भारत की धरा पर पुरातात्त्विक वस्तुएं बिखरी पड़ी हैं और अपराधियों ने हमेशा इन पर हाथ साफ किया है और तस्करी के जरिये अंतरराष्ट्रीय काला बाजार में पहुंचाया है। पुरातात्त्विक वस्तुओं का दुनिया में बड़ा बाजार है जहां करोड़ों के व्यारे-न्यारे होते हैं। हर साल सैकड़ों भारतीय कलाकृतियां चोरी करके इन बाजारों में पहुंचती है। मगर हम भारतीय इसके प्रति उदासीन ही बने रहते हैं। हमारे यहां पुरातात्त्विक कला के संरक्षण के प्रति उतना लगाव नहीं देखा जाता जितना यूरोप या अन्य पश्चिमी देशों के लोगों में मिलता है।
वर्ष 2011 में यूनेस्को ने अनुमान लगाया था कि 1989 तक भारत से लगभग 50,000 कलाकृतियां चोरी चली गई थीं। बाद के दशकों में यह संख्या दोगुनी से तीन गुनी तक बढ़ गयी परंतु हमारे देश में इसकी कोई राष्ट्रीय गणना कभी नहीं हुई। यूनेस्को का कहना है कि सांस्कृतिक विरासत की तस्करी अब दुनिया में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद तीसरा सबसे बड़ा अपराध हो गयी है। ऐसा ही इन्टरपोल के महासचिव ने हाल ही में इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई बैठक में कहा था।
बैठक में यह भी सामने आया कि आतंकी संगठन आइएसआइएस भी विश्व विरासत के स्थानों को निशाना बना रहा है। हालांकि पिछले काफी समय से अपनी पुरातात्त्विक विरासतों को बचाने के प्रति हम अधिक सचेष्ट हुए हैं परंतु उसके लिए जिस तत्परता और कौशल की दरकार होती है वह नजर नहीं आती। ऐसे अपराधों के अन्वेषण के लिए कोई विशिष्ट जांच एजेंसी भी नहीं है, न ही कोई राष्ट्रीय डाटाबेस और न ही अनुसंधान पर निगरानी रखने वाली कोई संस्था। करीब एक दशक पहले स्मारकों और प्राचीन वस्तुओं पर बने राष्ट्रीय मिशन की परियोजना अपने तार्किक मुकाम पर अब तक नहीं पहुंच सकी है।
यह सच है कि अब अंतरराष्ट्रीय नीलामी बाजार में चोरी के पुरातात्त्विक माल की कड़ाई से पहचान होने लगी है और उसे उसके मूल देश को लौटाया जाने लगा है। हाल ही में आस्ट्रेलिया में भारत से चुराई गई मूर्ति की पहचान हुई और वह वापस हुई। दुनिया का कोई सार्वजनिक या निजी संग्रह शायद ही ऐसा होगा जिसमें भारतीय पुरातात्त्विक वस्तुओं का इंद्राज न हो। मगर उन चीजों को वापस लाने के लिए साक्ष्यों की जरूरत होती है जिससे यह साबित हो सके कि वह आपके देश की चीज है जो अवैध रूप से वहां पहुंची है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पुरातात्त्विक वस्तुओं के बड़े दाम लगते हैं। ऐसे में अपराधियों की निगाहें इन पर लगना स्वाभाविक ही है। इन संपदाओं को उड़ा ले जाने वाले अपराधियों को पकडऩे के लिए हमारी सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षित करके तैयार करना पड़ेगा। ऐसा तभी हो सकता है जब हमें अपनी पुरातात्त्विक थाती से लगाव हो।