छूट दी, अंकुश भी लगाया
Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों को मंत्रालय सौंप दिए हैं। उन्होंने लगभग हर बड़े मंत्री …
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों को मंत्रालय सौंप दिए हैं। उन्होंने लगभग हर बड़े मंत्री के साथ ऎसे राज्यमंत्री लगाए हैं, जिनके पास किसी दूसरे विभाग का स्वतंत्र प्रभार भी है।
जानकारों का मानना है कि इसके पीछे मंत्रियों को काम करने की छूट के साथ ही अंकुश की रणनीति है।
स्वतंत्र प्रभार वाले महकमे में राज्यमंत्री को अपना प्रदर्शन दिखाने का मौका है और राज्यमंत्री के रूप में वह सामूहिक निर्णय की प्रक्रिया में भागीदार रहेगा। बड़े केबिनेट मंत्रियों पर भी इन राज्य मंत्रियों से बेहतर प्रदर्शन का दबाव बना रहेगा।
डॉ. सतीश मिश््रा, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े सीनियर फैलो और राजनीतिक विश्लेषक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कॉम्पेक्ट (छोटी और मजबूत) सरकार की दिशा में शुरूआती कदम उठाया है। हालांकि पूरी तरह से ऎसी सरकार बनने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है। वैसे आजकल वैश्विक स्तर पर छोटी और सुगठित सरकार रखने का चलन बढ़ा है।
इसके पीछे सोच है कि अच्छा प्रशासन देने के लिए कम मंत्री रखे जानेे चाहिए। ताकि सरकार का मुखिया हरेक मंत्रालय पर निकटता से निगरानी रख सके। वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में बने प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी अच्छे प्रशासन के लिए छोटे मंत्रिमंडल का सुझाव दिया था। इस लिहाज से मोदी का यह सही दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
पर उनके कुछ मंत्रियों के चयन पर सवाल भी उठ रहे हैं। आज समय की मांग है कि ऎसे मंत्री जिम्मा सम्भालें, जो दक्ष हों। जो मुद्दों की पेचीदगी को समझते हों और विवाद को हल करने व नीतियों को आगे बढ़ाने में सक्षम हों।
इससे विकास और ग्रोथ हासिल करने में मदद मिलती है। लेकिन मोदी के सामने समस्या यह थी कि उनके पास जिन लोगों का पूल था, उन्हीं में से अपनी राजनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए चयन करना था। उन्हें आगे भी चुनाव लड़ने हैं। एक प्रधानमंत्री को संतुलन बनाना होता है। हर जाति, हर क्षेत्र, समाज के हरेक तबके से। यह दुर्भाग्यपूर्ण सच है, लेकिन इसका अनुसरण राजनीति में करना पड़ता है।
आने वाले महीनों में मोदी कुछ और निर्णय भी ले सकते हैं। वे मंत्रालय को बढ़ा भी सकते हैं। वैसे तो हर मंत्रालय को अपनी बड़ी जिम्मेदारी निभानी होती है। खासकर मोदी को जो बहुमत मिला है वह काफी स्पष्ट मजबूत है, उसमें कोई बहानेबाजी नहीं चल पाएगी। अब मोदी और उनके साथियों पर निर्भर करता है कि वे परिणाम कैसे देते हैं। हालांकि मोदी कुछ और बेहतर साथी भी जोड़ सकते थे।
अभी भी कई अहम लोगों को जगह नहीं मिल पाई है। मसलन, शत्रुघ्न सिन्हा उतने उम्रदराज नहीं हैं। उन्हें शामिल किया जा सकता था। वे वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे थे। माना कि आडवाणी और जोशी उम्रदराज हैं, लेकिन बाकी कई कम उम्र वाले सांसद भी रह गए हैं।
इस वजह से हो सकता है कि आगामी दिनों में कुछ विरोध भी देखने को मिलने लगे। वैसे भाजपा के प्रमुख सितारों को तो बड़े मंत्रालय मिल गए हैं। जेटली को तीन मंत्रालय मिले हैं। उन्हें मिले मंत्रालयों की क्लबिंग पर सवाल उठ रहे थे। लेकिन उन्होंने संकेत कर दिया है कि आने वाले वक्त में रक्षा मंत्रालय किसी और को सौंप दिया जाएगा।
जेटली को वित्त और कॉरपोरेट, दोनों अहम मंत्रालय मिलना बताता है कि मोदी कॉरपोरेट्स का काम अपने निकट सहयोगी को ही सौंपना चाहते थे। जिससे कि उन्हें दिक्कतें पेश न आएं। मोदी का मंत्रालयों की क्लबिंग करना सकारात्मक कदम है। जैसे ट्रांसपोर्ट को, पावर और कोल को एक साथ रखा गया है। हालांकि मानव संसाधन मंत्रालय स्मृति ईरानी को देने पर काफी अचरज पैदा हुआ है। लेकिन बड़े मंत्रालयों की नीतियां तो मोदी के दफ्तर से ही बनेंगी, जिन्हें मंत्रियों को सिर्फ लागू करना होगा।
अच्छा मिश््रण बनाया है
सोमपाल शास्त्री, पूर्व केन्द्रीय कृषि मंत्री
किसी भी मंत्रिमंडल में अनुभव, परिपक्वता और नवीनता का मिश््रण रहना चाहिए। वरिष्ठ लोगों को उनके हिसाब से ही मंत्रालय मिलने चाहिए। जैसे मोदी ने राजनाथ सिंह, अरूण जेटली, गोपीनाथ मुंडे, सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद, नरेंद्र सिंह तोमर आदि को दिए हैं।
जहां तक दूसरी पंक्ति के निर्माण की बात है तो मोदी ने ऎसे चेहरों को भी जगह दी है। इस लिहाज से उनका मंत्रिमंडल कुल मिलाकर ठीक है। केबिनेट के लिए उसका नेता-प्रणेता और निदेशक तो पीएम ही होता है। पीएम के निर्णय करने की क्षमता और नीयत ठीक है तो मंत्री अनुभवहीन या ज्यादा योग्यता वाले नहीं हों, तब भी क्षतिपूर्ति हो जाती है। वरना गड़बड़ पैदा होने के आसार बढ़ जाते हैं।
जैसा यूपीए-2 सरकार में हुआ था। जितना मैं मोदी को जानता हूं, वो ठीक दिशा में निर्देश देने में सक्षम और स्पष्ट हैं। वे सारे विषयों को समझकर ही कार्य करते हैं। वरिष्ठों के साथ जूनियर्स को लेना अच्छा कदम है।
अगर मंत्री भी ऎसे रहें, जिनकी समझ और नीयत ठीक है तो तालमेल अच्छा रहता है। कुछ मंत्रालयों के बंटवारे पर सवाल उठाए जा रहे हैं। जैसे, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण और कुछ नए चेहरे। लेकिन शुरूआती स्तर पर मंत्रालय की प्रक्रियाओं, तौर-तरीकों को समझने और नियमावलियों पर कार्य करने में सभी नए मंत्रियों को वक्त लगता है। लेकिन अगर उनमें कार्य करने की सम्भाव्यता है तो वे उसे सम्भाल लेते हैं। इसलिए नए चेहरों की योग्यता पर सवाल उठाना ठीक नहीं है। अगर उनमें सीखने की क्षमता है तो वे बखूबी काम कर सकते है।
एक बड़ा सवाल अरूण जेटली को मिले मंत्रालयों पर भी उठ रहा है। लेकिन रक्षा और वित्त ऎसे विभाग हैं, जहां बहुत कुछ व्यवस्थित रहता है। सिर्फ नीति सम्बंधित निर्णय लेने होते हैं। इसलिए मोदी की आलोचना करना ठीक नहीं है।
उनकी आलोचना तो इसलिए भी हो रही थी कि वे पुराने सभी साथियों को छोड़ देंगे। लेकिन ऎसा नहीं हुआ। जेटली हारे, लेकिन उनकी योग्यता देखकर भी मोदी ने अहम मंत्रालय सौंपा है। मोदी ने गुणवत्ता पर ध्यान दिया है।
इस चुनाव में एक बात सामने आई है कि एक व्यक्ति को परिवर्तन का प्रतीक मानकर मतदाताओं ने उसे समर्थन दिया है। अब सारी परीक्षा मोदी के नेतृत्व की होनी है।
पर कुछ लोग फिट नहीं बैठे
डॉ. अभिजीत सेन, जाने-माने अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व सदस्य
नरेंद्र मोदी ने अपनी केबिनेट तो नियुक्त कर दी है। लेकिन अब उनके मंत्रियों के सलाहकार कौन होंगे? नौकरशाही में क्या परिवर्तन होते हैं? यह देखने वाली बात होगी। ऎसे कई मंत्री हैं, जो उन मंत्रालय के लिए फिट नहीं बैठते हैं।
अरूण जेटली के पास वित्त मंत्रालय है, पीयूष गोयल के पास पावर और कोल है, निर्मला सीतारमण को कॉमर्स मिला है। अब इनमें से न ही जेटली और न ही सीतारमण और बाकी दूसरे भी खुद अर्थशास्त्री नहीं हैं। उन्हें खुद बहुत व्यापक निर्णय लेना होगा। इसके लिए उनके सलाहकारों पर ज्यादा जिम्मेदारी होगी। पहले बहुत बात चली थी कि वित्त मंत्रालय हो सकता है कि अरूण शौरी को दे दिया जाए।
लेकिन केबिनेट में राजनीतिज्ञ ही रखे जाते हैं। यह मोदी का राजनीतिक कदम है। उन्होंने उम्र्रदराजों को छोड़ा है। नए लोग भी लाए हैं। लेकिन उनके मंत्रालयों के वितरण पर थोड़ा अचम्भा भी हो रहा है। जैसे जेटली को वित्त और रक्षा दोनों ही दे दिया है। यह बहुत विचित्र सी बात है। स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय दे दिया है। उन्हें शिक्षा जैसा काम देना अचम्भित करने वाला है।
जो नए लोग आए हैं, उनमें कुछ और बेहतर चयन हो सकता था। मेनका गांधी को महिला और बाल विकास दे दिया है, जबकि वो पर्यावरण में अच्छा कार्य कर सकती थीं। वह पर्यावरण का काम करती भी रही हैं। गोपीनाथ मुंडे को रूरल-पंचायती राज की जगह हाउसिंग और अरबन डेवलपमेंट दे देते तो अच्छा रहता।