देश में पीने का 85 फीसदी पानी भू-जल स्रोतों पर निर्भर है। बांधों के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण के चलते पानी आना बंद हो रहा है। नदियों को जोडऩे की योजना राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रही है। भू-जल को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रबंधन की जरूरत है। सब जानते हैं कि ‘जल है तो कल है।Ó लेकिन क्या महज इस नारे को सरकारी होर्डिंग्स में लगाने या विज्ञापन देने भर से इसका उद्देश्य पूरा हो जाएगा? जब तक सरकार, गैर सरकारी संगठन और आमजन अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, तब तक सरकारी बैठकें रस्म अदायगी से ऊपर नहीं उठ पाएंगी। जरूरत पानी को लेकर राष्ट्रीय चेतना जगाने की है। पानी बचाने के अभियान को जन-जन का अभियान बनाने की है। बीते चार साल में स्वच्छता को लेकर जैसा माहौल बना, क्या वैसा पानी बचाने को लेकर नहीं बन सकता?
नए जल शक्ति मंत्री गिरते भू-जल को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें इसके लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना होगा। लापरवाह अफसरों को सजा दिलानी होगी तो अच्छा काम करने वालों को पुरस्कृत भी करना होगा। जल संकट आज देश का सबसे बड़ा संकट है। हर साल खरबों रुपए बाढ़ या सूखे से निपटने में खर्च होते हैं, क्यों नहीं बाढ़ के पानी का सदुपयोग करने की तकनीक विकसित की जाए। हर साल हर राज्य सरकार के मंत्री-नेता पानी बचाने की तकनीक सीखने इजरायल जाते हैं, लेकिन उसके परिणाम कहीं देखने को नहीं मिले। मंत्री को अधिकारियों को निर्देश देने पड़ें, इसका अर्थ अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा। जल हमारा जीवन है। जीवन के साथ खिलवाड़ करने का हक किसी को नहीं मिलना चाहिए।