सन् 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही। किसानों के हालात बेहतर बनाने के तमाम वादे व दावे भी करती रही। बावजूद इसके किसान लगातार आत्महत्याएं करते रहे। सरकार भी मृतक परिजनों को मुआवजा देकर बदनामी के छींटों से बचती रही। केंद्र में सरकार बदल गई, लेकिन हो अब भी यही रहा है। किसान बिचौलियों की गिरफ्त में जकड़ा हुआ है और कर्ज नहीं चुका पाने की हालत में मौत को गले लगा रहा है। भाजपानीत एनडीए लगभग सवा तीन सालों से सत्ता में है। किसानों की हालत वैसे ही अब भी नजर आ रही है, जैसी पांच साल पहले थी।
दरअसल, इस दौरान योजनाएं तो तमाम शुरू हुईं, लेकिन उनका लाभ किसानों को मिल नहीं पा रहा है। अन्य क्षेत्रों के मुकाबले किसानों की आमदनी में खास बढ़ोतरी नहीं हुई। कांग्रेस सरकार थी तो भाजपा किसानों की हितैषी बन जाती थी और आज सरकार भाजपा की है, तो कांग्रेस को किसान याद आने लगे हैं। गजेंद्र सिंह पांच सालों में आमदनी दोगुनी करने का वादा तो कर रहे हैं, लेकिन ये नहीं बता रहे कि बीते सवा तीन सालों में किसानों की आमदनी कितनी बढ़ी? सब जानते हैं, देश मजबूत तभी होगा, जब किसान मजबूत होंगे। किसानों को वोट बैंक समझने की जरूरत नहीं है।
वोट लेते समय तो नेताओं को किसान याद आते हैं, लेकिन सत्ता मिलते ही वह किसानों को भुला बैठते हैं। किसानों के उत्थान के लिए सैकड़ों योजनाएं बन चुकी हैं। कुछ कागजों में दम तोड़ बैठीं, तो कुछ धराशायी हो गईं। आजादी के सात दशक बाद भी देश का किसान बेहाल का बेहाल ही नजर आ रहा है। किसानों की इस हालत का मूल कारण उनका संगठित नहीं होना भी है। किसान आंदोलन होते तो हैं, लेकिन किसी मुकाम तक नहीं पहुंच पाते।