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कितने जरूरी ये तामझाम?

Published: Jan 16, 2015 11:35:00 am

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Super Admin

इंदिरा गांधी की उन्हीं के गाड्र्स द्वारा हत्या करने के बाद मांग उठी कि प्रधानमंत्री की सुरक्ष्…

इंदिरा गांधी की उन्हीं के गाड्र्स द्वारा हत्या करने के बाद मांग उठी कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए विशेष बंदोबस्त होने चाहिए। एक कमेटी बनाई गई, जिसकी अनुशंसाओं पर 1985 में सरकार ने पीएम के लिए एक “स्पेशल” ग्रुप बनाया। बाद में इस “आइडिया” को विस्तार देने की मुहिम शुरू हुई और बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुंच गई कि अब हर नेता सुरक्षा से घिरा नजर आता है! सवाल है कि क्या वाकई सभी को सुरक्षा की जरूरत है या फिर यह सिर्फ रूतबे के लिए हो रहा है।


जोखिम के लिए थी यह सुरक्षा
किसी वीआईपी को जब सुरक्षा दी जाती है, तो उसका आकलन आईबी और राज्य पुलिस द्वारा किया जाता है। बुुनियादी तौर पर यह आंका जाता है कि उस व्यक्ति को कितना जोखिम है। इस आकलन से पता लगता है कि वे वीआईपी किस श््रेणी में आते हैं। फिर उन्हें परिभाषित श््रेणी के हिसाब से सुरक्षा मुहैया करा दी जाती है। लेकिन कई दफा सुरक्षा देने का बुनियादी कारण गलत भी होता है।

आजकल राजनीतिक आधार पर भी सुरक्षा दी जा रही है। कई नेता सरकार को समर्थन देने के नाम पर ही भारी सुरक्षा ले लेते हैं। असल में जिन नेताओं को सुरक्षा की जरूरत है, सिर्फ उनको ही सुरक्षा मिलनी चाहिए।

अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं का यह कहना कि वे सुरक्षा नहीं लेंगे, वह भी सही नहीं है। अगर आप वाकई जनता की सेवा करना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आप सुरक्षित रहें। हालांकि वे अलग उदाहरण पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे बड़े नेताओं को सीखना चाहिए। सिर्फ बड़े नेता होने का मतलब यह नहीं है कि सुरक्षा भी बढ़ जाए। केवल इस वजह से सुरक्षा पर खर्चा बढ़ाना नासमझी है। कई नेता केंद्र सरकार को समर्थन के एवज में स्पेशल फोर्स मांग लेते हैं, यह रवैया सरासर गलत है।

आजकल कई मुख्यमंत्री केंद्र से विशेष सुरक्षा मांगते हैं, जो कि राजनीतिक समीकरणों के आधार पर भी दी जाने लगी है यानी सुरक्षा सौदेबाजी में शामिल हो गई है। अगर कोई नेता वाकई हकदार है, तो उसे पूर्ण सुरक्षा मिलनी चाहिए। चाहे कोई भी हो, आतंकवाद से लड़ने वाले लोग हों, एक्टिविस्ट हों, जोखिम में काम करने वाले आम नागरिक हों, पत्रकार हों, उन्हें सुरक्षा मिले। केवल स्टेटस के लिए सुरक्षा मांग लेना जायज नहीं है, ये भी एक किस्म का भ्रष्टाचार है।

सुरक्षा से बढ़ती है दूरी
जिन नेताओं के पास भारी सुरक्षा रहती है, उनसे जनता को मिलने में मुश्किल आना लाजिमी है। अगर ऎसे नेता जनता से मिलना भी चाहते हैं, तो पहले पुलिस वहां बंदोबस्त करती है, प्रोटोकॉल रखे जाते हैं, फिर वे जनता से मिल पाते हैं। वरना राजीव गांधी जैसा जोखिम रहता है। बाकी सारी दुनिया में भी नेता एकदम से जनता के बीच नहीं चले जाते।

पहले पूरी तैयारी की जाती है। हाल ही में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन कोलकाता गए, तो अचानक चाट खाने लगे। लोगों को बड़ी हैरत हुई। मीडिया ने बढ़ा-चढ़ाकर कवर किया। असल में ऎसे घटनाक्रम पहले से ही “कोरियोग्राफ्ड” होते हैं। उनके सुरक्षाकर्मी पहले से पूरी तैयारी कर लेते हैं, जो कि अदृश्य होती है। अमरीका के राष्ट्रपति को हम देखते हैं कि वे अचानक बर्गर खाने लोगों के बीच किसी रेस्तरां में पहुंच जाते हैं और हमें लगता है कि वे जनता से कितने जुड़े हैं, लेकिन असल में उनके बाहर या आसपास पूरी सुरक्षा होती है। पूरा भरोसा होने के बाद ही वे कहीं निकलते हैं।

बदलनी पड़ेगी सोच
सुरक्षा की जरूरत और राजनीतिक रूतबे में फर्क करना पड़ेगा। हमारे देश में भी लोग ज्यादा सुरक्षा वाले नेता की ओर आकर्षित होते हैं। नेताओं को भी लगता है कि लोग भारी-भरकम लवाजमा देखकर हमें वोट देंगे। ऎसी सोच में बदलाव जरूरी है। अरविंद केजरीवाल ने शुरूआत की है, हो सकता है कि उससे बाकी नेताओं पर भी फर्क पड़ेगा। लेकिन जान का जोखिम लेने से बचना ही चाहिए। हां, फिजूल की सुरक्षा रोकी जानी चाहिए।

अजय साहनी
सुरक्षा विशेषज्ञ

…पर बनी रूतबे की पहचान
हमारे देश में वीआईपी ज्यादातर अपने स्टेटस सिंबल के लिए सुरक्षा लेना पसंद करते हैं। कई नेता ब्लैक कैट कमांडो लिए घूम रहे हैं। असल में वो दिखाना चाहते हैं कि हम बड़े महत्वपूर्ण है। ये कमांडो न देकर बहुत सी ऎसी सुरक्षा दी जा सकती है, जो इतनी खर्चीली न हो। इंग्लैंड, अमरीका की मिसाल हम ले सकते हैं। वहां पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को जो सुरक्षा मिलती है, उसमें वो न किसी के सामने बंदूक दिखाते हैं, न लोगों के लिए अन्य समस्या खड़ी करते हैं।

सैनिकों का अपमान
एक दौर ऎसा भी आया था जब उत्तर प्रदेश के हर दूसरे नेता के साथ ब्लैक कैट कमांडो खड़े रहते थे। ब्लैक कैट कमांडो एक सैनिक होता है, ऎसे खड़ा करके नेता उसका अपमान कर रहे होते हैं। सुरक्षा के कई तरीके होते हैं, उन्हें बुद्धिमता से इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे किस्पेशल फोर्सेज की जरूरत न पड़े।

ज्यादा सुरक्षा वाले नेता को अलग रास्ते से जाना चाहिए, दूसरे गेट का उपयोग करना चाहिए। जिस गाड़ी में जाते हैं, उसमें बत्ती, झंडे ज्यादा नहीं हों, तो आतंकी को वैसे ही नहीं पता लगेगा कि कौन जा रहे हैं। यानी आप अपनी व्यक्तित्व को लो-प्रोफाइल रखेंगे, तो ज्यादा सुरक्षा की जरूरत नहीं पड़ेगी। सुरक्षा पर भारी-भरकम खर्च किसी विशेष राजनीतिक घराने पर करना भी सही नहीं है। हमारे यहां तो तीनों सेना के अध्यक्ष भी हद से ज्यादा सुरक्षा लेकर चलते हैं।

हमें पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीस से सीखना चाहिए। वे काफी वरिष्ठ थे। लेकिन उन्होंने घर का गेट तक हटवा दिया था। जब रक्षा मंत्री सुरक्षित महसूस कर रहा है, तो बाकी नेताओं को सबक लेना चाहिए। असल में एक ऎसी नीति होनी चाहिए, जिससे राजनेता सुरक्षित भी रहें और कम से कम खर्चा हो। नेताओं के कम से कम नखरे हों। हमारे देश में नेताओं की “स्पेशल” होने की सोच पर चोट होनी चाहिए। वे सोचते हैं कि जब सैनिकों को तनख्वाह मिल रही है, तो वे अपनी सुरक्षा में लगाकर वसूलें।

लेकिन उन्हें देखना चाहिए कि जब 26/11 का हमला होता है, तो मोर्चे पर सैनिकों की कमी होने लगती है, क्योंकि ये वीआईपी सिक्योरिटी में लगे होते हैं। वीआईपी सिक्योरिटी चाहिए, तो सेवानिवृत्त सैनिकों की सेवाएं लेनी चाहिए। सरकार उनकी सेवा को रिन्यू करे दे। लेकिन हमारे अफसरों के साथ भी बड़ी दिक्कत है। वे नई सोच की बजाय परम्परागत ढंग से ही काम करते हैं। बाहर लोगों से राय लेना नहीं चाहते।

दुनिया के कई देशों में सुरक्षा के मसले पर कार्यरत, सेवानिवृत्त सैनिकों, मीडिया आदि से सलाह ली जाती है। सवाल ये उठता है कि कई नेताओं को ब्लैक कैट कमांडो क्यों दिए जाएं। स्टेट पुलिस या पैरामिलिट्री फोर्स से भी काम चल सकता है। जरूरी नहीं है कि सैनिकों को ही लगाया जाए। इससे भी ज्यादा खर्चा इनके दफ्तर, लाल बत्ती के प्रोटोकॉल और गाडियों पर होता है। इसलिए ऎसा तरीका सरकार को अपनाना चाहिए कि सुरक्षा भी हो और खर्चा भी कम आए।

खुद क्यों न कर लें इंतजाम
आज के नेता सुरक्षा को अपनी ताकत का प्रतीक मानते हैं। देश सेवा का भाव शायद ही किसी नेता में बचा है। सुरक्षा रखना जरूरत से ज्यादा कुछ हद तक “फैशन” भी हो गया है। अगर नेताओं को जान का इतना ही जोखिम है, तो वे खुद अपनी निजी सुरक्षा का इंतजाम क्यो नहीं कर लेते। क्यों वे जनता पर इसका बोझ डाल रहे हैं।

मारूफ रजा
वरिष्ठ पत्रकार

मनोहर पार्रिकर
मनोहर पार्रिकर गोवा राज्य के मुख्यमंत्री होने के बाद भी सुरक्षा नहीं लेते हैं। मुख्यमंत्री होने के बाद भी उन्होने एक व्यक्ति से स्कूटर पर लिफ्ट मांग ली थी। वे किसी परिचारक को भी नहीं लेकर चलते हैं। उनके पास एक टाटा इनोवा गाड़ी है, जो उन्हें तब मिली थी, जब वे विपक्ष के नेता थे। वे लोगों से अपने ई-मेल आईडी के माध्यम से हमेशा जुड़े रहते हैं।

ममता बनर्जी
मु ख्यमंत्री होने के बाद भी दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी अपने पूराने निवास में ही रहती हैं। जब पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी कोलकाता में उनके घर गए थे, तो उन्होंने कोलकाता नगर निगम के कर्मचारियों को अपने घर को केवल एक कोट ही पेन्ट करने को कहा था। एक बार दिल्ली से घर जाते समय उनकी चप्पल टूट गई थी और वे नंगे पैर ही हवाई अड्डे पहुंचीं।

मणिक सरकार
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मणिक सरकार सामान्य फ्लैट में रहते हैं। अपना पूरा वेतन और भत्ता पार्टी कोष में जमा कर देते हैं। उनका वेतन 9200 रूपए है, जो देश में किसी मुख्यमंत्री का सबसे कम वेतन है। उनकी कुल चल-अचल सम्पत्ति की कीमत मात्र 2.5 लाख रूपए है। चुनाव में मणिक सरकार ने अपने एफिडेविट में 1080 रूपए नकद और बैंक में 9720 रूपए दिखाया था।

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