उसने हमारी खाली चौकियों पर कब्जा जमा लिया, जिसकी जानकारी भी हमें बाद में चरवाहों की सजगता से हुई थी। कुछ अर्ध-प्रशिक्षित आतंकियों की हरकत समझकर हमारी सेना उन्हें खदेडऩे गई तो सबसे पहले कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच बहादुर साथियों को शहादत देनी पड़ी, क्योंकि ऊंचाई पर पाकिस्तान की प्रशिक्षित सेना पूरी तैयारी से मौजूद थी। इसके बाद जो हुआ वह भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। आज बीस साल बाद हम पाते हैं कि हमारी सैन्य ताकत, तैयारी और राजनीतिक नेतृत्व की सोच में काफी बदलाव आ चुका है। पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर आतंकी हमले के बाद बालाकोट को निशाना बनाकर, हमने न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि अपनी सुरक्षा के लिए हम उस हद तक भी जा सकते हैं, जिससे पहले परहेज करते थे।
एलओसी पर अब तीन गुना ज्यादा तैनाती है। बर्फबारी के दौरान भी हमारी चौकियां खाली नहीं रहती हैं। सुरक्षा के लिए जरूरी मूलभूत संरचनाएं तैयार कर ली गई हैं। जिन इलाकों से घुसपैठ हो सकती है, उनकी पहचान करते हुए सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जा चुके हैं और अग्रिम पंक्तियों में सैन्य टुकडिय़ां हमेशा चौकस हैं। करगिल समीक्षा समिति की सिफारिशों के अनुसार हमने तैयारी की है। संचार तंत्र पहले से बेहतर हुए हैं और निगरानी में ड्रोन जैसे आधुनिक साधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके विपरीत, ऐसी सूचना मिल रही है कि सीमा के उस पार काफी बुरी स्थिति है। करगिल विजय का एक सबक यह भी है कि बुरे इरादों से बेहतर मुकाम हासिल नहीं किए जा सकते।