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माननीयों के प्रशासनिक दखल से बिगड़ते हैं हालात

विधायक अपने लोगों को बताना चाहते हैं कि वे नौकरशाह पर शासन कर सकते हैं।

Feb 24, 2018 / 02:25 pm

सुनील शर्मा

govt office

govt officer

– शरद चंद्र बेहार

प्रशासनिक कामकाज को लेकर नौकरशाहों और राजनेताओं में टकराव लंबे समय से होता रहा है। लेकिन, कुछ दशकों में कार्य संस्कृति में बदलाव आ गया है। आप सामने वाले व्यक्ति के साथ सम्मान से पेश आएंगे तो सम्मान मिलेगा। यदि सम्मान और बातचीत का रास्ता छोड़ दिया तो सामने वाला भी इसे छोड़ देगा। किसी भी समस्या का समाधान तो बातचीत से ही होता है। मारपीट से तो कभी कोई हल नहीं निकलता।
हमारे लोकतांत्रिक देश में तो हम आतंकियों से भी बातचीत करते हैं। फिर, नौकरशाहों के साथ मारपीट क्यों? जनप्रतिनिधि और नौकरशाह यदि सिद्धांतों के आधार पर काम करते हैं तो कोई समस्या नहीं होती लेकिन किसी एक ने सिद्धांत की अवहेलना कर मनमानी की तो झगड़ा होता है। आमतौर पर ऐसा राजनेताओं की ओर से होता है। नौकरशाही में अपवादस्वरूप ही ऐसा होता है।
मैंने जब काम की शुरुआत की तो समस्या को कुशलता से निपटा लिया जाता था। कई बार बहुत से मंत्री अपनी ऐसी बात मनवाना चाहते थे जिन्हें हम सैद्धांतिक तौर पर ठीक नहीं समझते थे। टकराव की स्थिति में कभी तो मंत्री बात को समझ जाते थे। यदि वे अपनी मनमानी करना ही चाहते थे तो कहा करते थे कि आप मना कर दें और मैं लिखकर आदेश दे दूंगा। टकराव का यह आखिरी स्तर होता था। लेकिन, अब परेशानी यह हो गई है कि कार्यपालिका, विधायिका और यहां तक कि न्यायपालिका के कार्यों के बीच का अंतर काफी कम होता जा रहा है।
विधायिका की ही बात करें तो विधायक प्रशासनिक काम में ऐसे दखल देते हैं जैसे वे कार्यपालिका में हों। उनका काम कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाना होता है। जब से सांसदों और विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में निर्धारित कोष से खर्च करने के अधिकार मिले हैं, वे नौकरशाहों को सीधे आदेश देकर काम करवाना चाहते हैं। सिद्धांत विपरीत काम रुके तो कहते हैं कि अड़ंगा लगाया जा रहा है। विधायक बताना चाहते हैं कि वे नौकरशाह पर शासन कर सकते हैं। यही नहीं, कभी-कभी तो वे पार्टी कार्यकर्ताओं को अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर देते हैं। वे भी नौकरशाहों को आदेश देकर शासन करना चाहते हैं।
यदि वे नौकरशाहों को आदेश देकर काम करवाना चाहते हैं तो फिर मंत्री बनें। लेकिन, मतदाताओं के बीच अपने अहम की तुष्टि उन्हें आवश्यक लगती है और अहम का यह टकराव कभी-कभी मारपीट में बदल जाता है। जरूरत है कि पार्टी स्तर पर कार्यकर्ताओं और विधायकों के लिए आचार संहिता बने। इसके अलावा जितना जल्दी हो, विधायकों और सांसदों का क्षेत्र के विकास के नाम पर मिलने वाला कोष बंद हो। इससे कार्य संस्कृति और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ उनके व्यवहार में बदलाव आएगा।

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