इसके बाद यहां लोग प्रति शनिवार मंगलवार को हनुमानजी का पूजन अर्चन करने आने लगे। बाद में वर्ष 1946 में उक्त मढिय़ा को भव्य मंदिर का स्वरूप देने किन्ही हनुमान भक्त फुल्लू कठल के सहयोग से रूपरेखा बनाई गई। तदोपरांत वर्ष 1947 में इसे जीवनलाल धानक एवं अन्य लोगों के सहयोग से श्रमदान से चूना, रेत, गारे से बड़े मंदिर का निर्माण किया गया। इसमें वार्ड के बड़े बुजुर्गों ने जवाहर गंज निवासी हरि चाचा, राजेंद्र जैन आदि का भी योगदान बताया। जहां आज घनी आबादी है वहां पुराने जमाने में केवल खपरे बनते थे एवं खपरों का बिन्डा लगाया जाता था।
धानक परिवार की वृद्धा गुल्लो बाई ने बताया जब हम यहां ब्याह कर आए थे तो यहां खपरे वाली मढिय़ा देखी थी। बाद में मंदिर बनाया गया, पहले यहां खपरे भी बनते थे। धनसिंह राजपूत ने बताया 25 वर्षों से ऊपर होने को हैं प्रति मंगलवार को मंदिर आ रहा हूं। मंदिर की देखरेख विस्तार में अमरचंद धानक का योगदान है। अमरचंद धानक ने कहा यहां कोई समिति नहीं बनी है। मंदिर में दानपेटी रखी है उसी के चढ़ावे की राशि से मंदिर का विस्तार कराया जाता है। अब तक मंदिर में पुट्टी, फर्श, गेट, सीढिय़ां, टाइल्स, टीन शेड, पौधा रोपण, बाउंड्रीवाल आदि कार्य किया गया है। यहां बाजू में दुर्गाजी एवं शिवलिंग भी स्थापित कराया गया है। यहां प्रत्येक मंगलवार को नगर के अलावा समीपी अंचलों से भी हनुमान भक्त आते हैं। मंदिर में हनुमान चालीसा वाचन, सुंदरकांड पाठ, चोलावंदन आदि धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। शाम को महा आरती की जाती है। मंदिर की बड़ी मान्यता है। एक्सरे वाले साहू मंदिर के पंडा हैं। हनुमान जयंती पर मगद के लड्डू की प्रसादी वितरित होती है।