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प्रमोशन में रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मायावती ने किया स्वागत, बोली- ‘सरकार तुरंत लागू करें’

locationनोएडाPublished: Sep 26, 2018 01:45:18 pm

Submitted by:

Rahul Chauhan

इस बाबत मायावती ने कहा कि यह फैसला कुछ हद तक स्वागत योग्य है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है।

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Mayawati

नोएडा। प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट फैसला आने के बाद जहां हर तरफ चर्चाएं हो रही हैं तो वहीं गौतमबुद्ध नगर जिले की बेटी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले का स्वागत किया है। इस बाबत मायावती ने कहा कि यह फैसला कुछ हद तक स्वागत योग्य है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है। शीर्ष अदालत ने साफ कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार अगर चाहें तो वह प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि बसपा यह मांग करती है कि सरकार प्रमोशन में आरक्षण को तुरंत लागू करे।
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गौरतलब है कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए नागराज मामले में 2006 के फैसले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया। नागराज प्रकरण में 2006 के फैसले में एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं।
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि 2006 के फैसले को 7 सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने की आवश्यकता नहीं है। वहीं संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया है जिसमें कहा गया कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाना चाहिए। इस बाबत चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से ये फैसला सुनाया है।
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इसके साथ ही 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाले आंकड़ों को इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है।
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उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 2006 नागराज मामले में के फैसले कहा था कि एससी-एसटी समुदायों के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण दिए जाने से पहले राज्य सरकार एससी-एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाले आंकड़े, सरकारी नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व आदि के बारे में तथ्य प्रशासनिक दक्षता पर जानकारी मुहैया कराने के लिए बाध्य हैं। जिस पर केंद्र सरकार व विभिन्न राज्य सरकारों ने इस फैसले पर फिर से विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था।
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