बाढ़ के बाद अब यहां फिर से किसान हुए व्यस्त, खेतों में बढ़ी रौनक
गांव में पसरा संन्नाटा, नहीं मिल पा रहे मजदूर
मंदसौर/लिम्बावास. खरीफ फसल भले पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हो, लेकिन जिन किसानों के खेतों में बची-खुची फसल है उसे निकालने में किसान व्यस्त हैं। परिणाम स्वरूप खेतों में तो रौनक दिखाई दे रही है, लेकिन गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। हालात यह हो गई कि किसानों को मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं।
ग्राम लिम्बावास, बांसखेड़ी, पिरगुराडिय़ा, गोपालपुरा, झाडऱ्ा सहित अंचल के क्षेत्र में विगत दिनों लगातार तेज बारिश के चलते कई किसानों की फसलें बर्बाद हो गई। कई किसानों के 30 प्रतिशत फसल ही बची। अब उनकी फसल भी पककर तैयार हो गई। इसके चलते गांव में सन्नाटा परसा हुआ है। खेतों में रौनक बढ़ गई है। खरीफ सत्र का कृषि कार्य अंतिम चरण में है। कृषि कार्यों के बढऩे से गांवों में सन्नाटा पसरने लगा है। खेतों में सुबह से लेकर देर रात तक रौनक बनी हुई है। किसान फसल कटाई से लेकर फसल तैयार करने में खासा व्यस्त हैंं। खेतिहर मजदूर भी सुबह से देर शाम तक खेतों में लगे हुए हैं। किसान व मजदूर सुबह से ही खेतों में नजर आने लगते हैं।
मजदूरों की करना पड़ रही मनुहार
खेतों में कटाई को लेकर मजदूरों की पूछ-परख बढऩे लगी है। मजदूरों को लाने-ले जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था की जा रही है। यहां तक कि मजदूरों की मनुहार भी करना पड़ रही है। कई स्थानों पर खरीफ की फसल पक चुकी है। नई मूंग, उड़द, सोयाबीन व चवला ने तो कृषि मंडी में पहले ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी है। सोयाबीन भी खलिहानों में पहुंचना शुरू हो गई है। अलग-अलग किस्म की सोयाबीन होने से कई किसानों की फसलें चौपट हो गई है। 75 प्रतिशत किसानों ने खेतों का कार्य समेट लिया है। रबी फसल बोवनी के लिए खेतों कि हंकाई जुताई भी शुरू कर दी है। कई किसानों ने तो लहसुन चौपाई का कार्य भी शुरू कर दिया है।
अब खड़ा हुआ थ्रेसर मशीन का संकट
सोयाबीन निकालने के लिए थ्रेशर मशीन का संसाधन जुटाना किसानों के लिए मुख्य समस्या बनी हुई है। थ्रेसर मशीन हर किसान के पास उपलब्ध नहीं है। किराए से लेने के लिए किसानों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। खेतों से खलिहानों में सोयाबीन के ढेर एकत्र हुए पड़े हंै। कई दिनों तक इंतजार करने पर भी थ्रेसर मशीन नहीं मिल रही है। इससे किसान काफी परेशान हैं। किसान कारूलाल, दशरथ, कमल आदि ने बताया कि हर साल मजदूर 200 रुपए में पूरा दिन सोयाबीन की फसल काटता था। अब मजूदरों का संकट दिखने पर उन्होंने भी मजदूरी बढ़ा दी है। सोयाबीन काटने के लिए 300 से 400 रुपए तक एक मजदूर ले रहा है। पहले ही फसल का लागत मूल्य नहीं निकल पा रहा है। ऊपर से थ्रेसर मशीन और मजूदरी बढऩे से किसान पर दोहरी मार पड़ रही है।
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