भले ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राजनीति में स्वच्छता का कितना ही सख्त संदेश दें, राजनीतिक पार्टियां इस स्वच्छता अभियान में साथ देने को कतई तैयार नहीं दिखतीं। बल्कि अपराधियों के प्रति अपने प्रेम का बढ़-चढ़ कर ढिंढोरा पीटने में खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं। होना तो यह चाहिए था कि प्रधानमंत्री की चेतावनी के बाद आरोपित विधायक को तुरंत पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता, पर नोटिस की खानापूर्ति कर मामले को दबाने की कोशिश की गई। जब प्रधानमंत्री के कथन को इस तरह लापरवाही में उड़ा दिया जा सकता है तो देश में किसकी मजाल कि राजनेताओं की आपराधिक गतिविधियों की ओर उंगली भी उठाए।
राजनीतिक दलों की ओर से आपराधिक मनोवृत्ति के लोगों को प्रश्रय दिया जाना, भारतीय लोकतंत्र का एक शर्मनाक पहलू है। हालांकि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ऐसे कई लोगों की सफाई हुई है, पर फिर भी बेशर्म जनप्रतिनिधि कानून को हाथ में लेने से बाज नहीं आ रहे। प्रधानमंत्री की फटकार के बाद मध्यप्रदेश और राजस्थान में ऐसी ही और घटनाएं हो जाना यह बताता है कि पार्टी में अपने ही नेता के वचन का कोई अर्थ नहीं है।
ऐसा नहीं है कि दलगत चरित्र की ऐसी गिरावट केवल भाजपा में ही है। कांग्रेस का एक उदाहरण ऊपर दिया जा चुका है। मध्यप्रदेश में एक बसपा विधायक (जो कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रही हैं) के पति पर मार्च में एक हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। कांग्रेस सरकार आरोपित पति को आज तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है। पिछले दिनों उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में भी ऐसी ही घटनाएं हुईं। अपराध करने के बावजूद जब आरोपियों को राजनीतिक दल महत्त्व देते रहते हैं तो सामाजिक जीवन में ये दल अपराध के सम्मान का रास्ता ही प्रशस्त कर देते हैं।
इस तरह की घटनाओं से एक तरफ जहां सरकारी काम में लगे अधिकारियों-कर्मचारियों का मनोबल गिरता है, वहीं बदलाव की आस लगाने वाले देश के आम नागरिकों में राजनीति और राजनेताओं के प्रति अरुचि और विकर्षण पैदा होता है। भारी बहुमत से लगातार दूसरी बार सत्ता में आई भाजपा के कर्णधारों का दायित्व है कि वे जनता के भरोसे को टूटने न दें।