केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के दोबारा सत्तारूढ़ होने के बाद यह दूसरी घटना है। कुछ दिन पूर्व मध्यप्रदेश से ही चुन कर आए एक केंद्रीय मंत्री के परिजन ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया था। ये परिजन अपनी राजनीतिक ताकत के घमंड में चूर हो कर यह भी भूल जाते हैं कि उनका संबंध ऐसी पार्टी से है, जिसके लिए संस्कारों का बहुत महत्त्व है। जब पार्टी के संस्कारों की बजाए वातावरण के संस्कार सिर चढ़ जाते हैं तो ऐसी ही घटनाएं सामने आती हैं। ‘पत्रिका’ ने कुछ वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश में विशेषकर इंदौर में ‘जमीन का दर्द’ और सूदखोरी के खिलाफ अभियान चलाए थे। तब सौ से ज्यादा लोगों को जेल जाना पड़ा था। आज ऐसे ही लोग येन-केन-प्रकारेण सत्ता के निकट पहुंच गए हैं। एक ओर तो नेतृत्व पार्टी में नाकारा और वंशवाद के सहारे आगे बढ़े लोगों की सफाई करने में जुटा है, दूसरी ओर कुछ लोग अपनी कारस्तानियों से पार्टी की जड़ें खोदने से बाज नहीं आ रहे।
राजनीतिक दलों में आए युवाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी ऊर्जा और नई सोच से देश की राजनीति में बदलाव करेंगे। लेकिन, जब कोई युवा विधायक कॉलेज यूनियन के नेता की तरह सडक़ पर सरकारी कर्मचारियों को क्रिकेट बैट से मारने लगे तो लगता है ‘ऊर्जा’ का यह विपरीत प्रवाह कहीं न कहीं बाहुबल और सत्ताबल के अहंकार से उपजा है।
भाजपा नेतृत्व को ऊपरी स्तर पर ‘सफाई’ अभियान जारी रखने के साथ पार्टी के हर स्तर पर चौकन्ना रहना होगा। कहीं ऐसा न हो कि जिसे दूध देने वाली गाय समझा जाए, वही पार्टी को डुबो दे। मंत्रियों-सांसदों के परिवारों पर विशेष निगाह रखनी होगी। पूरे बागीचे को उजाडऩे के लिए एक विष बेल ही काफी होती है।