सरकार की यह योजना विफल न हो इसके लिए इन विलेज के आस-पास तीस किलोमीटर के क्षेत्र में कोई भी व्यावसायिक गतिविधि प्रतिबंधित होगी। प्राधिकरण का यह फैसला राजनीति से प्रेरित और आगामी चुनावों के मद्देनजर लिया गया लगता है। राजमार्गों के विकास की जमीनी हकीकत देखी जाए तो इस फैसले से आम नागरिकों की परेशानियां ही बढ़ेंगी। अभी किसी भी टोल प्लाजा पर जाइए, सभी जगह वाहनों की लम्बी कतारें मिलती हैं। सडक़ परिवहन मंत्री
नितिन गडकरी की तमाम घोषणाओं के बावजूद ज्यादातर हाइवे जगह-जगह क्षतिग्रस्त हैं। अधूरी सडक़ों पर टोल वसूली चल रही है। टोल प्लाजा पर पृथक फास्ट टैग लाइनें नहीं बनी हैं।
वहां लंबी कतारों की वजह से जाम की स्थिति बनी रहती है। अब यदि वहां हाइवे नेस्ट खोल दिए जाएंगे तो मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। पहले ही राजमर्गों पर भूमि अधिग्रहण, मुआवजे को लेकर अनेक मामले न्यायालयों में विचाराधीन हैं। हाइवे नेस्ट के लिए अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण की जरूरत पड़ेगी। इन पर खर्च होने वाली राशि भी यात्रियों से ही टोल दरों में व़ृद्धि कर वसूली जाएगी। फिर जब टोल प्लाजा को भीड़ से मुक्ति दिलाने के लिए सरकार फास्ट टैग लेन आवश्यक करने और सभी नई गाडिय़ों में फास्ट टैग डीलर से ही लगाने की बात कर रही है, इन नेस्ट का क्या औचित्य रह जाएगा।
प्रस्तावित हाइवे विलेज के ३० किलोमीटर के दायरे में व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने का फैसला भी व्यावहारिक नहीं होगा। अभी ज्यादातर राजमार्गों पर हर एक किलोमीटर पर ढाबे, मोटल, रिजॉर्ट खुल गए हैं। हर १५-२० किलोमीटर पर कस्बे विकसित हो गए हैं। जब ये हाइवे विलेज बन जाएंगे तो उन हजारों लाखों लोगों के
रोजगार का क्या होगा जो कि इन ढाबों, होटल, मोटल आदि से जुड़े हैं। राजमार्गों के विकास, टोल वसूली के कम से कम भार तथा राजमार्गों पर सुरक्षा के उपाय सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।