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मुफ्त बांटो अभियान

Published: Jan 16, 2015 12:12:00 pm

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अन्नाद्रमुक नेता जयललिता ने पूरे देश में मुफ्त मिक्सी, ग्राइंडर, पंखे और दुधारू गाय-बकरियां बां…

अन्नाद्रमुक नेता जयललिता ने पूरे देश में मुफ्त मिक्सी, ग्राइंडर, पंखे और दुधारू गाय-बकरियां बांटने की घोषणा करके राजनीति में मुफ्ट बांटो अभियान को विस्तार देने की कोशिश की है। तमिलनाडु में इससे पहले मुफ्त रंगीन टेलीविजन, मंगलसूत्र और साड़ी-कंबल बांटे जा चुके हैं। तमिलनाडु ही नहीं, आज तो राजनीतिक दल पूरे देश में कहीं मुफ्त बिजली-पानी, कहीं मुफ्त कम्प्यूटर-लेपटॉप और कहीं मुफ्त साइकिल-स्कूटी से लेकर मुफ्त गेहूं-चावल बांट रही है। यानी सरकारें जनता का पैसा वापस जनता पर लुटा रही हैं।

ताज्जुब की बात तो यह कि कोई भी राजनीतिक दल ऎसी मुफ्त योजनाओं का विरोध करने की बजाय और अधिक लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करने में जुटा है। लगता है कि राजनीतिक दल राज्य या देश के लिए कुछ सकारात्मक करने के वादों की जगह मुफ्त के नाम पर वोट बटोरने को चुनावी राजनीति का कारगर हथियार मानने लगी हैं।

चुनाव घोषणा पत्र में मतदाताओं को लुभाने वाली घोषणाएं पहले भी होती रही हैं। वादे भी किए जाते रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षो में नीतियों और सिद्धांतों की राजनीति का स्थान ऎसी घोषणाएं लेने लगी हैं, जिन्हें अप्रत्यक्ष तौर पर रिश्वत की संज्ञा दी जा सकती है।

चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर चुका है कि वे वही घोषणाएं करें जो पूरी कर सकते हों। पिछले एक दशक में चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में किए गए वादों की समीक्षा की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी कि अगर वाकई इतने वादे पूरे हो गए होते तो देश की तस्वीर न जाने क्या होती?

समाज के पिछड़े, शोषित और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए मुफ्त में कुछ देने की बात तो समझ में आ सकती है लेकिन वोटों के लालच में सभी को कुछ न कुछ मुफ्त देने के मायने समझ से परे जान पड़ते हैं। किसी भी सरकार को जनता के पैसे को अपने राजनीतिक फायदे के लिए लुटाने की छूट कैसे दी जा सकती है? चुनाव आयोग राजनीतिक दलों की लोक-लुभावन घोषणाओं पर नजर रख रहा है, ये अच्छी बात है लेकिन आयोग को सीधे-सीधे रिश्वत देने वाली घोषणाओं पर पाबंदी लगाने की दिशा में भी विचार करना चाहिए।

अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब सरकारों का अधिकांश बजट मुफ्त चीजें बांटने पर ही खर्च हो जाएगा। राजनीतिक दलों को चाहिए कि बेरोजगारों को रोजगार देने का वादा भी करे और उसे पूरा करके भी दिखाएं। देश में आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाएं ताकि रोजगार के अवसर बढ़ सके। अधिक बिजली उत्पादन की दिशा में प्रयास करें। जिस दिन ऎसा हो जाएगा उस दिन मुफ्त बांटने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
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