विकास दर में दो साल तक चीन को पीछे छोडऩे के बाद अब फिर हम पिछडऩे लगे हैं। हाल में संपन्न आम चुनावों में विपक्ष ने आर्थिक बदहाली को मुद्दा बनाने का प्रयास जरूर किया था, पर भाजपा ने जनता से एक और मौका मांगा और जनता ने फिर भरोसा जताकर स्पष्ट कर दिया कि उसे मोदी सरकार से काफी उम्मीदें हैं। इसलिए देश को आर्थिक बदहाली से निकालना निश्चित रूप से केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हालांकि, सिर्फ मंत्रिमंडलीय समूह बना देने भर से समस्या का समाधान नहीं होने वाला है। विभिन्न मामलों पर पहले से भी कई मंत्रिमंडलीय समूह बने हुए हैं, जिनमें ज्यादातर महज औपचारिताओं के निर्वाह के लिए हैं। कई ऐसे भी हैं जिनकी लंबे समय तक बैठक भी नहीं हो पाती। अब नए मंत्रिमंडलीय समूह किस तरह काम करते हैं, इस पर निगाह रहेगी।
मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रिजर्व बैंक का रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती करने का फैसला भी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। महंगाई दर में मामूली बढ़ोतरी के बावजूद शीर्ष बैंक ने ब्याज दरों में कटौती का जोखिम लिया है तो जाहिर है कि वह सरकार के साथ कदमताल करने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए ट्रांजेक्शन चार्ज समाप्त करने का फैसला भी सराहनीय है। एटीएम चार्ज की समीक्षा का निर्णय करने से यह उम्मीद बंधी है कि आने वाले दिनों में यह शुल्क भी समाप्त हो सकता है। जाहिर है इसका सीधा लाभ उपभोक्ताओं को होगा और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता आएगी।
वित्तीय लेन-देन जितना पारदर्शी होगा, सरकार को राजस्व का उतना ही फायदा होगा। इसलिए आदतन नकद लेन-देन करने वालों को डिजिटल ट्रांजेक्शन के लिए प्रेरित करना समय की जरूरत है। मोदी सरकार शुरू से इस प्रयास में लगी रही है और इसके लिए अचानक की गई नोटबंदी को लेकर काफी आलोचना भी झेल चुकी है। नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन में तेजी आई थी पर बाद में लोगों का उत्साह जाता रहा। ट्रांजेक्शन शुल्क इसकी बड़ी वजह है। रिजर्व बैंक ने एनईएफटी और आरटीजीएस से लेन-देन पर ट्रांजेक्शन शुल्क हटाने का फैसला कर कारगर कदम उठाया है। हालांकि इसका बैंकों की आर्थिक सेहत पर विपरीत असर पड़ेगा। देखना होगा कि पहले से ही डूबे कर्ज का दबाव झेल रहे बैंक इस फैसले को किस तरह लेते हैं और रिजर्व बैंक की मंशा आगे किस दशा को प्राप्त होती है?