गोयाकि, तीन दिन पहले सिद्धार्थ ने एक चिट्ठी लिखी थी , जिसमे उन्होंने देनदारों के दबाव, कंपनी को नुकसान, भारी कर्ज और आयकर विभाग के एक पूर्व महानिदेशक की प्रताडऩा का जिक्र किया था। चिट्ठी के मुताबिक कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के दामाद सिद्धार्थ एक प्राइवेट इक्विटी लेंडर पार्टनर का दबाव भी नहीं झेल पा रहे थे, जो उन पर शेयर वापस खरीदने के लिए दबाव डाल रहा था। कुछ दूसरे लेंडर भी दबाव बना रहे थे। चिट्ठी में सिद्धार्थ ने खुद को नाकाम आंत्रप्रेन्योर बताया था ।
यह अफसोस की बात है कि जिस शख्स ने अपने कारोबारी कौशल और सूझ-बूझ से देश में कॉफी के कारोबार को नई दिशा दी, उसे लेन-देन की सांप-सीढ़ी से त्रस्त होकर इस तरह ज़िन्दगी की ‘लीला’ को समाप्त करना पड़ा। सिद्धार्थ ने 1996 में कैफे कॉफी डे (CCD) की शुरुआत की थी और देखते ही देखते भारत के विभिन्न शहरों के साथ विदेशों में भी इसकी शाखाएं खुल गईं। कंपनी के करीब 1,750 कैफे में पांच हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। इनमें ऑस्ट्रिया, दुबई, चेक गणराज्य और कराची के आउटलेट शामिल हैं। ऑर्गनाइज़्ड कैफे सेगमेंट की मार्केट लीडर सीसीडी के विस्तार की रफ्तार पिछले दो साल से लगातार धीमी पड़ रही थी। बढ़ते कर्ज के साथ उसे स्टारबक्स, कोस्टा कॉफी, चाय प्वॉइंट जैसी कंपनियां कड़ी चुनौती दे रही थीं।
गड़बड़ाते हिसाब-किताब को लेकर पिछले साल सीसीडी के 90 छोटे स्टोर बंद करने पड़े थे। बाजार पर सीसीडी की ढीली होती पकड़ के संकेत सिद्धार्थ की चिट्ठी से भी मिलते हैं। उन्होंने लिखा – ‘तमाम कोशिशों के बाद भी मैं सही और फायदे वाला बिजनेस मॉडल तैयार नहीं कर सका।’ कारोबार में महत्वाकांक्षी होना जरूरी है, लेकिन अति महत्वाकांक्षा कारोबारी को तनाव की रस्सियों पर ऐसा धकेलती है कि वह उलझ कर रह जाता है। ‘कॉफी किंग’ सिद्धार्थ ने ‘जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान’ के मर्म को समझ कर उतार-चढ़ाव में संतुलन साधने को कोशिश की होती, तो उन्हें इस तरह ‘खुदकुशी’ करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता।