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Lok Sabha Elections 2024: मेघालय में उमड़-घुमड़ रहे बादल, अरुणाचल से नए उजाले की आस

पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार असम की भगवा राजनीति से निकलकर जैसे ही मेघालय में प्रवेश करते हैं, राजनीति पूरी तरह से उलट जाती है। भाजपा के पोस्टर सिरे से गायब दिखते हैं। ईसाई बहुलता वाले इस इलाके में पोस्टर वार तो नजर आती है लेकिन पोस्टर में भाजपा नगण्य है। पढ़िए आनंद मणि त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट…

नई दिल्लीApr 19, 2024 / 07:30 am

Paritosh Shahi

NorthEast Report
मेघालय एक ऐसा राज्य जहां ‘मेघों’ के बाद यहां के ‘आलय’ में मां का वर्चस्व चलता है। भारत का इकलौता राज्य है जहां पूर्ण रूप से मातृवंशीय प्रणाली अंगीकार की जाती है। अब जहां मां का निर्णय होगा, वहां रोटी तो बराबर ही बंटेगी। फिर चाहे वह असली रोटी हो या राजनीति की रोटी। मेघालय की राजनीति ऐसा ही संकेत देती है। यहां एक सीट पर कांग्रेस कायम है तो दूसरी सीट पर स्थानीय पार्टी एनपीपी है। यह सिलसिला चला आ रहा है। पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार असम की भगवा राजनीति से निकलकर जैसे ही मेघालय में प्रवेश करते हैं, राजनीति पूरी तरह से उलट जाती है। भाजपा के पोस्टर सिरे से गायब दिखते हैं। ईसाई बहुलता वाले इस इलाके में पोस्टर वार तो नजर आती है लेकिन पोस्टर में भाजपा नगण्य है। ऐसे में असम में पूरी ताकत से लड़ रही भाजपा यहां दूसरी पार्टी को समर्थन देती नजर आ रही है। यह ठीक उसी तरह है जिस तरह से मातृवंशीय प्रणाली में मां-बाप की संपूर्ण जिम्मेदारी उसकी छोटी बेटी को सौंप दी जाती है। भाजपा ने राजनीति में अपनी सारी जिम्मेदारी यहां एनपीपी को सौंप दी है।

भाजपा का पूरा ध्यान अरुणाचल प्रदेश पर

मेघालय की तरह नगालैंड में भी भाजपा ने जीत की जिम्मेदारी स्थानीय पार्टी को सौंप दी है। भाजपा का पूरा ध्यान सूरज की पहली किरण के साथ जगने वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश पर है। कामेंग, लोहित, सुबनसिरी, सियांग और तिरप पांच नदियों वाले ‘पूर्वोत्तर के पंजाब’ अरुणाचल प्रदेश की राजनीति में इस बार क्या होने जा रहा है यह तो कोई नहीं जानता लेकिन यहां की राजनीति सूरज की रोशनी की तरह गर्म और साफ है। चीन, म्यांमार और भूटान से सीमा साझा करने वाला प्रदेश बहुत ही सतर्क नजर आ रहा है। सूर्य की पहली किरण के रंग का प्रभाव यहां साफ दिखाई दे रहा है।

मेघालय: राजनीति नई कवरवट लेती दिख रही

दुनिया की सबसे साफ नदियों में शुमार देवकी नदी की तरह ही मेघालय की राजनीति भी साफ है। 15 सालों से यहां की राजनीति का परिणाम साफ है शिलांग कांग्रेस का और तुरा एनपीपी का। 75 फीसदी से अधिक ईसाई बसावट वाले इस राज्य में इस बार की राजनीति थोड़ी नई करवट लेती दिख रही है। भाजपा यहां से चुनाव लडऩे के बजाय एनपीपी को समर्थन दे रही है। यही वजह है कि अबकी बार एनपीपी निगाहे शिलांग पर भी गड़ाए हुए है।

मेघालय में राजधानी शिलांग की राजनीतिक तस्वीर थोड़ी धुंधली है। धूप और बारिश के बीच हो रही चुनावी आंख मिचौली में यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि किसका तलाब सूख जाएगा और किसकी फसल लहलहाएगी। मिजोरम आचार संहिता निर्धारित करने वाला चर्च यहां सिर्फ ईसाई और हिंदू पार्टी की बात करता नजर आता है। न तो वह प्रचार प्रचार रोकता और न ही यहां पर धन और बल का प्रयोग।
शिलांग लोकसभा सीट की बात करें तो 15 सालों से यहां कांग्रेस का कब्जा है, लेकिन इस बार जनजातीय और गैर जनजातीय के बीच पैदा हुई खाई चुनाव परिणाम को स्थिर रख सकती है। यहां एक साल में ही तीन गैर जनजातीय लोगों की हत्या हो गई है। यह वर्ग काफी नाराज है। इस समय यहां एनपीपी की सरकार है। ऐसे में यहां फिर से कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है। कांग्रेस की तरफ से 15 सालों से यहां से सांसद विसेंट पाला मैदान में है तो भाजपा समर्थन से एनपीपी ने यहां अंपिरन लिंगदोह को प्रत्याशी बनाया। यहां लिंगदोह की राह कठिन है।

असम, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम में बड़ी जोर शोर से चुनाव लड़ रही भाजपा यहां दोनों सीटों पर चुनाव लडऩे के बजाय अपने साथी एनपीपी को सौंप दी है। यहां की दूसरी सीट तुरा पर 15 सालों से एनपीपी का कब्जा है। कांग्रेसी सांसद रहे पूर्णों संगमा और अगथा संगमा इस समय एनपीपी में हैं। इस कारण यहां कांग्रेस पर यहां संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अगथा संगमा एक बार फिर से यहां चुनाव लड़ रही हैं। यहां एक बार फिर से बाजी उनके हाथ में ही जाती दिखाई दे रही है।

अरुणाचल प्रदेश: यहां पड़ती सूरज की पहली किरण

राजनीति का सूरज भले ही उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल जैसे प्रदेशों से निकलता हो, लेकिन असली सूरज की पहली किरण सुबह चार बजे इसी प्रदेश की सरजमीं को छूती है। बौद्ध धर्म की उपासक की सर्वाधिक संख्या वाला यह राज्य देवी दुर्गा को पूजता है। यहीं से ही चीन को असली चुनौती भी मिलती है।
सबसे पहले बात अरुणाचल प्रदेश की पश्चिमी सीट की। पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरन रिजूजू इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वह यहां से दो बार लगातार और कुल तीन बार सांसद रह चुके हैं। उनके सामने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री नबम तुकी हैं। ऐसे में मामले भले ही बराबरी का लग रहा है, लेकिन भाजपा के चुनावी प्रबंधन की काट कांग्रेस में अब तक नहीं दिख रही है। यही वजह है कि इस बार फिर से भाजपा का पलड़ा यहां भारी दिख रहा है।

अरुणाचल प्रदेश पूर्वी सीट की बात करें तो यहां से एक बार फिर भाजपा ने तापिर गाओ को ही टिकट दिया है। कांग्रेस ने उनके सामने पूर्व शिक्षा मंत्री बसीराम सिरम को चुनाव में उतारा है। यहां भी तापिर का ताप शायद ही कांग्रेस झेल पाए। विधानसभा चुनाव के साथ हो रहे लोकसभा चुनाव का भी फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है। ऐसे में दोनों ही सीटें भाजपा के खाते में आ जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है।

नगालैंड: यहां चुनाव भी एक त्योहार है

त्योहारों की भूमि कहे जाने वाले इस राज्य में चुनाव भी त्योहार सा ही होता है। सुमी योद्धाओं की इस भूमि पर न तो कोई चुनावी रार दिखती है और न ही तकरार दिखती है। यह योद्धा जितने ताकतवर होते है, उतने ही नरम दिल भी होते हैं। ऐसे में जिंदगी हो या राजनीति जिसका इन्होंने अपने जीवन में स्वागत कर लिया। उसे कोई भी हरा नहीं सकता है।

16 जनजातियों वाले ईसाई बहुल्य इस राज्य में लोकसभा की एक मात्र सीट है। पिछले पांच साल से इस पर एनडीपीपी का कब्जा है। 1967 से 2024 के बीच सिर्फ दो साल के लिए चुनाव जीतने वाली कांग्रेस इस चुनाव में एनडीपीपी के सामने ताल ठोक रही है। भाजपा समर्थित एनडीपीपी अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है।
दीमापुर से लेकर इंपुर तक कहीं भी कांग्रेस के लिए रहगुजर ठीक नहीं दिखाई दे रही है। यह अलग बात है कि इस क्षेत्र पर पांच बार कांग्रेस के ही सांसद रह चुके हैं। इस बार एनडीपीपी ने चुंबन मैरी को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने यहां से सुंग मरोने जमीर को चुनाव में उतारा है।

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