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जहां हाथ डालो एक घोटाला

कश्मीर घाटी – रुख बदलती बयार

जयपुरJul 29, 2019 / 09:48 am

भुवनेश जैन

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क्या कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति बहाल हो रही है? घाटी में तनाव का तापमान मापने के दो फौरी पैमानों को देखें तो ऐसा ही लगता है। इन पैमानों में से एक है अमरनाथ यात्रा का सालाना आयोजन और दूसरा है पत्थरबाजी की घटनाओं के हफ्तेवार होने वाले वाकये। यह सही है इस बार अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 2015 के बाद पहली बार तीन लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है, जबकि अभी यात्रा समाप्त होने में 17 दिन बाकी है। दूसरा पैमाना भी बताता है कि हर शुक्रवार को होने वाली पत्थरबाजी की घटनाएं अब थम चुकी हैं। क्या कारण हैं घाटी में आए इस बदलाव का? क्या वाकई, जैसा कि दावा किया जा रहा है, एक साल के केन्द्र के ‘सुशासन’ का यह परिणाम है या फिर किसी ‘डर’ का असर या फिर तूफान से पहले की शांति? इन्हीं कुछ सवालों के जवाब की तलाश में हाल ही में एक पत्रकार मंडली के साथ घाटी की यात्रा की।

कश्मीर की मेरी यह पहली यात्रा थी। अच्छी हो या बुरी, इससे पहले धरती के इस ‘स्वर्ग’ को लेकर दिमाग में जो छवि बनी थी, उसके आधार अखबार, पुस्तकें, टीवी और सिनेमा ही थे या फिर कश्मीर की यात्रा करके लौटे मित्रों के वृत्तांत। यात्रा संक्षिप्त ही थी- तीन दिन की। लेकिन इन तीन दिन में पुलवामा के आम युवकों से लेकर जम्मू-कश्मीर में सर्वोच्च पद पर आसीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक तक इतने लोगों से मुलाकात हुईं कि लगने लगा कि घाटी की मौजूदा तस्वीर अब कुछ साफ दिखाई देने लगी है। श्रीनगर हवाई अड्डे से डल झील को जोडऩे वाली शहर की मुख्य सडक़ पर एक छोर से शुरू कर दूसरे छोर पर पहुंच जाए तो ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस खूबसूरत शहर के अलग-अलग मिजाज का जायजा एक ही दिन में लिया जा सकता है।

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