राजनीति की बात करें तो यह तासीर 180 कोण में उलट जाती है। असम में राजनीति ब्रह्मपुत्र नदी की पाट की तरह ही यहां राजनीति पूरी तरह से सपाट है। नदी एक सार करती हुए अपने वेग में सबको समा लेती है। एक दो टापू बीच में दखल देते हैं लेकिन वेग में वह कितने देर टिकते हैं। यहीं देखना यहां दिलचस्प है। भाजपा यहां ब्रह्मपुत्र के वेग में तो कांग्रेस और एआईयूडीएफ टापू सा नजर आते हैं।
दूसरे चरण में यहां पांच सीटों पर 26 अप्रेल को चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव अभियान सड़क से आसमान तक परवान चढ़ा हुआ है। सड़कों पर एक कतार में लगी भाजपा की होर्डिंग यह ऐलान करती नजर आती है कि जीत की कतार में वह सबसे आगे चल रहे हैं। हर तरफ भगवा रंग यहां की हरियाली के साथ समन्वय करता नजर आता है।
इसके बावजूद भी भाजपा अपनी तैयारी में कोई कोर कसर कम करती नहीं दिखाई देती है। चुस्त चुनावी अभियान की कमान खुद मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा संभाले हुए हैं। हर सुबह 11 बजे उड़ने वाले हेलीकॉप्टर की धूल यह साफ संकेत दे रही है कि इस बार भी कांग्रेस हो या फिर कोई अन्य पार्टी भाजपा उन्हें धूल धूसरित करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी।
सिलचर: यहां हुआ था दुनिया का पहली पोलो प्रतियोगिता भाषा शहीद स्टेशन सिलचर…पर आपका स्वागत है। ट्रेन से उत्तर सीमांत रेलवे के इस स्टेशन पर जब आप उतरते हैं तो यहां यूं तो सबकुछ आम स्टेशन की तरह ही लगता है लेकिन यह चीज बहुत चौंकती है। यहां एक दुकान चला रहे अभिमन्यू दास से जब पूछते हैं कि ये भाषा शहीद स्टेशन क्या है? तो फिर पूरी कहानी निकलकर जो सामने आती है। कहानी यह है कि 1961 में जब असम के मुख्यमंत्री ने असमी भाषा अनिवार्य कर दी तो यहां बंगालियों ने विरोध कर दिया। इस विरोध के खिलाफ असम पुलिस ने गोलियों बरसाई। इसमें सात लोगों की मौत हो गई, इसीलिए इसे भाषा शहीद स्टेशन कहा जाता है। इससे यहां आप बंगाली गौरव और एकता का अंदाजा साफ लगा सकते हैं। बराक घाटी में बंगालियां का दबदबा है। इसे राष्ट्रीय पार्टी की मुफीद माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव 2024 के मैच में यहां कुछ भी हो लेकिन यह वह शहर है, जहां दुनिया का पहला पोलो प्रतिस्पर्धा मैच खेला गया और दुनिया का पहला पोलो क्लब भी यहां पर खोला गया। बराक घाटी के इस खूबसूरत शहर को लेकर कभी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे शांति का द्वीप कहा था और यह इलाका इसे चरितार्थ भी करता है। 1985 में पहली बार यहां से एयर इंडिया ने कोलकाता से सिलचर के लिए पूर्ण महिला चलित उड़ान उड़ाई थी। इस बार लोकसभा चुनाव में यहां से कौन उड़ान भरता है यह तो 4 जून को पता चलेगा लेकिन यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रहे मैच में भाजपा का पलड़ा भारी है। टीएमसी भी इस मैच में स्टिक अड़ाती नजर आती है लेकिन पोलो की तरह ही राजनीतिक मैच भी दो टीमों के बीच ही हो रहा है।
करीमगंज: बराक घाटी के सीट पर दिख रहा है सत्ता का संघर्ष बराक घाटी के इस लोकसभा सीट पर सत्ता का संघर्ष साफ दिखाई दे रहा है। 60 फीसदी से अधिक मुस्लिम वाली इस सीट पर एआईयूडीएफ का पलड़ा भारी है। 2019 में यहां सांसद भाजपा का चुना गया, लेकिन 2023 में बदली तासीर ने यहां भाजपा को पीछे धकेल दिया है। ऐसे में 2024 के चुनाव में क्या होगा इसे लेकर काफी संशय गोवाहाटी में भी है। यहां आठ विधानसभा सीटों में से चार पर एआईयूडीएफ का कब्जा है। वहीं दो पर भाजपा और दो पर ही कांग्रेस है। 2014 में इस सीट को एआईयूडीएफ ने जीता था। ऐसे में मामला यहां बहुत ही कांटे का दिखाई दे रहा है। भाजपा ने यहां टिकट कृपानाथ मल्लाह को दिया है। वहीं एआईयूडीएफ ने शबुल इस्लाम चौधरी को टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी यहां मुस्लिम प्रत्याशी हाफिज राशिद अहमद चौधरी को उतारा है। ऐसे में अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो भाजपा की नाव यहां भी चल सकती है।
दीफू: यहां स्वागत में जनजाति दिल बिछा देते हैं असम की जनजातियों का वह इलाका जहां खातिरदारी में दिल बिछा देते हैं। पहाड़ का यह इलाका पूरी तरह से स्वायत है। यहां दो हिल काउंसिल है और इन पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में यहां लोगों का दिल भाजपा के लिए साफ धड़कता नजर आता है। इस इलाके में निजी काम कर रहे सौमी बताते हैं कि केंद्र की कई परियोजनाओं से बहुत लाभ हुआ है। चाहे वह अनाज हो या पानी की पाइप लाइन। हाल में आई सोलर ने तो काफी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी है। आमजन को आसान जिंदगी के अलावा क्या चाहिए? आमजन को मिले सीधे लाभ का बस यही वह उत्तर है जो कांग्रेस के खाते के लगातार चूना लगा रहा है। भाजपा के सामने यहां कांग्रेस उतनी असर नहीं पैदा कर पा रही है जितना की स्थानीय पार्टी आल पार्टी हिल काउंसिल। कांग्रेस ने यहां जयराम इंगलिंग को खड़ा किया है। वह पहले भाजपा में ही थे। वहीं भाजपा ने यहां से अमर सिंह तीसो मैदान में उतारा है।
नगांव: यहां है त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा 2019 की मोदी लहर में यहां चुनाव हार गई थी। वह भी तब जब दो दशक से इस सीट पर भाजपा का ही कब्जा था। कांग्रेस के प्रत्याशी ने यहां 18 हजार वोटों से भाजपा प्रत्याशी को हराया था। ऐसे में इस बार भाजपा ने यहां पूरी अपनी जान लगा दी है। पिछले चुनाव के अनुसार त्रिकोणीय संघर्ष दिखाई देता है। 60 फीसदी से अधिक मुस्लिम भाजपा की राह को सीधे तौर पर कठिन बनाते हैं लेकिन जब विधानसभा चुनाव 2023 के परिणाम पर नजर डालते हैं तो समीकरण भाजपा की तरफ इशारा करते हैं। विधानसभा की नौ सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में अगर समीकरण सही बैठता है तो भाजपा के हाथ में यह सीट फिर आ सकती है। भाजपा ने उस समय प्रत्याशी बदला था। इस बार प्रत्याशी बदलकर सुरेश बोरा को टिकट दिया है। कांग्रेस की तरफ से प्रदूत बरदलोई ही चुनाव लड़ रहे हैं। एआईयूडीएफ यहां अम्यूनल इस्लाम वोट काटने की भूमिका में दिखाई देते हैं। यही वजह है कि भाजपा का रास्ता यहां भी हाइवे होता दिख रहा है।
दरांग-उदलगुरू: परिसीमन के बाद बदल गया है समीकरण दरांग-उदलगुरू लोकसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद यह नया लोकसभा क्षेत्र है। ब्रह्मपुत्र घाटी के इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र की तरह ही सब सपाट है। यहां भारतीय जनता पार्टी की बढ़त बहुत ही साफ दिखाई देती है। आठ विधानसभा में से पांच पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में राजनीति की समीकरण भाजपा के पक्ष में दिखाई देता है। यहां कांग्रेस के साथ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट भी भाजपा को चुनौती देती दिखाई देती है लेकिन दिलीप सैकिया का टिकट देकर भाजपा ने समीकरण अपने पक्ष में कर लिया है। कांग्रेस ने यहां से मधुब राजवंशी को टिकट दिया है तो बीपीएफ ने दुर्गा दास बोरो को।