उद्बोधन की शृंखला में मुख्य वक्ता डॉ.प्रकाश डोंगरे ने कहा कि कविता साधारणीकरण की आकांक्षी है जिसमें उपदेश तो हो सकता है पर उपदेश कविता नहीं। इसी तरह उसमें दर्शन तो हो सकता है किन्तु दर्शन कविता नहीं अत: नये कवियों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।सारस्वत अतिथि नेमा ने भी जहाँ कविता के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला वहीं मुख्य अतिथि कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने गोष्ठियों में पढ़ी जा रही कविताओं के साथ फ़ेसबुक़ व व्हाट्सऐप के जरिए परोसे जा रहे घटिया साहित्य पर चिन्ता जाहिर की।अध्यक्ष की आसंदी से गुरुप्रसाद सक्सेना साँड़ नरसिंहपुरी ने कनिष्ठ व वरिष्ठों के बीच बढ़ती दूरी की चर्चा करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी अपने वरिष्ठों से सीखने में रुचि नहीं रखती। यही वज़ह है कि उनमें योग्यता व प्रतिभा होते हुए भी निखार दृष्टिगोचर नहीं होता।उद्बोधन के बाद बीते समय में दिवंगत गीतकार अशोक पटेल तथा शिक्षक मदन ठाकुर सहित अन्यान्य दिवंगत आत्माओं के प्रति दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी गयी। उक्त अवसर पर साहित्य सेवा समिति से सतीश तिवारी सरस, प्रगति पटेल अंशु, विवेक दीक्षित स्वतंत्र, अंजलि पाठक, मुकेश ठाकुर, सुनील नामदेव, हेमंत शर्मा, मनोज शर्मा, नीलेश जाट, वारिज वाजपेयी, विजय नामदेव, डॉ.मंजुला शर्मा,णमोकार जैन, पोषराज मेहरा,निहाल छीपा, तरुण सागर, रेवा साहित्य मंच कौडिय़ा की ओर से वृन्दावन बैरागी कृष्णा, कुलदीप सुमन शर्मा, नरसिंह साहित्य परिषद् की ओर से शशिकांत मिश्र, रमाकान्त गुप्ता नीर, इन्दुसिंह, नमिता सिंह जाट, आशीष सोनी, नमिता शर्मा, दुर्गेश तिवारी, रामनारायण कौरव सहित अनेक साहित्य प्रेमी जन उपस्थित रहे।संचालन शशिकांत मिश्र एवं आभार प्रदर्शन आशीष सोनी द्वारा किया गया।