवाल खड़े करती है, वो भी तब जब दावोस में उद्योगपतियों के समूह में खड़े होकर नीरव मोदी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ फोटी खिंचवाई। क्या प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचवाने से पहले लोगों के बैक ग्राउंड की जानकारी नहीं ली जाती है? इतना बड़ा घोटालेबाज नीरव मोदी आखिर कैसे मोदी के साथ फोटो खिंचवाने में सफल हो जाता है? यह वो सवाल है, जिसका देश के 125 करोड़ लोग जवाब चाहते हैं। मोदी राज में अच्छे दिनों के सपने दिखाए गए थे, कितने अच्छे दिन आए और कितने नहीं, यह तो अगले साल के चुनाव में जनता खुद ही बता देगी। मोदी या जेटली इस मामले में चुप्पी तोडऩे में जितनी देरी करेंगे, उतनी ही जनता के जेहन में सवालों की संख्या बढ़ती जाएगी। यह जनता है, सब जानती है। ये सिंहासन खाली करने को नहीं कहती, बल्कि सिंहासन से एक ही झटके में नीचे पटक देती है।
PNB Bank Scam से अब तक जो बातें सामने आई हैं, उससे साफ है कि यह मिलीभगत का सबसे बड़ा उदाहरण है। बैंकों की हर माह, तिमाही, छमाही और सालाना ऑडिट होती है, उसमें भी किसी को पकड़ में नहीं आना, बहुत बड़ा सवाल है। उल्लेखनीय बात यह है कि जब कोई एलओयू के तहत कर्ज लेता है, तो उसे ९० दिन में कर्ज चुकाना होता है, लेकिन यहां सालों साल तक मामला चला रहा। सबसे हैरानी बात तो यह है कि जिस बैंक की ब्रांच में यह घोटाला हुआ है, उसमें 2016 में 5370 करोड़ रुपए का घाटा होना बताया गया, इसके बावजूद किसी के कान खड़े नहीं हुए। एलओयू यानी लैटर ऑफ अंडरटेकिंग का ब्रांच मैनेजर को 100 करोड़ का ही पावर बताया जाता है, इससे अधिक के मामलों में चेयरमैन और सीईओ लेवल पर ही जाकर अनुमति दी जाती है। क्या इस मामले में अभी तक चैयरमैन और सीईओ से पूछताछ की जांच एजेंसियों ने? देश के लिए बहुत गंभीर मामला है और 11356 करोड़ का घोटाला यूं ही बिना किसी संरक्षण के नहीं हो सकता है। सात साल तक यह खेल चलता रहा और बैंक के रिकॉर्ड में एलओयू की एंट्री ही नहीं की गई। छोटी-सी चाय की दुकान चलाने वाला भी रोज हिसाब को मिलाता है, मगर यहां तो सबने ही आंखें बंद कर ली। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने इस मामले में सफाई दी और कहा कि यह 2011 का मामला है। चलो मान लेते हैं उनकी बात, मगर मोदी सरकार को चार साल हो गए। 2014 में सत्ता संभालते ही क्यों नहीं खुलासा किया गया? चार साल तक मोदी सरकार क्या कर रही थी? यदि ये पाप यूपीए सरकार में शुरू हुआ, तो सबसे ज्यादा पाप एनडीए सरकार में भी हुआ…।
हालत यह है कि किसी आदमी की ऋण की किस्त भी बाकी रह जाए या लेट हो जाए, तो बैंक उससे पैनल्टी वसूल करते हैं और सिबिल में डाल देते हैं। यानी वह किसी भी बैंक से भविष्य में ऋण ना ले सके। सिबिल से बाहर आने के लिए इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, जितनी तो मांझी को भी पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने में नहीं हुई होगी। जनता के पैसे की लूट का अधिकार, आखिर कैसे चंद रईसजादों को दिया जा रहा है? बड़ी बड़ी बातें की जा रही थीं। ललित मोदी और विजय माल्या को वापस लेकर आएंगे। आ गए क्या दोनों? ले आए क्या? माल्या ने बैंकों से जो 9000 करोड़ का कर्ज लिया, क्या उसकी रिकवरी हुई? यह समझ से परे है आखिर पिछले चुनाव में आग उगलने वाले, भ्रष्टाचार को सहन नहीं करने वाले, विदेशों से काला धन लाने का वादा… न खाऊंगा ना खाने दूंगा का नारा देने वाले नरेन्द्र मोदी चुप क्यों हैं? क्यों नहीं समूचे मामले पर जवाब दे रहे हैं? नरेन्द्र मोदी ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मौनी कहते थे अब स्वयं मोदी क्या हैं? अब वक्त है, विपक्ष और देश के सामने सचाई सामने लाने का।