बर्खास्त आयकर आयुक्त संजय कुमार श्रीवास्तव के नोएडा के कई ठिकानों को सीबीआइ 6 जुलाई को खंगाल चुकी है। कथित तौर पर अनुचित लाभ हासिल करने के लिए पिछली तारीख में अपील आदेश पारित करने को लेकर सरकार ने संजय कुमार श्रीवास्तव को हाल ही बर्खास्त कर दिया था। मोदी सरकार की दूसरी पारी की शुरुआत के बाद भ्रष्ट अफसरों और संस्थानों पर जिस रफ्तार से छापेमारी हो रही है, उससे अंधेरी सुरंग में कुछ किरणें जरूर नजर आ रही हैं, लेकिन जिस देश में राजनीति को भ्रष्टाचार की गंगोत्री माना जाता हो, वहां छापेमारी में कुछ छोटी-बड़ी मछलियों को जाल में डाल कर बेहतर परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती।
फिलहाल तल्ख हकीकत यही है कि भ्रष्टाचार देश के लिए रक्तबीज बना हुआ है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के पिछले साल के सर्वे के मुताबिक 2017 के मुकाबले देश में 2018 में रिश्वत देकर काम कराने वाले 11 फीसदी बढ़ गए थे। सर्वे में सबसे ज्यादा 30 फीसदी लोगों ने जमीन की रजिस्ट्री जैसे कामों के लिए सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देना कबूल किया था तो 25 फीसदी ने पुलिस महकमे को रिश्वत देने की बात कही थी। दरअसल, यह धारणा आम जनमानस में गहरी पैठ गई है कि रिश्वत देकर हर दुर्गम रास्ते को सुगम किया जा सकता है।
संस्थानों में नौकरियों के लिए, स्कूलों में दाखिले के लिए, रेलगाडिय़ों में रिजर्वेशन के लिए, अस्पतालों में इलाज के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, सरकारी ठेके लेने के लिए, राशन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट बनवाने जैसे कामों के लिए धड़ल्ले से रिश्वत दी और ली जा रही है। रिश्वत लेने और देने की इस मानसिकता ने पूरे देश के आर्थिक, सामाजिक और नैतिक ढांचे को खोखला कर रखा है। यह खोखलापन तब तक दूर नहीं होगा, जब तक अधिकारी-कर्मचारी, नेताओं और दलालों के उस मजबूत गठजोड़ की कमर नहीं तोड़ी जाती, जिससे भ्रष्टाचार की बेल को खाद और पानी मिल रहा है। राजनीति में जब तक धनबल और भुजबल की पूजा होती रहेगी, तब तक भ्रष्टाचार मुक्त भारत बहुत दूर की कौड़ी है।