मनुष्य को ईश्वर ने कर्म का अधिकार दिया है। कोई भी कर्म करने उसके अच्छे बुरे परिणाम के पूर्व चिंतन के लिए विवेक रूपी इन्द्रिय दी हैं। इंसान के आज के कर्म उसका भविष्य तय करते हैं। इंसान के विचार उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। भाग्य और भविष्य का निर्माता खुद मानव है। कोठारी ने इसे बहुत सरल तरीके से बताया है।
पंडित विजय काशिव, ज्योतिषाचार्य, हरदा
आलेख में प्रेतात्मा का चिंतन में जन्म से मरण और पुन: जन्म लेने के चक्र एवं जीवन में संतानोत्पत्ति से सांसारिक व्यवस्था के संचालन की विस्तृत व्यवस्था को बताया है। शरीर नाशवान है, फिर भी जीव उचित अनुचित को भुलाकर स्वार्थ में जीवन भर लगा रहता है। लेख शरीर की आठों प्रकृति की सक्रियता का सुंदर विश्लेषण है।
देवेंद्र ठाकुर, शिक्षक, सिवनी
आत्मा सदैव शुद्ध रहती है। व्यक्ति की देह पवित्र और अपवित्र होती रहती है। ज्ञानेन्द्रियां जिस व्यक्ति के नियंत्रण में रहती हैं, वह पुनर्जन्म से लेकर आने वाले जन्मों तक का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। कर्म और कुकर्म के बीच का गहरा अंतर उसे ज्ञात हो जाता है। वह ईश्वर से लगन लगाकर स्वयं की आत्मा से बात कर लेता है, जो उसका मार्गदर्शन करते हुए मोक्ष मार्ग में सदैव प्रशस्त करने के लिए प्रेरित भी करती है। आज का लोभी मनुष्य ईश्वर की भक्ति तो कर रहा है, किंतु उसमें सेवा कम स्वार्थ ’ज्यादा है। यही वजह है कि वह भगवान भक्ति में लीन होने के बाद भी कष्टों को भोगता है।
बीके विनीता बहन, मोटिवेटर, जबलपुर
84 लाख योनियों में फंसा मनुष्य अपने जीवनकाल में जो भी कर्म करता है, उसे उसी फल के अनुरूप दूसरे जन्म में पहुंचना पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए गीता के माध्यम से मनुष्य को कर्म की महत्ता बताने वाला गुलाब कोठारी का आध्यात्मिक लेख चिंतन से युक्त है। सीधा सार यह है कि मनुष्य को किसी भी कर्म को करने से पूर्व चिंतन जरूर करना चाहिए कि इसका उसके वर्तमान जन्म और दूसरे जन्म पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कलियुग में मनुष्य अर्थलोभी और स्वार्थी हो गया है। ऐसे में वह यह भी भूल जाता है कि वह जो काम कर रहा है वह उसके जन्म-जन्मांतर के पुण्य अथवा वर्तमान व भविष्य पर क्या असर डालेगा।
पंडित प्रकाश डंडौतिया, मुरैना