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यूलिप में बीमा के साथ निवेश का भी फायदा, मैच्योरिटी बेनिफिट टैक्सफ्रीप्लान

यूलिप में बीमा के साथ निवेश का भी फायदा, मैच्योरिटी बेनिफिट टैक्सफ्री
प्लान: म्यूचुअल फंड नहीं है यूलिप, नफा-नुकसान देखकर ही करें निवेश

नई दिल्लीMay 09, 2024 / 09:03 am

Anish Shekhar

यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) अब आकर्षक हो गया है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों की कुल प्रबंधनीय संपत्ति (एयूएम) में 10% से ज्यादा हिस्सेदारी यूलिप की है। वैसे लोग जो बेहतर रिटर्न, टैक्स सेविंग के साथ रिस्क कवर यानी जीवन बीमा का लाभ लेना चाहते हैं, उनके लिए यूलिप बेहतर विकल्प हो सकता है। इसमें बीमा कवर के साथ शेयर बाजार में निवेश का भी फायदा मिलता है। यूलिप में बतौर प्रीमियम आप जो धनराशि चुकाते हैं, उसके एक हिस्से का इस्तेमाल बीमा कंपनी बीमा कवरेज के लिए करती है। यह कुल प्रीमियम राशि का 1० से २०त्न तक हो सकता है। यानी 100 रुपए के प्रीमियम में 10 से 20 रुपए इंश्योरेंस और अन्य खर्च में जाता है। वहीं बचे हुए 80-90 रुपए ही इक्विटी या डेट में निवेश किया जाता है।

यूलिप पर टैक्स बेनिफिट

यूलिप का लॉक इन पीरियड 5 साल है। अगर आप 5 साल तक इस स्कीम में निवेश जारी रखते हैं तो आपको 80सी के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक टैक्स डिडक्शन का फायदा मिलेगा। अगर कोई पॉलिसी 1 अप्रेल 2012 के बाद जारी की गई है तो एक वित्त वर्ष में सम एश्योर्ड के 10% से ज्यादा के सालाना प्रीमियम पर डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा।

मैच्योरिटी बेनिफिट पर टैक्स में छूट

यूलिप ईईई (एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट-एग्जेंप्ट) कैटेगरी में है। यानी इस स्कीम के तहत न तो जमा करने पर, न मिलने वाले रिटर्न और न निकासी पर टैक्स है। 5 साल के बाद मिलने वाले मैच्योरिटी राशि पर सेक्शन 10(10डी) के तहत टैक्स में छूट है।

लेकिन यह है शर्त

अगर आपने एक फरवरी 2021 के बाद यूलिप खरीदी है और सालाना प्रीमियम 2.5 लाख रुपए से ज्यादा है तो मैच्योरिटी बेनिफिट पर टैक्स में छूट नहीं मिलेगी। इससे हुए लाभ पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगेगा।

एसेट क्लास स्विच करने की सुविधा

यूलिप खरीदते समय ग्राहकों को अपने रिस्क के हिसाब से लार्जकैप, मिडकैप, स्मॉलकैप, डेट या बैलेंस्ड फंड में निवेश करने की छूट दी जाती है। पॉलिसी के दौरान अलग-अलग फंडों और एसेट क्लास में स्विच करने की इजाजत होती है। एसेट क्लास के बीच निवेश को कम-ज्यादा भी किया जा सकता है। इसके लिए फंड हाउस अतिरिक्त चार्ज नहीं लेते हैं।

यूलिप चार्जेज में कमी

अब फंड हाउस ऑनलाइन यूलिप प्लान लेकर आ रहे हैं। जिस पर वे प्रीमियम एलोकेशन चार्ज, एडमिन चार्ज आदि नहीं ले रहे हैं। इससे यूलिप का एक्सपेंस रेशियो काफी कम हुआ है। 5 साल के बाद प्लान सरेंडर करने पर सरेंडर चार्ज भी खत्म कर दिया गया है। अब फंड हाउस सिर्फ मोर्टेलिटी और फंड मैनेजमेंट चार्ज लेते हैं। फंड हाउस बीमा कवर के एवज में मोर्टेलिटी चार्ज वसूलते हैं। मोर्टेलिटी चार्ज उम्र बढऩे के साथ बढ़ती है।

सम एश्योर्ड राशि

अगर पॉलिसी धारक की मौत पॉलिसी के दौरान हो जाती है तो नॉमिनी को सम एश्योर्ड/ डेथ बेनिफिट और फंड वैल्यू में जो ज्यादा होगा वह मिलेगा। या सम एश्योर्ड और फंड वैल्यू दोनों जोडक़र मिलेगा। यह अलग-अलग पॉलिसी पर निर्भर करता है। इरडा के मुताबिक, रेगुलर प्रीमियम पॉलिसी के लिए सम एश्योर्ड सालाना प्रीमियम का कम से कम 7 गुना होगा। वहीं, सिंगल प्रीमियम पॉलिसी के लिए सम एश्योर्ड की न्यूनतम सीमा सिंगल प्रीमियम का 125त्न है। डेथ बेनिफिट किसी भी समय चुकाए गए कुल प्रीमियम का कम से कम 105% होना चाहिए।

ऐसे लगता है चार्ज

यूलिप में जितने तरह के चार्ज देने होते हैं, उतने वैल्यू के यूनिट्स आपके फंड से रिडीम होते जाते हैं। इसलिए पॉलिसी सरेंडर करने के बादसरेंडर वैल्यू कुल यूनिट्स के नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) के हिसाब से नहीं बल्कि घटे हुए यूनिट्स के एनएवी के हिसाब से मिलेगा। मान लीजिए आपके पार किसी यूलिप के 1000 यूनिट्स हैं, मैच्योरिटी पर जिसकी एनएवी 100 रुपए है तो फंड का वैल्यू एक लाख रुपए हो जाएगा। लेकिन पॉलिसी सरेंडर करने के वक्त आपको एक लाख रुपए नहीं मिलेंगे। मान लीजिए मोर्टेलिटी और अन्य चार्जेज के रूप में 100 यूनिट्स फंड हाउस की तरफ से रिडीम किए गए हों तो आपको 90,000 रुपए ही मिलेंगे।

यूलिप के नुकसान भी…

– 05 साल का अनिवार्य लॉकइन पीरियड, यानी इमरजेंसी में भी 5 साल से पहले पैसे नहीं निकाल सकते। लॉकइन अविध में प्रीमियम का भुगतान रोकने पर भी पेनाल्टी।
– टर्म या लाइफ इंश्योरेंस प्लान के मुकाबले बेहद कम सम एश्योर्ड राशि, इसके अलावा मोर्टेलिटी चार्ज सहित कई अन्य शुल्क, जिससे वास्तविक निवेश राशि कम होने से म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले बेहद कम रिटर्न।
– प्रीमियम रोकते ही इसमें इंश्योरेंस कवरेज खत्म हो जाता है। यानी बीमा कवरेज के लिए हर हाल में हर माह या तय अवधि पर प्रीमियम का भुगतान करना ही होता है।

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