देश ने एक बार फिर आम चुनावों में मोदी के हाथों में सत्ता सौंप दी। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को प्रचंड बहुमत के साथ देश के मतदाताओं ने जीत दिलाई। भाजपा को अकेले ही इतनी सीटें मिल गईं कि वह अपने दम पर ही सरकार बना पाने में सक्षम है। भाजपा का नारा तो यही था कि ‘फिर एक बार, मोदी सरकार’, लेकिन साथ में उसका लक्ष्य था कि अबकी बार 300 पार। कई बार इस किस्म के नारे और दावे पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साहवर्धन के लिए किए जाते हैं। यही वजह थी कि 300 के पार की बात सभी को अविश्वसनीय लग रही थी। जिस तरह से विभिन्न चरणों के दौरान चुनाव प्रचार हो रहा था और वोटों का ध्रुवीकरण होता दिख रहा था, उससे यह तो उम्मीद थी कि कुछ मुश्किल से ही सही, किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएंगे।
ऐसी भी आशंका थी कि बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाने की स्थिति में क्षेत्रीय दलों की महत्ता बहुत अधिक बढ़ जाएगी। कुछ अन्य दलों को अपनी ओर खींचने के लिए कुछ समीक्षक नेताओं की खरीद-फरोख्त की आशंका भी व्यक्त कर रहे थे। लेकिन, जिस किस्म के चुनाव परिणाम आए, उससे सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं। देश को इसी तरह के परिणाम की जरूरत भी है। भिन्न मतों वाले दलों के मेलजोल की जुगाड़ वाली सरकार सुनने में बहुत अच्छी लगती है लेकिन इसमें फैसले होने में या तो देरी होती है या फिर वे हो ही नहीं पाते। इसीलिए, देश के लिए पूर्ण बहुमत वाली सरकार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जाती रही है।
वर्ष 2014 में राजग की सरकार ने इस जरूरत को पूरा किया। न केवल देश, बल्कि विदेश में भी भारत में टिकाऊ सरकार होने और उसके अडिग फैसलों का विश्वास लोगों के मन में जगाया। आमजन में यह विश्वास लौटा कि मोदी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार ढुलमुल फैसलों वाली सरकार नहीं है। इस बार भी मतदाता ने इसी किस्म की मजबूत सरकार के लिए जनादेश दिया।
प्रधानमंत्री ने 2014 से 2019 तक के कार्यकाल में जमकर विदेश दौरे किए। अत्यधिक विदेश दौरों को लेकर उनकी आलोचना भी होती रही। लेकिन, चाहे चीन हो या अमरीका, रूस हो या फ्रांस, ब्रिटेन हो या फिर जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया सभी बड़े से बड़े और छोटे-छोटे देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए। कई समझौतों को अंजाम दिया। विभिन्न देशों में भारत का नाम सम्मान के साथ लिया जाने लगा। भारत की बात को गंभीरता के साथ सुना और समझा जाने लगा। विदेशी नेताओं को भी लगा कि भारत के साथ दीर्घकालीन संबंध बनाए और समझौते किए जा सकते हैं। भारत में टिकाऊ और विश्वसनीय सरकार है जो जल्द फैसले भी लेती है और उनका क्रियान्वयन भी तेजी के साथ करती है। दुनिया में भारत को नई पहचान दिलाने और उसे कायम रखने के लिए ठोस, त्वरित फैसले करने वाली सरकार की जरूरत थी।
देश में इस बार चुनाव विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच नहीं होते दिखे। साफ लग रहा था कि चुनाव में सिर्फ एक ही मुद्दा रह गया है और वह है सिर्फ मोदी। उधर, राजग ने भी ब्रांड ‘मोदी’ को ही आगे रखकर चुनाव लड़ा। भारत में राष्ट्रवाद से बड़ा कोई अन्य मुद्दा शायद है ही नहीं। राष्ट्र की अस्मिता और राष्ट्रीय सुरक्षा की जब भी कहीं चर्चा हुई तो लोगों के मन में एक विश्वास दिखा कि इस काम के लिए मोदी एकदम फिट व्यक्ति हैं। पहली सर्जिकल स्ट्राइक पर लोगों ने बहुत संदेह किया था और विपक्षी दल सरकार का मजाक उड़ा चुके थे। फिर, चीन-भूटान-भारत सीमा पर डोकलाम विवाद हुआ। उसका जिस तरह से राजग सरकार ने निपटारा किया। फिर, पुलवामा हमला हुआ और बालाकोट में एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक से जवाब दिया तो आमजन पर इसका जबर्दस्त असर हुआ।
इसके बाद तो शायद लोगों ने मन ही बना लिया था कि एक बार फिर मोदी के हाथों में सत्ता सौंपनी है। उधर, विपक्षी उन्हें चोर, बेईमान बताकर हटाने का अभियान छेड़े हुए थे। यदि वे इससे अलग देश के विकास की बात करते तो शायद बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे लेकिन उन्हें मोदी हटाने का नारा भारी पड़ गया। आमजन में मोदी की छवि दबंग नेता की है। मतदाता उन्हें गरीबों का सहारा मानते हैं। लोग काम के प्रति उनके समर्पण, उनकी प्रतिबद्धता पर विश्वास करते हैं। लोग मानते हैं कि मोदी से गलतियां हुई होंगी, लेकिन उनकी नीयत में खोट नहीं है।
अब बातें हो रही हैं कि प्रचंड बहुमत के बाद भाजपा अपने एजेंडे में रहे उन मुख्य मुद्दों पर काम करेगी, जिन्हें उसने बीते कार्यकाल में ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मुझे लगता है कि भाजपा फिलहाल जबर्दस्त आत्मविश्वास से लबरेज है। देर-सबेर अपने हिंदू वोट बैंक आधार को बनाए रखने के लिए भाजपा अनुच्छेद 370 व 35ए को रद्द करने के लिए प्रयास शुरू कर देगी। हो सकता है कि समान नागरिक संहिता उसकी दूसरी प्राथमिकता में हो, लेकिन राष्ट्रवाद के मुद्दे को बनाए रखने के लिए वह पूरा प्रयास करेगी। मुझे लगता है कि 2020 के अंत तक उसके ये प्रयास रंग दिखाने लगेंगे।
इस मुद्दे पर देश के मुस्लिमों का भी भाजपा को समर्थन मिल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बनारस मेंं ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी मुस्लिम तबका बात करने को सकारात्मक रूप से तैयार दिखा। वह राजग सरकार से मानसिक तौर पर सामंजस्य बैठाने को तैयार दिखा। मुझे तो यह भी लगता है कि भाजपा राममंदिर के मुद्दे पर फिलहाल अदालत के फैसले की प्रतीक्षा करेगी। यदि फैसला उसके मनमाफिक आया तो ठीक, अन्यथा वह बिल लाने के बारे में भी सोच सकती है। कुल मिलाकर भाजपा सही समय की प्रतीक्षा करेगी। राज्यसभा में भी बहुमत आने तक का वह इंतजार कर सकती है। अंतत: उसे उन सभी मुद्दों पर बिना किसी दबाव के काम करना होगा, जिन्हें उसने गठबंधन की राजनीति के चलते टाला।
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