पश्चिमी उत्तरप्रदेश के दिलचस्प चुनावी माहौल का जायजा लेने के लिए जब मैं पीलीभीत से रामपुर, मुरादाबाद होते हुए मुजफ्फरनगर पहुंचा तो खेतों से कटती गन्ने की फसल और ट्रैक्टरों पर उसे ले जाते किसान दिखे। मैं सिसौली में भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैट से मिलने पहुंचा। वहां पहले से ही पंचायत चल रही थी। सपा प्रत्याशी हरेंन्द्र मलिक बैठे थे। दरअसल, नरेश टिकैत वेस्ट यूपी के जाटों की बड़ी खाप बालियान के चौधरी भी हैं। इससे 84 गांव जुड़े हुए हैं। दूसरे नंबर पर कलस्यान खाप है जो गुर्जरों से जुड़ी हुई है। नरेश टिकैट ने कहा कि सभी किसानों का समर्थन चाहते हैं, लेकिन हम इस बार न्यूट्रल हैं। केंद्र सरकार ने अन्याय किया है।
दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खापों का प्रभाव है। मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर और नगीना में खाप पंचायतें डिसाइडिंग फैक्टर बनती हैं। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से ही पूरे क्षेत्र में धु्रवीकरण की पॉलिटिक्स शुरू हो गई। अजीतसिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल हमेशा जाट और मुसलमानों के सहारे जीतती थी, लेकिन 2014 से उसकी जमीन खिसक गई। नतीजा यह रहा कि अजीत चौधरी और जयंत चौधरी 2014 और 2019 का चुनाव हार गए। इस बार परिवार से कोई मैदान में नहीं है।
यहां सीधी लड़ाई इंडिया और भाजपा नीत गठबंधन में दिख रही है। सपा के प्रत्याशी हरेंद्र मलिक के बेटे पंकज मलिक विधायक हैं। दोनों प्रत्याशी जाट हैं। इसलिए खाप भी असमंजस की स्थिति में है। बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है।
पिछले चुनाव में रालोद के चौधरी अजीत सिंह को महज साढ़े छह हजार मतों से हराने वाले भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान अपनों से ही घिरे दिख रहे हैं। जिस दिन मैं मुजफ्फरनगर पहुंचा उसी दिन बालियान के खिलाफ ठाकुरों की पंचायत चल रही थी। पूछने पर पता चला कि पूर्व विधायक संगीत सोम और संजीव बालियान में कहासुनी हुई है। संगीत सोम के लोग खुलकर विरोध कर रहे हैं।
मुस्लिम बहुल आबादी वाले कैराना लोकसभा क्षेत्र में चुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच चुका है। यह पहला चुनाव है जब सपा और भाजपा दोनों इस सीट पर ध्रुवीकरण नहीं चाहते हैं, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं यह चुनाव उसी दिशा की ओर बढ़ गया है। बिजनौर सीट पर जाटों की आबादी भले ही कम हो लेकिन उनका पूरा प्रभाव यहां है। अच्छी खासी एससी-एसटी आबादी वाले क्षेत्र में भाजपा ने रालोद को सीट दी है। सीट पर दलित, जाट और मुस्लिम मतदाता डिसाइडिंग फैक्टर हैं।
नगीना सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता ही निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इस बार लड़ाई चतुष्कोणीय होती दिख रही। यहां ध्रुवीकरण साफ दिख रहा है। रामपुर में रोचक मुकाबला है। यहां ईद के बाद तस्वीर कुछ बदल गई है। आजम खान भले ही जेल में हैं, लेकिन वे यहां के टिकट से खुश नहीं थे। अखिलेश यादव ने इस बार आजम खान की मर्जी के बगैर दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट के पास की मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी को मैदान में उतार दिया। शुरूआत में कुछ दिनों तक इसको लेकर आक्रोश था, लेकिन ईद की नमाज के बाद स्थितियां बदल गईं। हालांकि आजम खान के लोग अब भी बसपा प्रत्याशी के साथ घूम रहे हैं। पीलीभीत लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक मोड़ पर पहुंच चुका है।
भाजपा ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बड़े ब्राह्मण चेहरे और सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद को वरुण गांधी का टिकट काटकर मैदान में उतारा है। यहां जनता के बीच चर्चा का विषय है कि वरुण की अनुपस्थिति में उनसे जुड़े लोग सपा प्रत्याशी भगवत शरण गंगवार का प्रचार कर रहे हैं। अहम यह कि इस चुनाव में बसपा भी कहीं न कहीं उपस्थिति दिख रही है। पश्चिमी यूपी की सबसे क्लाइमेक्स वाली सीट अगर कोई रही तो वह मुरादाबाद है। यहां सपा के प्रत्याशी को लेकर अंतिम समय तक संशय रहा है। हालांकि बाद में पार्टी ने टी हसन का टिकट काटकर रुचिवीरा को मैदान में उतार दिया। 2019 के चुनाव में सपा के एटी हसन ने भाजपा के कुंवर सर्वेश सिंह को 98 हजार मतों से हराया था। इस बार भी भाजपा ने सर्वेश सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने इमरान सैफी को टिकट दिया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण में पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और नगीना पर भी मतदान होगा। सभी सीटों पर मुस्लिमों की संख्या ज्यादा है। रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, कैराना में चुनाव धु्रवीकरण की ओर बढ़ गया है। जयंत चौधरी ने भाजपा से गठबंधन कर लिया है। बिजनौर से रालोद मैदान में है, 7 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ रही है। बसपा के अलग चुनाव लडऩे से समीकरण बदले हैं। 1977 के बाद यह पहला लोकसभा का चुनाव है जब चौधरी चरण सिंह के परिवार से कोई मैदान में नहीं है।