प्रश्न यह है कि आखिर इतनी सुरक्षा के बाद पेपर लीक कैसे हो गया? कोई न कोई जयचंद तो सीबीएसई में ही है। उसे तलाशने की जरूरत है। जब बाहरी किसी व्यक्ति को पेपर की कोई जानकारी ही नहीं थी, तो साफ है कि सीबीएसई के ही किसी व्यक्ति ने ही चंद रुपयों के लालच में सारी परीक्षा प्रणाली और बोर्ड की साख को धू्मिल कर दिया? वैसे पेपर लीक की संभावना जिला स्टोरेज सेंटर से भी संभव है, क्योंकि यहां सात दिन पहले ही सील बंद पेपर भेज दिए जाते हैं। ऐसे में पुलिस द्वारा कोचिंग संचालकों और छात्रों से पूछताछ करना व उन्हें हिरासत में लेना एकदम सही कदम है, परंतु असली गुनहगार भी तो सामने आए। सीबीएसई से पहले एसएससी के पेपर लीक हुए, फिर भी सीबीएसई ने 10वीं और 12वीं के पेपर्स को बचाने के लिए कोई चाक चौबंद व्यवस्था नहीं की। प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या गणित और अर्थशास्त्र का ही पेपर लीक हुआ या इससे पहले के सारे पेपर्स भी बाजार में आ गए थे? छात्रों और अभिभावकों को अंदेशा है कि पेपर्स तो सारे ही लीक हुए हैं। यदि यह अंदेशा सच निकला, तो करीब साढ़े 28 लाख बच्चों के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। ईमानदारी से सारे साल तैयारी करने वालों से ज्यादा नकलची बाजी मार जाएंगे। इससे घोर अन्याय और पाप कुछ नहीं होगा।
अवसाद में बच्चे किसी भी तरह का कोई अप्रिय कदम उठाने से नहीं चूकेंगे, उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? जब रिजल्ट आएगा, तब हमेशा अच्छे नंबर प्राप्त करने वाले छात्र से अधिक नकलची के नंबर आएंगे, तो क्या होगा? आखिर सरकार ने अब तक किसी अधिकारी को जिम्मेदार ठहराकर कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का यह कहना पर्याप्त है कि मैं भी अभिभावक हूं, दर्द समझता हूं , लेकिन दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। सीबीएसई की एक अलग वैल्यू है और इस तरह से बच्चों के साथ अन्याय होगा, तो देश के लिए बहुत बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।