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कोटा

विरासत के किए दर्शन, समझा प्राचीन जलस्रोताें का महत्व

विश्व विरासत दिवस पर गुरुवार को पुरातत्व प्रेमी व बच्चों ने शहर की अनमोल विरासत के दर्शन किए। स्थापत्य कला व संस्कृति की तस्वीरों को देखा। उन्होंने अपनी जिज्ञासाएं रखी, जिनके उन्हें जवाब मिले।

कोटाApr 20, 2024 / 08:29 pm

shailendra tiwari

World Heritage Day, World Heritage Day News, Heritage Walk

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विश्व विरासत दिवस पर गुरुवार को पुरातत्व प्रेमी व बच्चों ने शहर की अनमोल विरासत के दर्शन किए। स्थापत्य कला व संस्कृति की तस्वीरों को देखा। उन्होंने अपनी जिज्ञासाएं रखी, जिनके उन्हें जवाब मिले। अवसर था हैरिटेज वॉक का।
हाड़ौती हैरिटेज वॉक्स, हम लोग संस्था एवं हाड़ौती पर्यटन विकास समिति के संयोजन में हैरिटेज वॉक का आयोजन किया गया। यात्रा में शामिल प्रतिभागियों ने गोपाल निवास बाग व नागाजी के बाग को देखा। उन्होंने बाग की खूबसूरती, मंदिर और बावडि़यों की जानकारी ली।
इतिहासविद् फिरोज अहमद ने प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने बताया कि शहर में नल नहीं थे, तब शहरवासी कुएं, बावड़ी व नदियों के पानी पर निर्भर थे। कोटा में 1928 के करीब घरों में नल कनेक्शन शुरू हुए। आमजन की सुविधा के अनुसार हाड़ा शासकों ने शहर में चंबल नदी होने के बावजूद तालाबों और बावड़ियों का निर्माण करवाया, जो उनकी जल संरक्षण के बारे में दूरदर्शिता को दर्शाता है। कोटा की प्रमुख बावड़ियों में बड़गांव की बावड़ी, गुलाबबाड़ी में छोगा की बावड़ी, सोफिया स्कूल के सामने द्वारका बावड़ी, झालावाड़ रोड पर गोबरिया बावड़ी, दादाबाड़ी में दान देहडा एवं छोटी बावड़ी, रंगबाड़ी रोड़ पर बगीची में दो बावड़ियां, खड़े गणेशजी बावड़ी, हवाई अड्डा परिसर स्थित 2 बावड़ियां, गोपाल निवास बाग की नागा साधुओं निर्मित बावड़ी, नागाजी के बाग़ स्थित बावड़ी हैं। सबसे प्रमुख बृजविलास महल के सामने व नयापुरा स्थित अबली मीनी की बावड़ी है। उन्होंने बताया कि कोटा में दो तरह की बावडि़यां बनाई गई। एक एल शेप व दूसरी एकदम सीधी। ये बावड़ियां 17वीं एवं 18वीं शताब्दी की स्थापत्य कला का नमूना है। इनके निर्माण में सभी बातों का ध्यान रखा जाता था। जल तक पहुंचने के लिए सुविधानुसार सीढ़ियां बनाई गई और दायीं-बायीं और सुंदर तिबारियां बनाई गई। तिबारियों में नागा साधु बैठकर धूनी रमाते थे।
बावड़ियां हमारी सामाजिक संस्कृति के चिह्न

पृथ्वी पाल सिंह ने बताया कि प्राचीन समय से ही घर पर कुएं-बावड़ी बनाने की परम्परा थी। शुभ कार्यों में इनका ही जल उपयोग में लेते थे। इसलिए यह बावड़ियां हमारी सामाजिक संस्कृति के चिह्न हैं। आपातकाल में यह बावड़ियां सैन्य अभ्यास में भाग ले रहे सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी साबित होती थीं।
प्राचीन जल स्रोतों का संरक्षण करें

हम लोग के डॉ. सुधीर गुप्ता ने छात्रों को बताया कि दुनिया में जल का बढ़ता संकट कोटा जैसे नदी युक्त भाग्यशाली शहरों के लिए एक चेतावनी है। हमारे प्राचीन जल स्रोतों का संरक्षण हम समय रहते कर लें। हाड़ौती हैरिटेज के रवींद्र सिंह तोमर, सर्वेश सिंह हाड़ा, गौरव चौरसिया , डीएफओ तरुण मेहरा, जयवर्धन सिंह समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

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