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भटकाव में कांग्रेस

locationजयपुरPublished: Aug 07, 2019 09:09:24 am

जम्मू-कश्मीर के मामले में कांग्रेस में उभर कर आ रहे अन्तर्विरोध को देख कर पूरा देश हैरान है। अनुच्छेद 370 को समाप्त करने को लेकर संसद में ही नहीं पूरे देश में बहस छिड़ी है। उम्मीद की जा रही थी कि इतने बड़े मुद्दे को लेकर देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी ढृढ़ता से कोई पक्ष लेगी, लेकिन न तो संसद के दोनों सदनों में और न सदन से बाहर इस मुद्दे पर पार्टी कोई ऐसा रुख अपना सकी, जो कांग्रेस में सर्वमान्य हो।

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जम्मू-कश्मीर के मामले में कांग्रेस में उभर कर आ रहे अन्तर्विरोध को देख कर पूरा देश हैरान है। अनुच्छेद 370 को समाप्त करने को लेकर संसद में ही नहीं पूरे देश में बहस छिड़ी है। उम्मीद की जा रही थी कि इतने बड़े मुद्दे को लेकर देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी ढृढ़ता से कोई पक्ष लेगी, लेकिन न तो संसद के दोनों सदनों में और न सदन से बाहर इस मुद्दे पर पार्टी कोई ऐसा रुख अपना सकी, जो कांग्रेस में सर्वमान्य हो।

आश्चर्यजनक बात यह रही कि राज्य सभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कलीता तक ने अपनी ही पार्टी के रुख के विरोध में इस्तीफा दे दिया, जबकि मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी होती है कि वह पार्टी के सभी सांसदों को एकजुट और पार्टी को अनुशासन में रखे। पार्टी के दीपेन्द्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा, जनार्दन द्विवेदी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे वरिष्ठ नेताओं तक ने भाजपानीत एन डी ए सरकार के कदम का स्वागत किया।

पार्टी की यह असमंजसता केवल केन्द्रीय स्तर तक नहीं दिखाई दी, राज्यों में भी किंकत्र्तव्यविमूढ़ता वाली स्थिति बनी रही। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में न तो मुख्यमंत्रियों ने और पार्टी अध्यक्षों ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट राय रखी। अधिकतर प्रादेशिक नेताओं ने चुप्पी साधना ही उचित समझा।

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही कांग्रेस की स्थिति बिना कप्तान वाले जहाज की तरह हो गई है। राहुल गांधी अध्यक्ष का पद छोड़ चुके हैं और नए अध्यक्ष का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है। अध्यक्ष कौन बने- इस बारे में जितने मुंह, उतनी बातें हो रही हैं। कोई किसी का नाम सुझा रहा है तो कोई इस पद को संभालने के लिए गांधी परिवार की मान-मनोव्वल में लगा है। केवल कश्मीर के मामले में ही नहीं, संसद के लगभग पूरे सत्र में पार्टी की यही स्थिति रही। इस दौरान संसद में तीन-तलाक, सूचना का अधिकार सहित बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण बिल चर्चा के बाद पारित हो गए, जो देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। विशेष बात यह है कि इस बार लोकसभा पूरी शांति से चली। रिकार्ड संख्या में प्रश्न आए, लम्बी-लम्बी चर्चाएं हुर्इं। लेकिन नेता के अभाव में कांग्रेस इस सुनहरे मौके का पूरा लाभ नहीं उठा सकी।
मंगलवार को शायद पार्टी के इसी असमंजस को देखते हुए सोनिया गांधी को स्वयं केन्द्रीय कक्ष में जाकर पार्टी सांसदों को एकजुट और अनुशासित करने की कोशिश करनी पड़ी। उसके बाद ही कश्मीर मामले में कांग्रेस के रुख में कुछ स्पष्टता नजर आई, लेकिन शाम होते-होते फिर पार्टी लाइन से भटकाव नजर आने लगा।

लोकतंत्र में मजबूत सत्ता पक्ष के सामने विपक्ष का भी दमदार होना जरूरी है। संख्याबल में भले ही कमी हो पर आवाज में दम होना चाहिए। नेतृत्व के अभाव के कारण कांग्रेस की यह स्थिति हो रही है। बेहतर हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जल्दी ही संभल जाएं। अब भी नहीं संभले तो डेढ़ सौ वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों तक से पिछड़ जाएगी।

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